बजट 2020-21: किसान रेल तो चलेगी लेकिन क्या किसान वहन कर सकेंगे खर्च?
वित्त मंत्री ने अपने भाषण में इस बात की घोषणा की कि दूध, मांस और मछली जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं के लिए ऐसी ट्रेन चलाई जाएगी जो कम से कम स्थानों पर रुकेगी। इसे पीपीपी मॉडल के तहत भारतीय रेलवे किसान रेल के नाम से चलाएगा। ध्यान रहे कि भारतीय रेलवे को भारत की जीवन रेखा कहा जाता है। बजट में पहली बार रेल किसान की बात कही गई है। हालांकि इस संबंध में देखने वाली बात होगी कि इस स्टोरेज का खर्च किसान वहन करने की स्थिति में होगा क्या? इस संबंध में बुलंदशहर के किसान छोटेलाल चौहान कहते हैं कि पहले तो यह देखना होगा कि किसान अपना सामान रेलवे स्टेशनों तक पहुंचाने की व्यावस्था होगी और फिर सही है कि जब तक किसानों की आय में बढ़ोतरी के उपाय नहीं किए जाएंगे तब तक इस प्रकार की जितनी भी ट्रेने सरकार चला ले किसान को लाभ होने से रहा। वह कहते हैं कि सरकार की पहल अच्छी है लेकिन इस पहल के आसपास की चीजों को भी सरकार दुरूस्त करना होगा।
वित्त मंत्री ने घोषणा की है कि चार रेलवे स्टेशनों का पुनर्विकास और 150 यात्री गाड़ियों को निजी व सरकारी भागीदारी से चलाया जाएगा। ध्यान देने वाली बात है कि अब तक केवल एक स्टेशन यानी भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन इस मॉडल के आधार पर तैयार किया गया था। अब इनकी संख्या बढ़ाकर चार की गई है। चूंकि पिछले बार जब इसकी घोषणा की गई थी तो बताया गया था कि इसका लीज टाइम 45 साल होगा। ऐसे में बड़ी कंपनियों ने इसके लिए निविदाएं नहीं भरीं। इस संबंध में रेलवे वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष रविंदर गुप्ता कहते हैं कि इससे रेलवे ने इस बार लीज की समयाअवधि अब 99 साल कर दी है। ऐसे में उन्हें उम्मीद होगी कि अब बड़ी सख्या में कंपनियां टेंडर भरेंगी।