धान की बंपर फसल, फिर भी हरियाणा के किसानों पर मंडरा रहा कर्ज का खतरा

हरियाणा में कई जिलों में अभी भी धान की कटाई नहीं हुई है, जबकि खरीद एजेंसियों ने 25 अक्टूबर से धान की खरीद बंद कर दी है, जिसके खिलाफ जगह-जगह किसान सड़कों पर उतर आए हैं
हरियाणा के अंबाला स्थित नारायणगढ़ मंडी में बिखरा धान। फोटो: मलिक असगर हाशमी
हरियाणा के अंबाला स्थित नारायणगढ़ मंडी में बिखरा धान। फोटो: मलिक असगर हाशमी
Published on

मलिक असगर हाशमी

हरियाणा सरकार के ‘खरीद नीति’ से विमुख होने से धान की बंपर पैदावार के बाद भी सूबे के किसानों के कर्ज में डूबने का खतरा पैदा हो गया है। प्रदेश के किसान अपनी फसल लेकर मंडी-मंडी घूम रहे हैं, फिर भी खरीदार नहीं मिल रहे हैं। अगर कोई खरीदना भी चाहता है तो औने-पौने। दूसरी तरफ सरकार की लापरवाही से हरियाणा का धान मंडियों में पहुंचने से पहले ही पंजाब, यूपी और बिहार के किसान अपनी फसल बेचकर निकल गए।

समय से पहले खरीद का लक्ष्य पूरा होने से खरीद एजेेंसियां बेहद खुश हैं और उन्होंने धान की खरीद 25 अक्तूबर को ही बंद कर दी है। मगर इसे किसान बेहद गुस्साए हुए हैं। उनका जगह-जगह प्रदर्शन कर दौर चल रहा है तथा विपक्षी दलों व किसान संगठनों ने जल्द खरीद शुरू नहीं होने पर प्रदेश की नव-नवेली भाजपा-जजपा सरकार की बड़े आंदोलन से चूलें हिलाने की चेतावनी दी है। हरियाणा सरकार के धान की खरीद में हड़बड़ी दिखाने से सूबे के चावल का विदेशों में निर्यात के लक्ष्य से भटकने का भी खतरा पैदा हो गया है। प्रदेश सरकार ने इस सीजन के लिए धान की खरीद का जो लक्ष्य निर्धारित किया था, उससे कहीं अधिक खरीद कर ली गई है।

आंकड़ों के मुताबिक, सूबे के विभिन्न मंडियों में अब तक 57.44 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा धान जा खरीदा चुका है। सरकारी खरीद एजेंसियों ने 55.19  और मिलरों व डीलरों ने 2.24 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद की है। खरीद एजेंसियों में सर्वाधिक खाद्य, नागरिक आपूर्ति विभाग ने 30.59, हैफेड ने 16.95 और भंडागार निगम ने 7.62 लाख मीट्रिक टन खरीदा है।

दूसरी तरफ हरियाणा के खेतों में अभी भी कुल फसल का 30 फीसदी धान लहलहा रहा है। केवल अंबाला जिले के भानो खेड़ी, ठरवा माजरी, घूरखड़ा, उगाड़ा, बाड़ा, धुरानी जैसे धान उपजाउ गांवों के हजारों एकड़ में फसल खड़ी है। बाकी क्षेत्रों से कटनी के बाद प्रदेश की विभिन्न मंडियों में फसल तो पहुंच रही है, पर खरीदा नहीं जा रहा है। 25 अक्तूबर को अचानक खरीद बंद होने से किसान गुस्से में आकर हिसार मार्ग घंटों जाम कर चुके हैं। कैथल और यमुनानगर की मंडियों में किसानों का धरना-प्रदर्शन चल रहा है। भारतीय किसान यूनियन और अखिल भारतीय किसान सभा जैसे किसान संगटनों ने अल्टीमेटम दिया है कि यदि दो दिनों में खरीद शुरू नहीं हुई तो सूबे में स्थिति विस्फोटक हो जाएगी।

किसान सड़कों पर उतर जाएंगे। किसानों का कहना है कि महंगी खाद, डिजल, कृषि यंत्र के कारण इस बार धान की उत्पादन लागत अन्य वर्षों की तुलना में अधिक है। कर्ज लेकर किसी तरफ बंपर उपजाउ करने मंे सफल रहे, पर धान की खरीद में सरकार द्वारा जल्दबाजी दिखाने से उनपर कर्ज का भारी बोझ पड़ने संभावना प्रबल हो गई है। बल्लभगढ़ के  गांव दयालपुर के किसान महेश, साहुपुरा के खेमचंद आदि का कहना है कि कारोबारी उनकी मजबूरियों का लाभ उठाने के लिए निर्धारित मूल्य से तीन से पांच सौ रूपये कम में धान खरीद रहे हैं।

