भूटान की कृषि विपणन रणनीति पर दोबारा सोचने की जरूरत

दूरदर्शी नीतिगत हस्तक्षेप और विभिन्न क्षेत्रों के बीच समन्वय से देश अपने कृषि बाजारों को ग्रामीण विकास, खाद्य सुरक्षा और आर्थिक विविधीकरण के मजबूत इंजन में बदल सकता है
शरद ऋतु की फसल कटाई के दौरान दो भूटानी किसान लोबेसा घाटी के सीढ़ीनुमा खेतों से लाल चावल की बालियां काटते हुए
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शरद ऋतु की फसल कटाई के दौरान दो भूटानी किसान लोबेसा घाटी के सीढ़ीनुमा खेतों से लाल चावल की बालियां काटते हुए फोटो: iStock
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भूटान का कृषि क्षेत्र, जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, चुनौतियों का सामना कर रहा है क्योंकि खेती-किसानी में 60 प्रतिशत आबादी लगे होने के बावजूद देश लगभग आधा खाद्य आयात करता है।

भोजन की सुरक्षा सुनिश्चित करने और किसानों की आय बढ़ाने के लिए, भूटान को अपने कृषि विपणन तंत्र में मौजूद संरचनात्मक समस्याओं, जैसे कि उच्च उत्पादन लागत और आयात पर निर्भरता, को नीति हस्तक्षेपों और नवोन्मेषी समाधानों के ज़रिए सुलझाना होगा।

कृषि भूटान की अर्थव्यवस्था और ग्रामीण जीवनयापन की रीढ़ बनी हुई है, जहां लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या खेती से जुड़ी हुई है। फिर भी विडंबना यह है कि भूटान अपनी कुल खाद्य जरूरतों का लगभग आधा हिस्सा आयात करता है। यह विरोधाभास कृषि विपणन तंत्र में मौजूद गहरे संरचनात्मक दोषों की ओर इशारा करता है, जिनका समाधान जरूरी है ताकि खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके, किसानों की आय बढ़ाई जा सके और समग्र सतत विकास की दिशा में प्रगति हो।

कृषि बाजारों की वर्तमान स्थिति

भूटान के 20 जोंगखग्स (जिले) में कृषि बाजार स्थानीय उत्पाद और उपभोक्ता मांग को जोड़ने वाले अहम केंद्र हैं। इनमें थिम्फू का सेंचुरी फार्मर्स मार्केट, पुनाखा का लोबेसा सब्जी मंडी और पारो का फार्मर्स मार्केट प्रमुख हैं। इन बाजारों में स्थानीय रूप से उगाए गए फल-सब्जियों के साथ-साथ आयातित उत्पाद भी बिकते हैं, जो मुख्य रूप से भारत के पश्चिम बंगाल के फालाकाटा बाजार से आते हैं। यह बाजार, जो सीमा के बिल्कुल पास स्थित है, अक्सर भूटान को सब्जियों और फलों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता माना जाता है।

घरेलू और आयातित उत्पादों की समान उपस्थिति विक्रेताओं और खरीदारों दोनों के लिए एक जटिल परिस्थिति बनाती है। विक्रेता सस्ते आयातित सामान से प्रतिस्पर्धा करने की चुनौती झेलते हैं, जबकि स्थानीय फसलें ऊंची लागत के कारण महंगी पड़ती हैं—इसका कारण पहाड़ी भूगोल, सीमित मशीनीकरण और महंगे इनपुट हैं। उदाहरण के लिए, भारत से आयातित प्याज की कीमत 15 से 20 भारतीय रुपये प्रति किलो होती है, जबकि भूटान में उत्पादित प्याज की कीमत 60 रुपये प्रति किलो से अधिक हो सकती है, जिसके कारण आयात पर निर्भरता बढ़ती है। आलू और अन्य मुख्य सब्जियों के मामले में भी यही प्रवृत्ति देखी जाती है। नतीजतन, उपभोक्ता कभी-कभी घरेलू उत्पादों के समर्थन के बजाय कीमत को प्राथमिकता देते हैं, जिससे स्थानीय किसानों के लिए बाजार कमजोर पड़ता है।

