बजट 2021-22 : कृषि कर्ज का प्रवाह बढ़ रहा लेकिन घट रही लघु और सीमांत किसानों की हिस्सेदारी

कृषि कर्ज प्रवाह के लक्ष्य बढ़ाने और पूरा होने का श्रेय व दावा सरकारें करती हैं जबकि सच्चाई है कि इसकी प्राथमिकता में सीमांत और छोटे किसानों हैं और उन्हें इसका फायदा बहुत कम मिलता है।
बजट 2021-22 : कृषि कर्ज का प्रवाह बढ़ रहा लेकिन घट रही लघु और सीमांत किसानों की हिस्सेदारी
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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि वित्त वर्ष 2021-22 में कृषि कर्ज के प्रवाह का लक्ष्य बढ़ाकर 16.5 करोड़ रुपये रखा गया है। बजट भाषण में भले ही सरकार ने कृषि कर्ज प्रवाह को बढ़ाने का श्रेय लेने की कोशिश की लेकिन बीते कुछ वर्षों में इस कृषि कर्ज प्रवाह में छोटे और सीमांत किसानों की हिस्सेदारी कम होती गई है। कोरोना संकट के बाद छाई आर्थिक सुस्ती और फसलों के उचित दाम न मिलने के बाद ऐसे किसानों को छोटी अवधि वाले सस्ते ब्याज दरों के कर्ज वाले सहयोग की आस थी लेकिन जानकारों के मुताबिक इस पहलू पर  बजट निराश करने वाला रहा है।
आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 में बताया गया है कि वर्ष 2019-20 में कृषि कर्ज प्रवाह का लक्ष्य 13.5 लाख करोड़ रखा गया था। जबकि लक्ष्य से अधिक कुल 13,92,469.81 करोड़ रुपये बांटे गए। वहीं, वित्त वर्ष 2020-21 में यह लक्ष्य बढ़ाकर 1,500,000 करोड़ रखा गया था वहीं, नवंबर, 2020 तक कुल 9.75 लाख करोड़ रुपये ही बांटे जा सके जो लक्ष्य का महज करीब 65 फीसदी ही रहा। बजट में लक्ष्य पूरा होने को लेकर ताजा आंकड़े नहीं दिए गए हैं, लेकिन एक छमाही से ज्यादा वक्त में कुल इतनी राशि बैंकों के जरिए बांटी गई।  
कृषि कर्ज प्रवाह दरअसल सरकार की तरफ से बैंकों को दिया जाने वाला एक लक्ष्य है। बैंक को ऐसे सभी किसानों को छोटी अवधि का सस्ते दर वाला लोन देना होता है जो जरुरतमंद हैं। आरबीआई गाइडलाइन के तहत यह पूरी तरह बैंक पर निर्भर है।  लेकिन यह किताबी बात ज्यादा है। जरुरतमंदों को समुचित तौर पर इस कृषि कर्ज प्रवाह का फायदा नहीं मिल पाता है। 
ऑव इंडिया किसान संघर्ष को-ऑर्डिनेशन समिति के राष्ट्रीय समूह सदस्य किरण कुमार विस्सा ने डाउन टू अर्थ से कहा कि एक सामान्य तौर पर कृषि कर्ज प्रवाह का लक्ष्य बैंकों के जरिए पूरा कर लिया जाता है, लेकिन यह समझ से परे है कि बजट भाषण में इस पर क्यों जोर दिया गया। जिस लक्ष्य को बढ़ाने की बात कही गई है यदि बीते कुछ वर्षों के रिकॉर्ड देखें तो यह लक्ष्य हर वर्ष प्राकृतिक तरीके से बढ़ जाते हैं। सच्चाई यह है कि सिर्फ 30 से 40 फीसदी छोटे और सीमांत किसानों को ही बैंकों से ऐसी मदद मिल पाती है और इस क्रेडिट सिस्टम में बैंक ज्यादातर सबल को ही मदद करते हैं। 
खेती-किसानी में लागत के लिए जो हर सीजन में शुरुआती पूंजी चाहिए वह छोटे और सीमांत किसानों के लिए बड़ी मुसीबत का विषय है। ऐसे में सेठ-साहूकारों से इतर जब बैंकों से उन्हें छोटी अवधि वाले कर्ज की राहत मिलती है तो वे ज्यादा आत्मविश्वासी और मजबूत होते हैं।
कोरोनाकाल में ऐसे कई मामले सामने आए जब सीमांत या छोटी जोतत वाले किसानों को बैंकों से मदद नहीं मिल पाई। कोरोनाकाल के दौरान की डाउन टू अर्थ की यात्रा में यह तथ्य सामने आया था कि कई किसानों ने कहा कि कुछ हजार रुपयों के लिए उन्हें अपने खेत गिरवी रखने पड़े हैं। 
ऐसे घट रही हिस्सेदारी 
नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रुरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2016-17 में कुल  10,65,755.67 रुपये बैंकों के जरिए ऋण बांटे गए इनमें 50.14 फीसदी यानी  5,34,351.43 रुपये ही छोटे और सीमांत किसानों को मिल पाया। जबकि 2017-18 में  11,62,616.98 का ऋट बांटा गया और 49.93 फीसदी यानी  5,80,457.42 रुपए ही छोटे व सीमांत किसानों को मिल पाए। 2018-19 में  12,54,762.20  (प्रोविजनल) रुपये का ऋट बांटा गया और इसमें 49.90 फीसदी यानी  6,26,087.53 (प्रोविजनल) ही छोटे और सीमांत किसानों को मिल पाए। 

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