45 हजार किसानों का ही धान खरीद पाई बिहार सरकार

बिहार सरकार की उदासीनता की वजह से किसान अपनी धान बिचौलियों को औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर हैं
धान की फसल तैयार करते किसान। फोटो: पुष्यमित्र
धान की फसल तैयार करते किसान। फोटो: पुष्यमित्र
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धान की सरकारी खरीद का मौसम आधे से अधिक बीत चुका है, मगर अभी तक बिहार के सिर्फ 45 हजार किसान अपनी धान की फसल को सरकार को बेचने में सफल हो पाये हैं। सिर्फ इन्हें ही सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य 1835 रुपये का लाभ मिल सका है। शेष बचे ज्यादातर किसानों को अपनी खरीफ की पैदावार को बहुत कम कीमत में स्थानीय कारोबारियों को बेचने को मजबूर होना पड़ा है।

बिहार सरकार ने इस सीजन में 30 लाख मीट्रिक टन धान खरीदने का लक्ष्य रखा था, मगर 3 फरवरी 2020 तक सिर्फ 3.35 लाख मीट्रिक टन धान ही खरीद सकी है। पिछले साल सरकार 31 मार्च को खत्म होने वाले सीजन में भी सिर्फ दो लाख नौ हजार किसानों का 14.16 लाख मीट्रिक टन धान ही खरीद पायी थी। राज्य के अधिकतर धान उत्पादक किसान उस वर्ष भी सरकार को अपनी उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य में बेच पाने में विफल रहे थे और उन्हें एक हजार से 12 सौ रुपये प्रति क्विंटल की दर से अपना धान बिचौलियों को बेचने पर मजबूर होना पड़ा था।

देश के दूसरे राज्यों की तरह बिहार में भी सरकार किसानों का धान 8463 स्थानीय सहकारी समितियों जिन्हें यहां पैक्स कहा जाता है, के जरिये हर साल 15 नवंबर से 31 मार्च के बीच की अवधि में खरीदती है। मगर हर बार ज्यादातर किसान अपना धान न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेचने में विफल रहते हैं। राज्य के सहकारिता विभाग से 11,50, 528 किसानों ने अपना निबंधन खरीफ की फसल बेचने के लिए करा रखा है, मगर पिछले साल भी महज दो लाख किसान की अपना धान सरकार को बेचने में सफल हो पाये. इस साल तो यह गति और भी सुस्त है।

खरीद में सुस्ती की वजह बताते हुए पूर्णिया जिले के किसान नवीन कुमार ठाकुर कहते हैं, दरअसल राज्य के सहकारिता विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार की वजह से अधिकतर किसान अपना धान न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेच पाने में विफल रहते हैं। कुछ साल पहले तक धान में नमी का बहाना बनाकर किसानों का धान खरीदने से मना कर दिया जाता था। मगर अब तो सरकार ने यह नियम भी बना दिया है कि पैक्सों को किसानों का धान खरीदना ही खरीदना है, फिर बाद में वे ड्रायर से इसे सुखा सकते हैं। इसके लिए पैक्सों को ड्रायर भी उपलब्ध कराया गया है। 17 से 19 फीसदी नमी वाले धान को भी खरीदने का नियम बना दिया गया है। फिर भी पैक्स संचालन किसानों को नमी का बहाना बना कर मना कर देते हैं। इस साल दिसंबर महीने में हुई बारिश की वजह से भी धान की फसल में नमी की शिकायत बढ़ गयी है।

हालांकि खरीद में सुस्ती की कई वजहें हैं. धान का कटोरा कहे जाने वाले शाहाबाद इलाके के किसान नेता शेषनाथ सिंह बताते हैं कि उनके इलाके में इस बार अब तक धान की खरीद शुरू भी नहीं हो पायी है। पैक्स के संचालक चुनावों में ही उलझे रहे, इस बीच किसानों ने मजबूरी में अपना धान औने-पौने दर पर बिचौलियों को बेच दिया। वह कहते हैं कि पैक्सों में व्याप्त भ्रष्टाचार भी एक बड़ी वजह है, इसलिए जिन किसानों का धान सरकारी व्यवस्था की तहत खरीदा भी जाता है, उन्हें प्रति क्विंटल सौ से दो सौ रुपये कम राशि दी जाती है, जो किसान इससे इनकार कर देते हैं, उनका धान पैक्स नहीं लेती।

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