एक और जटिलता बाजारों की वित्तीय व्यवस्था से जुड़ी है। विक्रेता अक्सर भारतीय आयातकों-कम-व्यापारियों द्वारा दिए गए क्रेडिट पर निर्भर रहते हैं, जो मात्रा और प्रभाव में हावी रहते हैं। इस क्रेडिट सुविधा के कारण आयातित उत्पादों की लगातार खरीद संभव हो पाती है, लेकिन इससे विदेशी आपूर्ति श्रृंखला पर निर्भरता भी बनी रहती है। हालांकि कुछ विक्रेताओं ने नवाचार करते हुए बिना बिके ताजे उत्पादों को सुखाकर सूखे उत्पादों में बदलना शुरू किया है, जिन्हें बाद में सिंगापुर, थाईलैंड आदि जैसे विशिष्ट बाजारों में निर्यात किया जाता है। यह भूटान की कृषि मूल्य श्रृंखला में मौजूद अप्रयुक्त संभावनाओं को दर्शाता है।

टिकाऊ बाजार तंत्र के लिए नीति हस्तक्षेप

इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए, भूटान के विभिन्न ज़ोंगखग्स में स्थापित वर्तमान एग्रीगेटर मॉडल जो किसानों से उत्पाद इकट्ठा कर आगे बाजार में बेचते हैं—को मजबूत और विस्तारित करने की जरूरत है ताकि ये एक बैकवर्ड लिंकज सिस्टम के रूप में भी काम कर सकें। किसानों को किफायती कृषि इनपुट्स तक पहुंच देने वाली एक एकल खिड़की प्रणाली, उत्पादन लागत को काफी हद तक कम कर सकती है। इनपुट लागत घटने से स्थानीय उत्पादों की कीमत प्रतिस्पर्धी हो जाएगी और आयात के साथ का अंतर कम हो सकेगा।

कृषि विपणन को सरल बनाने के लिए एक एग्रीगेटर नेटवर्क पहले से कार्यरत है जो उत्पादकों से माल खरीदता है और नाममात्र कीमत अदा करता है। हालांकि, इस नेटवर्क को अपने दायरे को बढ़ाकर किसानों को सब्सिडी दरों पर कृषि इनपुट पैकेज उपलब्ध कराने की सेवा भी देनी चाहिए। इससे उत्पादन लागत को कुछ हद तक कम किया जा सकता है और मानकीकृत उत्पादन प्रक्रिया सुनिश्चित हो सकेगी।

साथ ही, भूटान का कृषि बाजार फिलहाल न्यूनतम मूल्य नियमन के साथ काम करता है, जिससे मूल्य निर्धारण मुख्यतः मांग और आपूर्ति की ताकतों पर निर्भर करता है। ऐसे बाजारों में जहां आयातित और स्थानीय उत्पाद साथ-साथ बिकते हैं, यह स्थानीय उत्पादकों के लिए हानिकर हो सकता है जिनकी लागत अधिक है और जिन्हें प्रीमियम मूल्य नहीं मिल पाता। पूरे भूटान में एक सशक्त बाजार मूल्य सूचना प्रणाली की स्थापना अत्यंत जरूरी है। इस प्रणाली को भारत के पास के बाजारों की कीमतें भी मॉनिटर करनी चाहिए ताकि बेहतर मूल्य की खोज संभव हो सके। मूल्य निर्धारण में पारदर्शिता किसानों को शोषण से बचाएगी, उन्हें न्यायसंगत मूल्य दिलाएगी और उपभोक्ताओं को अनावश्यक रूप से अधिक भुगतान करने से रोकेगी। इसके अलावा, पोषण मूल्य, निकटता और अन्य महत्वपूर्ण मापदंडों पर आधारित मूल्य निर्धारण तंत्र, भविष्य की दिशा में एक सतत समाधान हो सकता है।

सरकार द्वारा खरीद-प्रतिदान योजना (बाई बैक स्कीम) के तहत प्रत्यक्ष खरीद केवल कुछ चुनिंदा फसलों तक सीमित है, जैसे, आलू, इलायची, मक्का और धान। बाजारों में अनिश्चितता और कोल्ड चेन की कमी के कारण अक्सर नुकसान होता है।

