केंद्र व छत्तीसगढ़ सरकार के बीच तकरार जारी, कैसे होगी धान की सरकारी खरीद

केंद्र सरकार ने इस बार उसना चावल लेने से इंकार कर दिया है, जिसके चलते छत्तीसगढ़ सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं
छत्तीसगढ़ में 1 दिसंबर से धान की खरीद शुरू हो गई। फोटो: अवधेश मलिक
छत्तीसगढ़ में 1 दिसंबर से धान की खरीद शुरू हो गई। फोटो: अवधेश मलिक
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छत्तीसगढ़ में 1 दिसंबर बुधवार से खरीफ विपणन वर्ष 2021-22 के लिए समर्थन मूल्य पर धान की खरीदी प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इस बार लगभग 105 लाख मीट्रिक टन रिकार्ड धान खरीदी का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन केंद्र और राज्य सरकार के बीच चावल खरीदी के मुद्दे पर गतिरोध जारी है।

पिछले साल करीब 92 लाख मीट्रिक टन धान राज्य सरकार ने समर्थन मूल्य पर खरीदी थी। राज्य सरकार किसानों से 15 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से धान खरीदती है।

इस खरीफ वर्ष में लगभग 22.66 लाख पंजीकृत किसानों से 2,399 सहकारी समितियों के माध्यम से धान खरीदा जा रहा है, जिसमें 88 धान उपार्जन केंद्र नए बनाए गए हैं। 

लेकिन दो मामले ऐसे हैं, जिनका समाधान नहीं हुआ तो धान खरीद का लक्ष्य हासिल करने में राज्य सरकार को खासी मशक्कत करनी पड़ सकती है। पहला बारदाना (बोरियों) का इंतजाम और दूसरा उसना चावल की खरीद। 

धान खरीद के लिए कुल 5.25 लाख गठान बारदानों की जरूरत है। केन्द्र सरकार ने राज्य में 2.14 लाख जूट बोरे (बारदानों ) की गठान सप्लाई का भरोसा दिलाया है। लेकिन जूट कमिश्नर के मार्फत अभी तक मात्र 86 हजार जूट के बोरे ही मिल पाए हैं।

बारदानों की कमी को दूर करने के लिए जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) और मिलरों से एक लाख बारदाने की व्यवस्था की गई है। राज्य सरकार के मुताबिक बाजार से लगभग 1.13 लाख गठान एचडीपीई-पीपी बारदाने की व्यवस्था की जा रही है।

राज्य सरकार ने किसानों से भी बोरों की व्यवस्था कर धान खरीद केंद्रों में आने को कहा है। हालांकि इसके बावजूद रायपुर समेत कई जिलों के केंद्रों में हालात यह है कि जल्द ही उचित संख्या में बोरें मुहैया नहीं मिले तो अगले एक हफ्ते से पहले खरीद केंद्रों पर धान की खरीद बंद हो सकती है।

दूसरी बड़ी समस्या है कि केंद्र सरकार ने कहा है कि केन्द्रीय पूल शतप्रतिशत अरवा चावल (61.65 लाख मीट्रिक टन) ही खरीदेगा। इस संदर्भ में राज्य के मुख्य सचिव अमिताभ जैन भारत सरकार को एक पत्र लिखा है, जिसमें इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि - विकेन्द्रीकृत उपार्जन योजना के तहत केंद्र सरकार के खाद्य विभाग ने एक एमओयू कर रखा है और जिसके तहत वह केंद्रीय पूल के लिए धान खरीद करती है। चूंकि विगत वर्षों में केंद्रीय पूल के तहत राज्य से उसना चावल लिया जाता है अतः उस स्थिति को बरकरार रखते हुए आगे भी लें।

25 नवंबर को राज्य सरकार द्वारा एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई थी जिसमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि उसना चावल एवं धान खरीदी के मुद्दे पर बन रहे गतिरोध को दूर करने भूपेश बघेल सरकार का पूरा कैबिनेट प्रधानमंत्री से मिलना चाहता है और सभी विवादास्पद मुद्दों को सुलझाना चाहता है। इसके लिए मिलने का समय मांगते हुए राज्य सरकार के मुख्य सचिव ने प्रधानमंत्री कार्यालय को चिट्ठी भी लिखी है। हालांकि सूत्र बताते हैं कि इस पर फिलहाल कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला है।

धमतरी के किसान नेता घनाराम साहू बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में अधिकांश किसान बेचने के लिए उसना चावल की खेती करता है। इसका कारण है कि उत्पादन ज्यादा होता है, और इसमें टूट कम निकलता है। अगर एक एकड़ खेती में अरवा चावल का उत्पादन जहां 20 बोरा होता है वहां उसना चावल की खेती करने में 30 से 35 बोरे तक आ जाता है। दूसरी बात अरवा के लिए अधिक सिंचित जमीन की आवश्यकता होती है।

युवा किसान नेता रोहितास मिश्रा कहते हैं कि जाहिर है कि जब लागत अधिक आ रही हो तो किसान इस ओर भागता है कि कम लागत में उत्पादन कैसे बढ़ाया जाए इसलिए वह उसना चावल की खेती करता है।

राजनांदगांव के किसान नेता मोतीलाल सिन्हा बताते हैं- मैं आज करीब 4-5 धान खरीदी केंद्रों पर गया हूं जहां पर कहीं बारदाने की संख्या 5-7 हजार है तो कहीं पर 10 हजार या फिर उससे अधिक। अगर बारदाने की सही समय में आपूर्ति नहीं होती है तो धान खरीदी में गतिरोध उत्पन्न हो सकता है।  

मोतीलाल सिन्हा कहते हैं - रही बात उसना या अरवा चावल खरीदने को लेकर इसमें कोई भी बहानेबाजी नहीं चलेगी। राज्य सरकार को सभी धान खरीदना होगा। वह पहले भी कह चुकी है। दोनों सरकारों को अपने मसले सुलझा लेने चाहिए। इस बार किसान और किसान संगठन लामबंद हैं और जरूरत पड़ी तो दबाव बनाने में भी पीछे नहीं रहेगी और इसकी जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी।    

दुर्ग के किसान नेता शत्रुघ्न कहते हैं देखिए इस बार किसान काफी मुश्किलों में  है एक तो बेमौसम बारिश और सूखा के चलते उसका फसल में नुकसान हुआ है और वो इस बार ज्यादा से ज्यादा उसना चावल बेचने में जोर देगा ताकि उसकी टूट कम निकले। नहीं फायदा तो उससे कम से कम नुकसान न हो। इसके बाद भी सरकार नहीं मानेगी तो फिर आंदोलन होगा।

एक सरकारी खाद्य विभाग के अधिकारी ने नाम न लेने के शर्त पर बताया कि देखिए उसना और अरवा का गतिरोध इसलिए नहीं है कि केंद्र सरकार खरीदना नहीं चाहती। बल्कि जब इस चावल को अन्य राज्यों को आबंटन किया जाता है तो वे लेने से मना कर देते हैं। इस बात को देखते हुए केंद्र सरकार ने इस बार अरवा चावल के लिए शर्त रखी है। दूसरी बात चावल की लगातार बंपर खरीददारी हो रही है और अब सरकार चाहती है चावल के साथ किसान चक्रीय फसल खेती ओर भी बढ़े।

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