सरकार ने चावल के निर्यात पर पाबंदियां लगा दी है। इसके पीछे सरकार की ओर से कुछ तर्क दिए गए हैं। जैसे कि चावल के उत्पादन में 120 लाख टन की कमी और कीमतों में वृद्धि, लेकिन एक और वजह है, वह है-इथेनॉल के लिए चावल का इस्तेमाल। इस तीसरी वजह पर बात कम हो रही है। इन तीनों वजह पर विस्तार से बात करते हैं।
सबसे पहले बात करते हैं चावल के उत्पादन में कमी की। अनुमान है कि चालू खरीफ सीजन में चावल के उत्पादन में लगभग 120 लाख टन की कमी रह सकती है।
केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता सचिव सुधांशु पांडेय ने बताया कि 9 सितंबर 2022 तक के उपलब्ध आकंड़ों के मुताबिक बारिश की कमी की वजह से इस साल देश में अब तक 38.06 लाख हेक्टेयर धान का रकबा कम दर्ज किया गया है।
इसका मतलब है कि पिछले साल के मुकाबले इस साल लगभग 9.4 प्रतिशत हिस्से में धान की बुआई नहीं हो पाई है। क्योंकि पिछले साल सितंबर के दूसरे सप्ताह तक 409.55 लाख हेक्टेयर में धान की बुआई हो चुकी थी।
खाद्य सचिव के प्रजेंटेशन के मुताबिक बुआई में कमी की वजह से लगभग 100 लाख टन चावल का उत्पादन कम रहेगा, जबकि दूसरे कारणों से लगभग 20 लाख टन चावल का उत्पादन प्रभावित रहेगा। यानी कि चालू खरीफ सत्र की प्रमुख फसल चावल के उत्पादन में 120 लाख टन की कमी आने की आशंका है।
हालांकि शाम को प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) की प्रेस रिलीज में कहा गया कि खरीफ सीजन 2022 के लिए धान के रकबे और उत्पादन में संभावित कमी लगभग 6 प्रतिशत है। 2021 में खरीफ के लिए अंतिम रकबा 403.58 लाख हेक्टेयर था। अभी तक 325.39 लाख हेक्टेयर का रकबा कवर किया जा चुका है। घरेलू उत्पादन में, 60-70 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) कमी का अनुमान है लेकिन कुछ क्षेत्रों में अच्छी मानसून वर्षा के कारण, उत्पादन हानि घट कर 40-50 एलएमटी तक सीमित रह सकती है। तथापि, यह पिछले वर्ष के उत्पादन के बराबर ही होगा।
यहां यह उल्लेखनीय है कि वर्ष 2021-22 के लिए चौथे अग्रिम अनुमान के मुताबिक पिछले खरीफ सीजन में 1,117.6 लाख टन चावल का उत्पादन हुआ था। यानी कि चालू खरीफ सीजन में 10.73 प्रतिशत उत्पादन कम रहने की आशंका है।
खाद्य सचिव का यह प्रेजेंटेशन बताया कि चार राज्य सूखे से प्रभावित है, जहां लगभग 25 लाख हेक्टेयर में धान की बुआई नहीं हो पाई है। जिसका मतलब है कि इन राज्यों में 70 से 80 लाख टन चावल का उत्पादन कम हो सकता है।
यहां भी ध्यान रखना चाहिए कि पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड में धान के बौनेपन की वजह से भी उत्पादन में कमी आ सकती है। नुकसान कितना होगा, इसका पुख्ता आकलन लगा पाना अभी मुश्किल है।
कीमतों में वृद्धि
एक ओर जहां चावल का उत्पादन कम होने की आशंका है, वहीं चावल के दाम भी तेजी से बढ़ रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि चावल के थोक मूल्य में पिछले साल के मुकाबले इस साल 8.22 प्रतिशत और खुदरा कीमतों में 6.38 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो चुकी है।
चावल की थोक कीमत पिछले साल 9 सितंबर 2021 को 3041 रुपए प्रति कुंतल थी, जो इस साल 9 सितंबर को बढ़ कर 3291 रुपए प्रति कुंतल हो चुकी है। और अगर खुदरा कीमतों की बात करें तो पिछले साल 9 सितंबर को चावल की खुदरा कीमत 35.25 रुपए प्रति किलो थी, जबकि इस साल 37.5 रुपए प्रति किलो है।
निर्यात पर पाबंदी
बढ़ती कीमतें और उत्पादन में कमी की आशंका को देखते हुए केंद्र सरकार ने चावल के निर्यात पर पाबंदियां लगा दी है।
केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के विदेश व्यापार निदेशालय ने टूटे हुए चावल के निर्यात पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है, जबकि गैर बासमती चावल (अन्य), भूसी चावल (धान या खुरदरा), भूसी (भूरा) चावल के निर्यात पर 20 प्रतिशत एक्सपोर्ट ड्यूटी लगा दी गई है। जबकि गैर बासमती चावल और सैला चावल का निर्यात पर कोई पाबंदी नहीं लगाई गई है।
टूटा हुआ चावल क्यों?