मूल्य श्रृंखला मानचित्रण (वैल्यू चेन मैपिंग) एक और महत्वपूर्ण आवश्यकता है। जोगखग-वार उत्पादन केंद्रों (जहां फसल उगती है) को उपभोग केंद्रों (जहां मांग अधिक है) से जोड़ना जरूरी है ताकि सामान का कुशल ढंग से आवागमन हो सके। यदि ऐसा नहीं किया गया तो कृषि बाजारों के विकास के प्रयास सतही और बिखरे हुए रह जाएंगे। भूटान की पहाड़ी भौगोलिक स्थिति और उत्पादन एवं उपभोग केंद्रों की निकटता को देखते हुए, गुरुत्वाकर्षण आधारित रोपवे प्रणाली जैसे नवोन्मेषी समाधान, माल के परिवहन के लिए सुरक्षित, किफायती और पर्यावरण के अनुकूल उपाय हो सकते हैं, जिससे खराबी और आपूर्ति लागत में कमी आएगी।

भविष्य के लिए भूटान की कृषि में निवेश

भूटान को एक जनसंख्या-संबंधी चुनौती का भी सामना करना पड़ रहा है। किसान वृद्ध हो रहे हैं, जिनकी औसत उम्र 50 वर्ष से अधिक है। यह संकेत करता है कि खेती में युवा पीढ़ी को आकर्षित करना जरूरी हो गया है। इसके लिए नवाचारपूर्ण, उच्च मूल्य वाली फसलों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए जो सुनिश्चित बाजार और मुनाफा दे सकें। चिप्स, जूस और सूखे स्नैक्स जैसे मूल्यवर्धित उत्पादों का विकास स्टार्टअप्स के माध्यम से नई आय की धाराएं बना सकता है और युवाओं की भागीदारी को बढ़ावा दे सकता है।

आधुनिक प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना इस दृष्टिकोण के लिए अहम होगी। ऐसी इकाइयां मजबूत राष्ट्रीय ब्रांड बना सकती हैं, जिससे भूटान के कृषि उत्पाद स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर मांग में आ सकें। ये पहल निर्यात बाजारों के द्वार खोल सकती हैं, और भूटान की जैविक और प्राकृतिक उत्पादों की प्रतिष्ठा का लाभ उठा सकती हैं।

विशिष्ट वस्तुओं पर आधारित किसान समूहों का विकास और स्थानीय युवाओं को इन समूहों के संचालन के लिए सीईओ आधारित ढांचा प्रदान करना, उन्हें कृषि उद्यमों की ओर आकर्षित करने में मदद कर सकता है।

समग्र विकास के लिए क्षेत्रीय एकीकरण

इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, कृषि को स्वास्थ्य, पर्यटन, शिक्षा और उद्योग जैसे अन्य प्रमुख क्षेत्रों से जोड़ना आवश्यक है। उदाहरण के लिए, जैविक खेती को भूटान के बढ़ते इको-टूरिज्म सेक्टर से जोड़ने से फार्म-टू-टेबल जैसी अनूठी अनुभव प्रणाली बनाई जा सकती है, जो स्थानीय उत्पादों के लिए प्रीमियम मूल्य सृजित करेगी। शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रम किसानों को आधुनिक कृषि तकनीकों और उद्यमशीलता के कौशल से लैस कर सकते हैं। प्रसंस्करण और पैकेजिंग में औद्योगिक जुड़ाव उत्पाद की गुणवत्ता और बाजार पहुंच बढ़ा सकता है।

सबसे अहम बात यह है कि सरकार, निजी क्षेत्र, वित्तीय संस्थान और किसान सहकारी समितियों समेत सभी हितधारकों की सहभागिता से ही एक संगठित पारिस्थितिकी तंत्र तैयार किया जा सकता है। दूरदर्शी नीतिगत हस्तक्षेप और अंतर-क्षेत्रीय सहयोग के ज़रिए भूटान अपने कृषि बाजारों को ग्रामीण विकास, खाद्य सुरक्षा और आर्थिक विविधीकरण के इंजन में बदल सकता है। यह बदलाव केवल उत्पादकों के लिए लाभकारी नहीं होगा, बल्कि भूटान के सतत विकास और आत्मनिर्भरता की यात्रा को भी मजबूत करेगा।

(मोहित शर्मा, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, बिहार से संबद्ध हैं)

(यह लेखक के निजी विचार हैं और जरूरी नहीं कि डाउन टू अर्थ के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों।)

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