कार्पोरेट खेती: इंडिगो एयरलाइंस की तरह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा साबित होगी
दूनियाभर मे सभी सरकार बाहरी और आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय सेना और सुरक्षा बलों का समुचित प्रबंधन करती हैं और किसी भी देश ने राष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था को किसी कार्पोरेट को नही सौंपा है। तो फिर सरकार द्वारा भारत की 145 करोड़ जनता की जीवन रक्षक खेती-किसानी और कृषि विपणन को लालची कार्पोरेट को सौंपना, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा साबित होगा।
आजादी के बाद के कई दशकों तक देश अनाज का शुद्ध आयातक था, लेकिन 1991 के बाद से स्थिति बदलने से पिछले 3 दशकों में अनाज उत्पादन में भारी वृद्धि से देश अब अनाज का शुद्ध निर्यातक बन गया है। भारत अब दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा अनाज निर्यातक है, जो चावल, गेहूं और मोटे अनाजों जैसे बाजरा, रागी का निर्यात करता है।
यह साकारात्मक बदलाव किसानो द्वारा महंगी हरित क्रांति की उन्नत तकनीक (सुधरे बीज- उर्वरक- कृषि रसायन आदि) और उन्नत सिचाई आदि अपनाने से आया है, जिसके प्रभाव से भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करके, वैश्विक खाद्य आपूर्ति श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। जो अब चावल का दुनियाभर में सबसे बड़ा निर्यातक देश है।
किसानों की मेहनत की बदोलत, पिछले 4 दशक मे देश में रिकॉर्ड तोड़ अनाज उत्पादन हुआ हैं। जिससे आजादी के बाद 4 गुणा से अधिक बढ़ी जनसंख्या के बावजूद देश अब खाद्यान्न में आत्मनिर्भर ही नही, बल्कि शुद्ध निर्यातक है।
जहां वर्ष 2024-25 में, रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन 357 मिलियन टन हुआ। देश में 2025-26 में चावल का रिकॉर्ड उत्पादन 124.5 मिलियन टन रहा और गेहूं उत्पादन लगभग 117.5 मिलियन टन का अनुमान है।
सरकार ने केंद्रीय पूल के लिए गेहूं-धान की रिकॉर्ड खरीद की है, 2024-25 में गेहूं की खरीद 29 मिलियन मीट्रिक टन और धान की लगभग 54.5 मिलियन मीट्रिक टन हुई। जिससे सार्वजनिक वितरण प्रणाली मे 80 करोड से ज्यादा गरीब भारतीयों को मुफ्त अनाज बांटने के लिए पर्याप्त स्टाक सरकारी गोदाम मे उपलब्ध हुआ।
कार्पोरेट कंपनियां भारत सहित तीसरी दूनिया के देशो में लचर लोकतंत्र व कानुन व्यवस्था और भ्रष्टाचार मे लिप्त सरकारी तंत्र का दुरूपयोग करके, अपने लाभ को बढ़ाने के लिए सभी तरह की धोखाधड़ी करती है।
हाल ही में इंडिगो एयरलाइंस कार्पोरेट द्वारा नियमों के विरुद्ध की गई धोखाधड़ी से उत्पन्न संकट से यात्रियों को गंभीर आर्थिक, शारीरिक और मानसिक यातनाओं का सामना करना पड़ा है।
भारत में समय-समय पर ऐसे कई बड़े कॉर्पोरेट घोटाले सामने आए हैं, जिन्होंने देश की अर्थव्यवस्था और नियामक प्रणालियों को प्रभावित किया है।
भारत के प्रमुख कॉर्पोरेट घोटाले में हर्षद मेहता घोटाला (1992), सत्यम घोटाला ( 2009) , शारदा चिट फंड घोटाला, सहारा धोखाधड़ी मामला आदि में देश के करोड़ों निवेशकों को अरबों- खरबों रुपए का धोखा दिया गया।
इन सभी घोटालों में देश के प्रमुख राजनेता और शीर्ष प्रशासनिक अधिकारी भी शामिल थे। जो दर्शाते हैं कि अनुचित लाभ के लिए वित्तीय मामलों में बडी हेराफेरी, अवैध निवेश योजनाएं और दस्तावेजों की गंभीर जालसाजी कॉर्पोरेट धोखाधड़ी की प्रमुख कार्यशैली हैं।
