दूध की तुलना में अरहर के बीज के खोल में होता है छह गुना ज्यादा कैल्शियम: इक्रीसेट

अरहर के केवल 100 ग्राम बीजावरण (खोल) में करीब 652 मिलीग्राम कैल्शियम होता है, जबकि दूसरी तरफ 100 मिलीलीटर दूध में कैल्शियम की मात्रा 120 मिलीग्राम ही होती है
दूध की तुलना में अरहर के बीज के खोल में होता है छह गुना ज्यादा कैल्शियम: इक्रीसेट
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क्या आप जानते हैं, अरहर/तुअर के बीजावरण यानी उसकी भूसी में दूध की तुलना में छह गुना ज्यादा कैल्शियम होता है, लेकिन उसके बावजूद या तो उसे फेंक दिया जाता है या फिर उसका उपयोग पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है। ऐसे में इसके गुणों को देखते हुए माना जा रहा है कि इसका उपयोग खाद्य और दवा उद्योगों में किया जाता है जो ऑस्टियोपोरोसिस और रिकेट्स जैसी बीमारियों के लिए फायदेमंद हो सकता है।

यह जानकारी इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (इक्रीसेट) द्वारा की गई रिसर्च में सामने आई है जिसके निष्कर्ष पीयर-रिव्यू जर्नल सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित हुए है।

इक्रीसेट के मुताबिक अरहर के दानों में बीजावरण की हिस्सेदारी करीब 10 फीसदी होती है जोकि दाल उद्योग से प्राप्त होने वाला एक उप-उत्पाद होता है। देश में इसके ज्यादातर हिस्से को या तो वेस्ट के रूप में फेंक दिया जाता है या फिर उसका उपयोग पशुओं के चारे के रुप में किया जाता है।

शोध से पता चला है कि अरहर के केवल 100 ग्राम बीजावरण में करीब 652 मिलीग्राम कैल्शियम होता है, जबकि दूसरी तरफ 100 मिलीलीटर दूध में कैल्शियम की मात्रा 120 मिलीग्राम ही होती है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इंसान को हर दिन औसतन 800 से 1,000 मिलीग्राम कैल्शियम की आवश्यकता होती है, जबकि शोध से पता चला है कि भारतीयों को उनके आहार से औसतन उतनी मात्रा नहीं मिल पा रही है।

भारत में उगती है दुनिया की 82 फीसदी अरहर

रिसर्च के मुताबिक अरहर को आमतौर पर दक्षिण एशिया, मध्य अमेरिका और अफ्रीका के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में उगाया जाता है जोकि एक प्रमुख दलहन फसल भी है। यह दाल प्रोटीन का एक किफायती स्रोत भी होती है। यदि भारत की बात करें तो वो दुनिया भर में अरहर का सबसे बड़ा उपभोक्ता है।

आंकड़े दर्शाते हैं कि 2020 में दुनिया की 82 फीसदी अरहर भारत में पैदा की गई थी जबकि कुल वैश्विक उत्पादन के भारत की हिस्सेदारी करीब 77 फीसदी है। इसे देश में सब्जी, दाल, आदि के रूप में खाया जाता है जिससे ढोकला, दाल पैटी, टेम्पेह, अडाई और कड़ाबा जैसे लोकप्रिय व्यंजन बनाए जाते हैं।

अपने इस अध्ययन में इक्रीसेट के शोधकर्ताओं ने 2019 और 2020 में खरीफ के मौसम में अरहर के 600 में से 60 अलग-अलग प्रकारों का चयन अध्ययन के लिए किया था। उन्होंने केमिकल की मदद से बीजावरण के बिना और बीजावरण में मौजूद पोषक तत्वों का विश्लेषण किया था। इसके विश्लेषण से पता चला है कि 100 ग्राम बीजावरण में मौजूद कैल्शियम की मात्रा करीब 652 मिलीग्राम होती है, जोकि चावल, गेहूं और जई की भूसी की तुलना में कहीं ज्यादा है।

देश में 69 लाख लोगों की कैल्शियम सम्बन्धी जरूरतों को पूरा कर सकता है यह कचरा

शोध के मुताबिक 2020 में कुल 38.9 लाख टन अरहर का उत्पादन हुआ था, जिसकी मिलिंग के बाद करीब 3.9 लाख टन बीजों की भूसी प्राप्त हुई थी। देखा जाए तो इस 3.9 लाख टन भूसी में 2,543 टन कैल्शियम प्राप्त हो सकता है, जोकि प्रति व्यक्ति 1,000 मिलीग्राम की दर से 69 लाख लोगों की एक साल की कैल्सियम सम्बन्धी जरूरतों को पूरा कर सकता है।

इतना ही नहीं 100 ग्राम अरहर के बीजावरण में 2.7 मिलीग्राम आयरन होता है, जोकि अन्य फलियों और अनाज की तुलना में कहीं ज्यादा है। रिसर्च से यह भी पता चला है कि अरहर के दानों में बीजावरण की तुलना में 18 गुना तक ज्यादा प्रोटीन होता है।

ऐसे में अध्ययन के मुताबिक दाल में मौजूद आयरन और प्रोटीन के साथ-साथ उसके बीजों के छिलकों में उच्च मात्रा में मौजूद कैल्शियम एक पूरक आहार के रूप में काम कर सकता है जोकि देश में कुपोषण की समस्या को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इसके बीजों से प्राप्त भूसी को कचरे में न फेंककर इसका सही उपयोग पोषक तत्वों की मांग को पूरा करने में अहम हो सकता है।

इस बारे में इक्रीसेट जीनबैंक के प्रमुख डॉक्टर कुलदीप सिंह का कहना है कि पौधों से बने माइक्रोन्यूट्रिएंट कैप्सूल को हमारा शरीर सिंथेटिक्स की तुलना कहीं बेहतर तरीके से अवशोषित कर सकता है। ऐसे में इसमें मौजूद पोषक तत्वों का अधिकतम उपयोग किया जा सकता है। उनका कहना है कि यदि अरहर उद्योग में पैदा हो रही भूसी का सही प्रबंधन किया जाए तो उससे न केवल भारत में बल्कि अन्य विकासशील देशों में भी भुखमरी और कुपोषण की समस्या को कम करने में मदद मिल सकती है। 

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