किसानों को कर्ज के जंजाल में न फंसा दे बिहार का नया फसल चक्र

बिहार के 40 गांवों में नए फसल चक्र की शुरुआत की गई, लेकिन सरकार के इस तरीके पर विशेषज्ञ सवाल उठ रहे हैं। आइए, जानते हैं क्या हैं विशेषज्ञों के सवाल-
बिहार के औरंगाबाद जिले के ओबरा में जीरो टिलेज विधि से स्ट्राबेरी की खेती करता एक किसान। इस विधि से खरपतवार का तो नियंत्रण हो जाता है, मगर मिट्टी की उर्वरकता प्रभावित होती है। फोटो: पुष्य मित्र
बिहार के औरंगाबाद जिले के ओबरा में जीरो टिलेज विधि से स्ट्राबेरी की खेती करता एक किसान। इस विधि से खरपतवार का तो नियंत्रण हो जाता है, मगर मिट्टी की उर्वरकता प्रभावित होती है। फोटो: पुष्य मित्र
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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 20 नवंबर को राज्य में नये फसल चक्र कार्यक्रम की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन की वजह से राज्य के किसानों का काफी नुकसान हो रहा था, इसलिए राज्य में मौसम के अनुरूप नये फसल चक्र को शुरू करने की जरूरत थी, इसलिए इसे राज्य के आठ जिलों के 40 गांवों में शुरू किया जा रहा है। बाद में इसे पूरे राज्य में लागू कराया जायेगा। उन्होंने बारिश की कमी के कारण खास तौर पर धान की खेती के प्रभावित होने की बात की। राज्य के कृष मंत्री पहले ही कह चुके हैं कि इस नये फसल चक्र के तहत राज्य में धान के बदले मक्का, गन्ना और दूसरी व्यावसायिक फसलों को बढ़ावा दिया जायेगा। मगर राज्य के कृषि विशेषज्ञ यह सवाल भी उठा रहे हैं।

दरअसल, इसे नये फसल चक्र की योजना में बिहार सरकार के दो कृषि विश्वविद्यालय, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद पूर्वी क्षेत्र के साथ-साथ बोरलॉग इंस्टीच्यूट ऑफ साउथ एशिया की भूमिका रही है। इन्हें ही इसे लागू भी करना है। इस योजना के मुताबिक, खेती के शून्य जुताई (जीरो टिलेज) प्रक्रिया को शामिल किया जायेगा, ताकि पौधे के जड़ों में नमी बनी रहे। 

बिहार में खेती-किसानी के मसले पर लगातार सक्रिय रहने वाले इश्तेयाक अहमद इस पर सवाल उठते हुए कहते हैं कि मशीनों के बगैर भी और बिना रासायनिक खाद के खेती की जा सकती है। किसानों को हाइब्रिड बीजों की भी जरूरत नहीं है। वे अपने पारंपरिक बीजों से भी खेती कर सकते हैं। मगर सरकार की मंशा मशीनीकरण और हाइब्रिड बीजों का इस्तेमाल बढ़ाना है। यह किसानों के लिए भी ठीक नहीं है और पर्यावरण के भी खिलाफ है। हाइब्रिड बीज और रासायनिक खाद के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण पंजाब के जमीन की जो दुर्दशा हुई है, उससे सब वाकिफ हैं। यह कहना एक छलावा है कि मक्का या गन्ना में पानी की जरूरत कम होगी। जिस विधि से खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है, वह आखिरकार भूजल स्तर को ही प्रभावित करेगा।

इश्तेयाक अहमद की चिंता इसलिए जायज लगती है, क्योंकि फसल चक्र परिवर्तन की योजना की घोषणा करते हुए मुख्यमंत्री ने खुद भी कहा है कि इस तरह की खेती के लिए रोटरी मल्चर, स्ट्रॉ रिपर, स्ट्रॉ बेलर और रिपर कम बाइंडर जैसे यंत्रों की आवश्यकता होगी और इन यंत्रों की खरीद के लिए राज्य सरकार किसानों को अनुदान भी दे रही है। जरूरत पड़ी तो अनुदान की राशि बढ़ाई भी जाएगी। इस मौके पर उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि पिछले तीन वर्षों में फसल क्षति पर राज्य सरकार को 5962 करोड़ रुपये की राशि अनुदान के रूप में बांटना पड़ी है। इसलिए नया फसल चक्र जरूरी है।

मगर कृषि नीति विश्लेषक अफसर जाफरी कहते हैं कि इस योजना से अंततः अंतरराष्ट्रीय स्तर के हाईब्रिड बीज व्यापारियों को ही लाभ होगा, जिनकी संख्या अब मुश्किल से चार रह गयी है। अब यही लोग हाईब्रिड बीज के साथ रासायनिक उर्वरक और हर्बीसाइड के भी उत्पादक हैं। बिहार जैसे राज्य में अभी भी हाईब्रिड बीजों का न्यूनतम इस्तेमाल होता है, लोग अपने पारंपरिक बीजों पर ही निर्भर रहते हैं। खेती की लागत बहुत कम है, इसलिए फसल क्षति होने पर भी किसान खुदकुशी नहीं करते। मगर अब जो नई प्रक्रिया शुरू हो रही है, वह खेती की लागत को कई गुना बढ़ा देगी। इससे किसान कर्ज के तले डूबेंगे और यहां भी विदर्भ और बुंदेलखंड जैसी स्थिति आ सकती है।  

उन्होंने यह भी कहा कि जीरो टिलेज वाली खेती के लिए बड़े भूखंड की जरूरत होती है, यह बड़े और पूंजी वाले किसानों से ही मुमकिन है। जबकि बिहार में अभी भी अधिकतर किसान छोटी जोत वाले और सीमांत किसान हैं। ऐसे में या तो वे कर्ज के शिकार होंगे या अपनी जमीन को बड़े किसानों को लीज पर देने और खेती छोड़ने के लिए मजबूर होंगे। इसलिए इस योजना को लागू करते वक्त काफी सतर्क रहने की जरूरत है।

फिलहाल इस योजना के तहत बिहार के आठ जिले, मधुबनी, खगड़िया, भागलपुर, बांका, मुंगेर, नवादा, गया और नालंदा जिले के पांच-पांच गांवों में नये फसल चक्र की शुरुआत होगी। 

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