बुंदेलखंड: मटर का उत्पादन अच्छा हुआ तो गिर गया भाव, किसान हलकान

बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले में किसानों ने अनुमान के मुकाबले लगभग तीन गुणा अधिक मटर की बुआई की
बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले की राठ मंडी में किसान मटर बेचने पहुंच रहे हैं। फोटो: अमन गुप्ता
बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले की राठ मंडी में किसान मटर बेचने पहुंच रहे हैं। फोटो: अमन गुप्ता
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पिछले दो साल से मटर का भाव बहुत अच्छा होने के कारण गंगाराम ने 12,500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से मटर का बीज खरीदा और अपने बीस बीघा खेतों में बोय दिया। मौसम ने भी साथ दिया, समय पर बारिश भी हुई, जिससे पैदावार भी अच्छी हुई। लेकिन अब जब फसल तैयार हो गई है तो भाव नहीं मिल रहे हैं।
मटर की फसल फरवरी में कटने लगती है। शुरुआत के एक हफ्ते भी बाजार में भाव ठीक था, लेकिन उसके बाद से दिन प्रतिदिन गिरता गया। वह दो महीने से भाव बढ़ने का इंतजार कर रहे हैं। और थक हार कर अब मंडी पहुंच गए हैं। 
उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के हमीरपुर जिले की सरीला तहसील के पथखुरी गांव के गंगा राम जैसा हाल बुंदेलखंड के उन लगभग सभी किसानों का है, जिन्होंने पिछले साल मटर के अच्छे भाव को देखते हुए इस बार जमकर मटर की बुआई की। कुछ क्षेत्रों (जहां भारी बारिश और ओलावृष्टि हुई थी) को छोड़कर पैदावार भी अच्छी हुई है, जिसके कारण बाजार में मटर का भाव बहुत नीचे है।
इसमें सबसे ज्यादा नुकसान हरे मटर की खेती करने वाले किसानों को हुआ है। हरा मटर, सफेद की तुलना में आम तौर पर मंहगा रहता है, लेकिन अबकी बार पैदावार ज्यादा होने और बुआई का रकबा ज्यादा होने से इसकी कीमतों में कमी है। 
कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार इस बार रबी के सीजन में दलहन और तिलहन के रकबे में करीब 15 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। दलहनी फसलों के लिए 1,26,039 हेक्टेयर और तिलहनी फसलों के लिए 19,916 हेक्टेयर का लक्ष्य तय किया गया था। जिसकी तुलना में इस बार 1,44,869 हेक्टयर दलहनी और 23,741 हेक्टेयर तिलहनी फसलें बोई गई थी।
दलहनी फसलों में सबसे ज्यादा रकबा मटर की फसल का था। जिला कृषि विभाग के अनुसार अनुमान लगाया गया था कि इस बार किसान 11,722 हेक्टेयर में मटर की बुवाई करेंगे, जबकि किसानों ने लक्ष्य से करीब तीन गुना ज्यादा 33,412 हेक्टेयर में मटर की बुवाई की।
मटर से इतर अन्य फसलों के निर्धारित लक्ष्य और वास्तविक आंकड़ों में बहुत मामूली अंतर है। मटर के अलावा दूसरी अन्य दलहनी फसलों में चना के लिए 80,773 हेक्टेयर जबकि वास्तविक आंकड़ों 79,887 में थोड़ी सी कमी है, वहीं मसूर के रकबा के रकबा भी बढ़ा है जिसके लिए 22,654 हेक्टेयर का लक्ष्य निर्धारित किया गया था जबकि वास्तविक आंकड़ों में करीब दस फीसदी की बढ़ोत्तरी के साथ 31,570 हेक्टेयर बुआई हुई।
दलहनी फसलों में सबसे ज्यादा सरसों को प्राथमिकता मिली जिसके लिए 15,670 हेक्टेयरका लक्ष्य निर्धारित किया गया था जबकि वास्तविक आंकड़े– 19225 के हेक्टेयर के हैं। महोबा जिले में भी मटर की फसल का रकबा 19,558 हेक्टेयर है। जो कि पहले की सालों की तुलना में ज्यादा है। 
टोला गांव ख्यालीराम भी मटर बेचने के लिए आए हुए हैं। भाव जानने के बाद असमंजस में हैं कि बेचें या फिर लौटाकर ले जाएं। बात करते हुए वे कहते हैं कि "किसान का साल भर का खर्च फसल पर ही टिका होता है। पैदावार अच्छी है लेकिन भाव नहीं है। 13 हजार का बीज खरीदे थे, साढ़े तीन क्विंटल के हिसाब से उत्पादन हुआ है, बताइए इसमें क्या बचेगा खाद सिंचाई और मेहनत अलग है। मटर के चक्कर में गेहूं की खेती भी नहीं की। अब खाने के लिए गेहूं खरीदना पड़ेगा वो अलग।    
राठ मंडी में गल्ला व्यापारी का काम करने वाले चंद्रप्रकाश बताते हैं, "ये मंडी आसपास के दो-ढाई सौ गांव को कवर करती है। सीजन के समय प्रतिदिन पांच से सात हजार क्विंटल करीब माल बिकने के लिए आता है। इस बार सबसे ज्यादा मटर ही बिकने आ रहा है। बीस साल से यहां काम कर रहा हूं लेकिन इतना मटर शायद ही कभी आया हो।" वे बताते हैं कि यहां सफेद मटर की खेती होती है जबकि हरे मटर को लोग कम पसंद करते थे।
पिछले कुछ सालों से यह पैटर्न बदला है। किसान अब सफेद की जगह हरे मटर को बोना पसंद कर रहे हैं, इसका कारण हरे मटर के भाव हैं जो सफेद मटर की तुलना तीन हजार रुपए तक मंहगा होता है। लेकिन इस बार यह उल्टा है सफेद मटर एक हजार रुपए तक मंहगा है जो कि साढ़े हजार रुपए तक बिक रहा है वहीं हरा मटर साढ़े तीन हजार से थोड़ा सा ऊपर है।

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