कार्पोरेट जगत द्वारा लगातार धोखाधड़ी और किसानों के विरोध के बावजूद कार्पोरेट एकाधिकार मानसिकता वाली मौजूदा सरकार द्वारा बार- बार कार्पोरेट खेती माडल को लागू करने की कोशिश करके राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए गम्भीर खतरा पैदा कर रही है।
केंद्र सरकार ने कार्पोरेट खेती के माडल को किसानों पर जबरदस्ती थोपने के उद्देश्य से सितंबर 2020 में तीन कृषि कानून पारित किए।
इन 3 कानूनों में कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) अधिनियम, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम का देश के किसानों ने पुरजोर विरोध किया और एक वर्ष तक चले देशव्यापी किसान आंदोलन के कारण, सरकार को मजबूरन कार्पोरेट के फायदे के लिए लागू किए इन तीन काले कृषि कानून को कृषि कानून निरसन विधेयक (2021) के माध्यम से निरस्त करना पड़ा।
इसके अतिरिक्त कृषि विपणन मे कार्पोरेट को अनुचित लाभ देने के लिए सरकार पिछले 5 दशक से अव्यावहारिक और किसान विरोधी नीति अपनाकर फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य कुल लागत सी-2 लागत पर घोषित नही करके ए-2+एफएल पर घोषित कर रही है और समर्थन मूल्य गारंटी कानून नहीं बनाकर, कार्पोरेट साहूकारो और बिचौलियों को घोषित समर्थन मुल्य से कम पर कृषि उपज उत्पादन खरीदने की भ्रष्ट सुविधा भी प्रदान कर रही है।
सरकार की कार्पोरेट हितैषी नीति के कारण, देश के कुल कृषि उत्पादन का मात्र 20 प्रतिशत हिस्सा घोषित समर्थन मुल्य पर बिकता है, बाकि कृषि उत्पादन को कार्पोरेट साहूकार और बिचौलिए समर्थन मूल्य से कम पर खरीद कर, किसानो का खुला शोषण कर रहे है।
निसंदेह सरकारी नीति के दुष्प्रभाव से ही, दूनियाभर मे उच्च उत्पादकता वाली भारतीय कृषि घाटे का सौदा बन गई है और लाखों किसान कर्जबन्द होकर, आत्महत्या को मजबूर हूए है।
कार्पोरेट हितैषी सरकार ने 8 दिसम्बर 2025 को संसद को बताया कि पिछले 5 वर्षों में सरकार ने कार्पोरेट साहूकारो के 6,15,647 लाख करोड़ रुपए के बैंक कर्ज माफ करके बट्टे खाते में डाल दिए हैं।
इसी तरह 2014-19 के दौरान भी सरकार ने साहूकारों के लाखों करोड़ रुपए के बैंक कर्ज माफ किए थे। अमेरिका जैसे उन्नत देश ने भी वर्ष 2025 में अपने 20 लाख किसानों को 12 बिलियन डॉलर की मदद दी है, लेकिन 2014-25 के दौरान केन्द्र द्वारा किसानों को कर्ज माफी नहीं देना दुर्भागयपूर्ण और सरकार की किसान विरोधी नीति को दर्शाता है।
ऐतिहासिक सन्दर्भ में सन 1943 में नील की कार्पोरेट खेती और कार्पोरेट द्वारा चावल की जमाखोरी के कारण देश को बंगाल अकाल जैसी त्रासदी से गुजरना पड़ा था। जिसमे 30 लाख से ज्यादा लोग भूख से मर गए थे।
कार्पोरेट के लालच के कारण 2022-23 में दूनिया के प्रमुख गेहूं उत्पादक देश पाकिस्तान में गेहूं के आटे के दाम 400 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गए थे, क्योकि कार्पोरेट ने गेहूं स्टाॅक का बड़ा हिस्सा ऊंचे दाम पर निर्यात करके घरेलू बाजार में अनाज का गंभीर संकट बना दिया था।
निसंदेह कार्पोरेट का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय और मानव हितों से ज्यादा अपना लाभ बढ़ाना है। इसलिए कार्पोरेट को राष्ट्रीय खेती जैसी अहम जिम्मेदारी सौंपना, देश के लिए घातक और मानवाधिकार विरोधी निर्णय सिद्ध होगा।
लेखक भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक हैं। लेख में व्यक्त उनके निजी विचार हैं