टूटे हुए चावल (ब्रोकन राइस) के निर्यात पर पूरी तरह प्रतिबंध के बाद यह सवाल उठने लगा है कि आखिर टूटे हुए चावल का महत्व क्या है? लेकिन खाद्य सचिव द्वारा प्रस्तुत किए गए निर्यात के आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं।
आंकड़े बताते हैं कि टूटे हुए चावल के निर्यात में अचानक से बढ़ोतरी हुई है। 2018 में अप्रैल से अगस्त के बीच केवल 51 हजार टन टूटे हुए चावल का निर्यात हुआ था, जबकि 2022 के अप्रैल से अगस्त के बीच यह बढ़ कर 21.31 लाख टन (4178 प्रतिशत अधिक) हो गया।
वित्त वर्ष 2021-22 में टूटे हुए चावल का निर्यात 38.9 लाख टन था, जो 2018-19 के मुकाबले 319 प्रतिशत वृद्धि हुई थी।
टूटे हुए चावल के निर्यात में अप्रत्याशित वृद्धि ने सरकार को चौंका दिया। टूटे हुए चावल का सबसे अधिक निर्यात चीन में हो रहा है, जबकि दो साल पहले तक यहां टूटे हुए चावल का निर्यात नहीं होता था। चीन के अलावा सेनेगल, वियतनाम, जिबूती और इंडोनेशिया में होता है।
इथेनॉल के लिए पाबंदी?
भारत में टूटे हुए चावल का इस्तेमाल इथेनॉल और पशुओं और मुर्गियों के चारे के लिए होता है। भारत को 2025 तक 1100 करोड़ लीटर इथेनॉल की जरूरत होगी, जो केवल गन्ने से पूरा नहीं किया जाता। इसलिए 2019-20 में टूटे हुए चावल, मक्का और भारतीय खाद्य निगम के चावल का इस्तेमाल इथेनॉल के लिए करने की मंजूरी दे दी गई थी।
खाद्य सचिव के इस प्रेजेंटेशन के आंकड़ों के मुताबिक इथेनॉल आपूर्ति वर्ष (दिसंबर से नवंबर) 2020-21 में 81,044 मीट्रिक टन भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) चावल का आवंटन किया गया था, जिसमें से 49,233 टन का उठान हो गया। इथेनॉल आपूर्ति वर्ष 2021-22 में
21 अगस्त 2022 तक 13 लाख 87 हजार 616 टन का आवंटन किया गया है। इसमें से 5,05,935 टन चावल का एफसीआई से कर लिया गया है। इसका आशय है कि 2020-21 के मुकाबले 2021-22 में इथेनॉल के लिए एफसीआई चावल के आवंटन में भारी वृद्धि की गई थी। लेकिन उत्पादन कम रहने के कारण अब सरकार ने चावल के निर्यात पर पाबंदियों का दौर शुरू कर दिया है।
ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्ट्स एसोसिएशन के वरिष्ठ कार्यकारी निदेशक विनोद कुमार कौल भी कहते हैं कि सरकार की मंशा टूटे हुए चावल को इथेनॉल इकाइयों की ओर मोड़ना है।
कौल ने कहा, "कई इथेनॉल इकाइयां स्थापित की गई हैं, लेकिन कच्चे माल की कमी के कारण क्षमता का कम उपयोग किया जा रहा है।" इथेनॉल के उत्पादन के लिए टूटे चावल और मक्का का प्रमुख रूप से उपयोग किया जाता है। टूटे चावल के निर्यात की बजाय इथेनॉल इकाइयों को भेजने से एफसीआई के स्टॉक पर दबाव कम होगा।
वह मानते हैं कि इस फैसले के बाद भारतीय निर्यात व्यापार पर असर पड़ने वाला है। 2021-22 में भारत से 38 लाख टन टूटे चावल का निर्यात किया गया था।
कौल ने कहा, "वित्त वर्ष 2022-23 के पहले पांच महीनों में औसतन लगभग 1.5 मिलियन टन का निर्यात किया गया था और उसके बाद पूरी तरह से रुक जाएगा। जिससे भारतीय निर्यात प्रभावित होगा, हमारे प्रतिस्पर्धियों को लाभ होगा। हम थाईलैंड और अन्य देशों की तुलना में टूटे चावल का निर्यात अधिक करते थे, लेकिन अब वे बाजार को छीन लेंगे और हम उसके बाद जल्दी से बाजार हासिल नहीं कर पाएंगे।"
यह 380 डॉलर प्रति टन पर बिका। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उद्योग पर सरकार के फैसले का क्या असर पड़ने वाला है। उन्होंने कहा कि मौजूदा स्थिति में इस तरह के निर्णय की आवश्यकता नहीं है क्योंकि पिछले साल के स्टॉक में चावल सरप्लस स्थिति में है।
(नोट : शाम को सरकार की ओर से शाम को जारी प्रेस रिलीज के आधार पर स्टोरी में एक अंश जोड़ा गया है)