22 मार्च, 2020 को जब बिहार में पहली दफा लॉक डाउन की घोषणा हुई थी तो बिहार सरकार ने घोषणा की थी कि इस अवधि में हर गरीब को तीन महीने पर मुफ्त अनाज और प्रति माह एक किलो दाल उपलब्ध करायेगी। उस घोषणा के लगभग डेढ़ माह बीत चुके हैं, दो लॉक डाउन के 40 दिन गुजारने के बाद हम तीसरे लॉक डाउन में हैं, मगर बिहार सरकार अभी तक अपने गरीबों को मुफ्त दाल उपलब्ध नहीं करा सकी है। गरीबों को दाल उपलब्ध कराने का काम बिहार सरकार के राज्य खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम और नेफेड के बीच चली प्रक्रियाओं में ही उलझा है। जबकि ठीक इसी समय राज्य के दाल किसान अपनी उपज को बेचने के लिए परेशान हैं, उन्हें खरीदार नहीं मिल रहा।
बिहार में लॉक डाउन की घोषणा देश से दो दिन पहले 22 मार्च को ही हो गयी थी। उसी रोज मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य के गरीबों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराने की घोषणा की थी। इसके तहत प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के अंतर्गत गरीबों को मुफ्त में एक किलो दाल भी उपलब्ध कराना है। 28 मार्च को ही इस काम के लिए नेफेड को राज्य सरकार ने नोडल एजेंसी बनाया था। उसे कुल 16,877.461 मीट्रिक टन दाल उपलब्ध कराना था। मगर आज की तारीख तक गरीबों को वह मुफ्त का दाल नसीब नहीं हुआ है।
राज्य के गरीबों के बीच मुफ्त दाल वितरण में विलंब क्यों हो रहा है, इस बारे में खाद्यान्न एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग का कोई अधिकारी साफ-साफ जानकारी देने से हिचक रहा है। मगर कुछ अधिकारियों ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर यह जानकारी दी है कि ऐसा इसलिए हो रहा है कि राज्य में दाल वितरण की प्रक्रिया पहली बार हो रही है, इसलिए यह विलंब हो रहा है। अब तक राशन दुकानों पर खाद्यान्न के नाम पर चावल और गेहूं ही बंटता रहा है। राशन डीलरों को यह खाद्यान्न एफसीआई के जरिये उपलब्ध होता रहा है। मगर इस बार दाल वितरण के लिए नेफेड को नोडल एजेंसी बनाया गया है। नेफेड के पास बिहार में हर जगह दाल उपलब्ध कराने की व्यवस्था नहीं है, इसके लिए अलग से व्यवस्था तैयार की गयी है।
ऐसी जानकारी मिली है कि पहले नेफेड चना दाल की आपूर्ति करना चाहता था और बिहार सरकार अरहर की दाल बंटवाना चाहती थी। इस वजह से मामला कई दिनों तक अटका रहा। फिर नेफेड सहमत हुआ और गुजरात से अरहर दाल खरीदकर उसकी मिलिंग की प्रक्रिया शुरू की गयी। 22 अप्रैल को इन बाधाओं के दूर होने पर विभाग की ओर से राज्य के 11 केंद्रों तक नेफेड को दाल उपलब्ध कराने के लिए कहा गया।
इसके बाद राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने लोगों को भरोसा जताया था कि अब जल्द दाल का वितरण शुरू होगा। मगर 24 अप्रैल को हुई उस घोषणा के भी दस दिन से अधिक हो चुके हैं। अभी राज्य सरकार द्वारा निर्धारित केंद्रों तक ही दाल पहुंची है, अब इसे हर राशन दुकानदार को उपलब्ध कराया जाना है। ऐसी संभावना है कि 10 मई के बाद जब भी मई का राशन बंटेगा उसी के साथ दाल वितरण का काम हो पायेगा।
दुखद तथ्य यह है कि जहां राज्य के गरीबों को मुफ्त दाल उपलब्ध कराने में सरकार को डेढ़ महीने का वक्त लग गया है, वहीं राज्य के दाल किसानों को उनकी उपज का खरीदार नहीं मिल रहा है। राज्य में अमूमन 32 हजार मीट्रिक टन से अधिक दाल का उत्पादन होता है। इनमें से 70 फीसदी दाल का उत्पादन मोकामा टाल में होता है। हालांकि वहां अरहर के बदले मसूर का उत्पादन होता है।
मोकामा के किसान प्रणव शेखर शाही कहते हैं कि अगर सरकार गरीबों में बंटवाने के लिए सिर्फ मोकामा टाल का दाल खरीद लेती तो यह काम समय से पहले हो सकता था। इससे यहां के किसानों का भी लाभ हो जाता। मगर सरकार गुजरात की दाल के भरोसे बैठी रही। इस बीच हमारे यहां के किसानों को दाल के खरीदार नहीं मिल रहे।
हालांकि विभाग से जुड़े अधिकारी कहते हैं कि इस मसले पर भी बातचीत हुई थी, मगर नये सिरे से दाल खरीद की प्रक्रिया शुरू कराने में दिक्कत थी और कृषि विभाग द्वारा ऐसी जानकारी दी गयी थी कि राज्य में दाल की इतनी पैदावार नहीं होती कि पूरे बिहार को दाल बांटा जा सके।