खरपतवार के साथ जैव विविधता को भी पहुंचा रहा है नुकसान ग्लायफोसेट, किसान रहें सचेत

अमेरिका की कीटनाशक बनाने वाली कंपनी मोनसैंटो द्वारा बनाया जाने वाला यह खरपतवार नाशक 'राउंडअप' पहले भी विवादों में रह चुका है, जिसका इस्तेमाल भारत जैसे देशों में खूब होता है
Photo: Meeta Ahlawat
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आज हम खाद्य उत्पादकता को बढ़ाने की उस अंधी दौड़ में भाग रहे हैं जिसमें हमें सही गलत का अहसास ही नहीं हो रहा। सिर्फ मुनाफा कमाना ही एकमात्र लक्ष्य रह गया है। भले ही वो मुनाफा हमें दूसरों के स्वास्थ्य और पर्यावरण की कीमत पर ही मिल रहा हो, हम उससे भी गुरेज नहीं कर रहे हैं।

यदि आप भी अपने खेतों में खरपतवार को खत्म करने के लिए ग्लायफोसेट का इस्तेमाल करते हैं तो होशियार हो जाइये। यह खरपतवारनाशी खरपतवार के साथ-साथ जैव विविधता को भी नुकसान पहुंचा रहा है। इससे जुड़ा अध्ययन अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित हुआ है।

मैकगिल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का मानना है कि दुनिया में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाले ग्लाइफोसेट आधारित हर्बिसाइड, 'राउंडअप' जैव विविधता का नुकसान पहुंचा सकता है। जिससे इकोसिस्टम आसानी से प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन की चपेट में आ सकता है। गौरतलब है कि इस हर्बिसाइड को अमेरिका की कीटनाशक बनाने वाली कंपनी मोनसैंटो बनाती है। जो पहले भी इसके कारण विवादों में रह चुकी है। मोनसैंटो पर उसके उत्पाद 'राउंडअप' से कैंसर होने को लेकर करीब 13 हजार मुकदमे दर्ज हैं। जिनमें से तीन मामलों में वो केस हार चुकी है।

किस तरह इकोसिस्टम पर असर डाल रहा है यह हर्बिसाइड

एंड्रयू गोन्जालेज जोकि मैकगिल यूनिवर्सिटी में जीव विज्ञान के प्रोफेसर हैं और इस अध्ययन से जुड़े हुए हैं, ने बताया कि 1990 के बाद से इस हर्बिसाइड के इस्तेमाल में बड़ी तेजी से उछाल आया है। किसान अपनी फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए बड़ी मात्रा में इस खरपतवारनाशी का प्रयोग कर रहे हैं। जिससे वातावरण में ग्लाइफोसेट की मात्रा बढ़ गई है। उदाहरण के लिए, क्यूबेक में, मोंटेरेगी नदियों में ग्लाइफोसेट के निशान पाए गए हैं। जो इसके इकोसिस्टम पर इसके पड़ने वाले प्रभाव को इंगित करते हैं।

नदी के पारिस्थितिक तंत्र पर इसके प्रभावों को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने तालाब पर परीक्षण किया हैं। जिसमें उन्होने हर्बिसाइड के फाइटोप्लांकटन (शैवाल) पर पड़ने वाले प्रभावों को उजागर किया है। फाइटोप्लांकटन खाद्य श्रृंखला के सबसे निचले हिस्से में आते हैं। पर वो पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जोकि अन्य जीवों के विकास के लिए बड़े जरुरी होते हैं।

शोधकर्ताओं के अनुसार पहले तो इस हर्बिसाइड का पूरे इकोसिस्टम पर सीमित असर देखने को मिला पर जैसे-जैसे संदूषण बढ़ता गया जीव उसके प्रति प्रतिरोधी होते गए। पर इन सबके बावजूद इसके चलते फाइटोप्लांकटन की विविधता पर व्यापक असर देखने को मिला। ग्लायफोसेट के चलते इकोसिस्टम की कार्यप्रणाली पर भी असर पड़ा था। साथ ही वो अन्य प्रदूषकों का सामना करने की क्षमता खो चुके थे। प्रो गोन्जालेज ने बताया कि दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन और बढ़ते प्रदूषण के चलते यह और भी ज्यादा चिंताजनक है।

यह हर्बिसाइड ने केवल इस फसल का उपभोग करने वाले के लिए खतरा है। बल्कि इनको उगाने वाले किसानों में भी कैंसर जैसी बीमारियों का कारण बनता है। साथ ही यह पर्यावरण और जैव विविधता को भी नुकसान पहुंचा रहा है। यह सही है की खाद्य उत्पादकता को बढ़ाना जरुरी है, क्योंकि दुनिया के करोड़ो लोगों को आज भी भरपेट भोजन नहीं मिल रहा है। पर इसका मतलब यह नहीं है कि हम इसके लिए विकास की अंधी दौड़ में शामिल हो जाएं। इसलिए जितना हो सके इस के इस्तेमाल से बचना चाहिए। इसकी जगह जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। साथ ही प्राकृतिक रूप से उपलब्ध कीटनाशकों और इन्हें रोकने के उपायों को अमल में लाना चाहिए। इस पर ने केवल हमारा आज निर्भर है, बल्कि हमारा कल भी इसी पर टिका हुआ है।

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