सरकार वायदे से मुकरी

हाल में संपन्न हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और जननायक जनता पार्टी ने किसानों और कृषि के उत्थान के लिए लंबी चौड़ी घोषणाएं की थीं। उनमें किसानों का एक-एक दाना खरीदने का वादा भी शामिल है। मगर वादे के विपरीत धान की खरीद एक सप्ताह से बंद है और किसान सड़कों पर हैं। फिर भी प्रदेश सरकार के कानों पर जूंह नहीं रंेग रही है। काफी हंगामे के बाद सरकार ने 30 अक्तूबर से खरीद शुरू भी की तो केवल उन किसानों के लिए जिन्हांेने सरकारी पोर्टल ‘ मेरी फसल, मेरा ब्योरा’ पर अपना नाम पंजीकृत कराया हुआ है। ऐसे किसानों की संख्या बहुत थोड़ी है। इस लिए प्रदेश के तकरीबन सभी मंडियों के बाहर भारी संख्या में किसान बैठे हैं कि सरकार शायद फिरसे खरीद शुरू कर दे।
 
खरीद नीति पर अमल नहीं
प्रदेश सरकार वर्षों से प्रदेश के किसानों की सफल खरीद नीति पर अमल करती रही है। धान की खरीद में ऐसा नहीं दिखा। बगैर अपने किसानों की फसल का इंतजार किए खरीद शुरू कर कर दी गई। हरियाणा में पंजाब, उत्तर प्रदेश तथा बिहार के मुकाबले धान की रोपाई और कटाई देरी से होती है। इसलिए मंडी तक फसल भी देरी से पहंुचती है। पंजाब में आढ़तियों एवं मिलरों की हड़ताल के चलते वहां के दूर-दराज के किसान भी अपनी फसल लेकर हरियाणा की मंडियों में बेचने पहुंच गए। यूपी में हरियाणा से लगते जिलों मंे एक अक्तूबर से धान की खरीद शुरू है। मगर वहां के मुकाबले यहां फसल की कीमत अच्छी मिलने से यूपी के किसान भी ट्रकों में भरकर अपना माल लेकर हरियाणा चले आए। हरियाणा में इस बार धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1835 रूपये प्रति क्विंटल है। इसके मुकाबले यूपी और बिहार में समर्थ मूल्य में तकरीबन 185 रूपये कम बताया जा रहा है, जिसके चलते हरियाणा में खरीद शुरू होते ही वहां के किसानों ने यहां की मंडियों का रूख कर लिया। उन्हें एक ट्रक में तकरीबन 80 हजार रूपये का फायदा हुआ है। 29 अक्तूबर को अंबाला के नारायणगढ़ मंडी में धान से भरे ऐसे सात ट्रक पड़े गए थे।

निर्यात को लगेगा झटका
विदेशों में हरियाणा और पंजाब के चावलों की भारी मांग है। विशेष कर ईरान, अरब देशों, चीन और जापान में इसकी खासी खपत है। पिछले साल जिंग से व्यापार खुलने के बाद भारत से चीन को 100 टन गैर-बासमती चावल निर्यात किया था, जिसमंें सभी राज्यों में हरियाणा का योगदान सर्वाधिक था। भारत निकट भविष्य में चीन को 500 टन से अधिक चावल निर्यात करने की तैयारी में है, जिसमें अधिक हिस्सा हरियाणा के चावल का होगा। चीन द्वारा स्वीकृत गैर-बासमती चावल के उत्पादन में उत्तरी राज्यों में हरियाणा के उत्पादक अव्वल है। चीन ने 20 मीलों को चावल की आपूर्ति के लिए स्वीकृति दी है जिसमें 12 हरियाणा के हैं। अन्य राज्यों में पंजाब के चार, यूपी के दो एवं दिल्ली तथा जम्मू कश्मीर के एक-एक मील को स्वीकृति मिली है। दूसरी तरफ गैर चीनी देशों में हरियाणा के बासमती की बहुत मांग है। विशेषकर ईरान और अरब देशों में।

हालांकि ईरान पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध के बाद भारत के उत्पाद वहां नहीं पहुंच रहे हैं, इसके बावजूद विदेशों में हरियाणा के बासमती चावल की मांग घटी नहीं है। ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के प्रधान विजय सेतिया के मुताबिक, बासमती के निर्यात में भारत की दुनिया में 85 प्रतिशत भागीदारी है, जिसका बड़ा हिस्सा हरियाणा से जाता है। मगर प्रदेश की मंडियों में अधिकांश गैर हरियाणवी धान की खरीद होने से इस बार हरियाणा से बासमती और गैर-बासमती के निर्यात पर खतरा मंडराने लगा है। यहां से पहुंचने वाला गैर हरियाणवी चावल विदेशियों को शायद ही पसंद आए।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in