कोरोना और लॉकडाउन ने मछली उत्पादन को पहुंचाया नुकसान

कोरोनावायरस संक्रमण को लेकर फैली अफवाह के चलते लोगों ने मीट के साथ-साथ मछली खाना बंद कर दिया। रही-सही कसर लॉकडाउन ने पूरी कर दी
Photo: Agnimirh Basu
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बिहार के मधुबनी जिले के ननौर गांव के रहने वाले विनीत मुखिया का पूरा परिवार मछली पालन करता है। वे लगभग 50 तालाबों में मछली पालते हैं। विनीत बताते हैं कि सामान्य स्थिति में जहां वे एक दिन में 100-150 किलोग्राम मछली तालाब से निकाला करते थे, लॉकडाउन के बाद महज 20 किलोग्राम ही निकालते हैं। कभी-कभी उसे भी बेचना मुश्किल पड़ जाता है।

दरभंगा जिले के उपेंद्र सहनी की भी यही दशा है। वह कहते हैं कि जो मछली 200-250 रुपए प्रति किलोग्राम बिकती थी, आजकल 100 रुपए प्रति किलोग्राम से कम कीमत पर बेचनी पड़ रही है, लेकिन फिर भी खरीददार नहीं मिल रहे।

भारत में लगभग 13 मिलियन मीट्रिक टन वार्षिक मछली उत्पादन होता है। यानी एक दिन में तकरीबन 35616 मीट्रिक टन उत्पादित होता है। लेकिन जबसे कोरोनावायरस संक्रमण भारत में पहुंचा और उसके बाद देश भर में लॉकडाउन लगा दिया गया, इससे मछली की बिक्री में तकरीबन 80 फीसदी की कमी आई है। 

हालांकि सरकार की तरफ से कुछ शर्तों के साथ मत्स्य उत्पादन क्षेत्र को लॉकडाउन से बाहर रखा गया। लेकिन मछली उत्पादन से जुड़े युवा कौशल बताते हैं कि लॉकडाउन से पहले ही यह अफवाह फैल गई थी कि मीट-मछली खाने से कोरोना होने की आशंका है। हालांकि सरकार ने इस तथ्य का खंडन भी किया। लेकिन लोगों ने मछली खरीदना कम कर दिया। अब चूंकि मछली मार्केट में भीड़भाड़ होती है, इसलिए सरकार ने मछली मार्केटों को भी बंद करा दिया था, लेकिन मछुआरे जो मछलियां नदी-तालाब से निकाल चुके थे और वे मार्केट तक भी नहीं पहुंची थी, वे खराब हो गई। 

वैशाली के मछली पालक नरेश, जो कई सारे तालाबों से तक़रीबन 150-200 क्विंटल सालाना मछली उत्पादन करते हैं। वह कहते हैं, लॉकडाउन के कारण उन्हें बहुत नुकसान उठाना पड़ रहा है। मछलियां मार्केट तक नहीं पहुंच पा रही हैं। थोड़ा-बहुत छोटे-छोटे हाटों के माध्यम से बिक रही हैं, वह भी नुकसान के साथ। मछलियों को ज्यादा दिन तक तालाब में छोड़ भी नहीं सकते। इसलिए जो मछली 150-200 रुपए किलोग्राम के हिसाब से बेचते थे, उन्हें 30-40 रुपए में बेचना पड़ रहा हैं। चूंकि मौसम गर्म होने लगा है इसीलिए अधिक मछली तालाब में एक साथ नहीं रखी जा सकती है।

केंद्रीय मत्स्य प्रौद्योगिकी संस्थान (सीआईएफटी), कोची के डायरेक्टर रविशंकर सी.एन. द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल मछली उत्पादन 2018-19 में लगभग 13.7 टन है, जिसमें से लगभग 35% का योगदान समुद्री क्षेत्र द्वारा किया जाता है। यह देखते हुए कि भारत में मशीनीकृत क्षेत्र औसतन केवल 45 दिनों के लिए संचालित होता है और कुल उत्पादन का लगभग 76% मैकेनाइज्ड क्षेत्र द्वारा योगदान दिया जाता है, मछली पकड़ने के मौसम के दौरान मासिक औसत समुद्री मछली उत्पादन लगभग 0.44 मिलियन टन आता है। सभी मैकेनाइज्ड सेक्टर और मोटराइज्ड सेक्टर में से आधे ने अपने ऑपरेशन को रोक दिया है, जिसके कारण औसत मासिक नुकसान 0.395 टन प्रति टन है। औसत थोक मूल्य 175 रुपये प्रति किलोग्राम रखने से कुल घाटा लगभग 6,913 करोड़ रुपए हो सकता है।

रिपोर्ट में आगे कहा गया है, लॉकडाउन ने देश के समुद्री मत्स्य क्षेत्र को भारी नुकसान पहुंचाया है। जिससे लगभग 224 करोड़ रुपए का दैनिक नुकसान हो रहा है। जबकि मासिक नुकसान 6,863 करोड़ रुपए बताया गया है। जिसमें यांत्रिक सेक्टर से सबसे ज्यादा 88 फीसदी यानी 6,008 करोड़ रुपए है, जबकि गैर-यांत्रिक सेक्टर में 12 फीसदी के साथ 830 करोड़ रुपए शामिल हैं।

गौरतलब है कि विश्व में मत्स्य उत्पादन के क्षेत्र में भारत दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। देश की जी.डी.पी. में मत्स्य पालन क्षेत्र 0.91 फीसदी योगदान के साथ 1.60 करोड़ से अधिक लोगों की आजीविका का प्रमुख स्रोत भी है।

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