
भारत एक कृषि प्रधान देश है और इस क्षेत्र का अर्थव्यवस्था में अहम योगदान है। देश की रीढ़ माने जाने वाला कृषि क्षेत्र जलवायु परिवर्तन का बड़ा दंश झेल रहा है।
अनिल अग्रवाल डॉयलाग के दूसरे दिन विशेषज्ञों ने बताया कि देशभर में 573 कृषि जिले क्लाइमेट रिस्क केटेगरी में आ गए हैं। इन 573 जिलों में से 90% जिले ग्रामीण क्षेत्रों के अधीन हैं।
देशभर के 310 जिले उच्च और अतिसंवेदनशील केटेगरी में आते हैं। 573 में से कुल 109 जिले (19%) अतिसंवेदनशील, 201 जिले उच्च संवेदनशील और 204 जिले मध्यम संवेदनशील श्रेणी में आ गए हैं।
उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और राजस्थान उच्च संवेदनशील राज्यों में आ गए हैं। देश के 10 राज्यों एसे भी हैं जिनके 10 से अधिक जिले अतिसंवेदनशील श्रेणी में आ गए हैं जो इसके खतरों की गंभीरता को बयान कर रहा है।
शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में मौसम की बढ़ती चरम घटनाओं और मॉनसून में आ रहे बदलावों का सबसे अधिक असर आर्थिक रूप से कमजोर लोगों, बच्चों और बुजुर्गों में देखने को मिल रहा है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट द्वारा आयोजित अनिल अग्रवाल डायलॉग के दूसरे दिन के पहले सत्र के दौरान जलवायु परिवर्तन और मौसम में से जुडे़ विशेषज्ञों ने मौसम में आ रहे बदलावों के प्रति चिंता जाहिर की और इससे निपटने की जरूरत पर बल दिया।
सत्र के बारे में जानकारी देते हुए भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान पुणे के जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कॉल ने कहा कि हाल के समय में जिस तरह के बदलाव मौसम में देखे जा रहा हैं, वैसी घटनाएं इतिहास में नहीं देखी गई हैं।
उन्होंने कहा कि मॉनसून के पैटर्न में जिस तरह के बदलाव आ रहे हैं, उनका असर कृषि और स्वास्थ्य क्षेत्र में भी देखने को मिल रहा है। सत्र के दौरान हीटवेव वार्निंग के बारे में जानकारी हुए उन्होंने कहा कि भारत में 2030 तक 5.8 फीसदी काम के घंटों का नुक्सान होगा और ग्लोबल वार्मिंग के कारण उत्पादकता में कमी होगी, जो 34 मिलियन पूर्णकालिक नौकरियों के बराबर है।
सत्र के दौरान भारतीय मौसम विज्ञान विभाग में अतिरिक्त महानिदेशक रहे आनंद शर्मा ने विस्तार से मौसम में आ रहे बदलावों के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि गर्म होती पृथ्वी हमारे रातों को अधिक गर्म बना रही है।
उन्होंने मौसम में आ रहे बदलावों से बचने के लिए अर्ली वॉर्निंग सिस्टम के सभी चार चरणों के गहनता और परस्पर समन्वय से काम करने की बात कही। उन्होंने कहा कि हमें पहले चरण- संकट विश्लेषण में किसी भी प्रोजेक्ट के बारे में विस्तार और गहनता से जांच व परख करनी चाहिए ताकि भविष्य में किसी प्रकार की आपदा से जानमाल के नुकसान को कम किया जा सके।
वहीं दूसरे चरण में मॉनिटरिंग और प्रिडिक्शन की एडवाइजरी को सही समय पर सही स्थान तक पहुंचाना सुनिश्चित करना चाहिए। तीसरे चरण में संचार के माध्यमों को और अधिक सुदृढ़ करने की जरूरत है ताकि किसी भी सूचना को बहुत थोड़े से समय में बहुत से लोगों तक पहुंचाया जा सके।
उन्होंने कहा कि इसके लिए लोकल कम्युनिटी रेडियो बहुत अच्छी भूमिका अदा कर सकते हैं। चौथे व अंतिम चरण रिस्पॉंस में उन्होंने सबसे अधिक काम करने की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि हमें किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए पहले से ही सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए रिस्पॉंस का एक्शन तैयार करना चाहिए और वहां की स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए तुरंत काम करना चाहिए।
सत्र के दौरान तीन साल पहले द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के बारे में विशेषज्ञों ने जानकारी देते हुए बताया कि अत्यधिक गर्म रातों से मौत का जोखिम सदी के अंत तक लगभग छह गुना बढ़ सकता है।
अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि उष्ण रातें नींद जैसी सामान्य शारीरिक प्रक्रिया में बाधा डाल सकती हैं। नींद की बदलती प्रवृति प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान पहुंचा सकती है और यह हृदय रोग, पुरानी बीमारियों, सूजन और मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों के उच्च जोखिम का कारण बन सकता है।
इसके अलावा इस मौके पर सीएसई में सस्टेनेबल हैबीटेट विंग के प्रोग्राम डायरेक्टर रजनीश सरीन ने शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बन रहे भवनों को तैयार करती बार किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए इस बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी।
सीएई में सतत् खाद्य प्रणाली के प्रोग्राम डायरेक्टर अमित खुराना ने सतत् खाद्य प्रणाली की जरूरत के बारे में जानकारी दी। इसके अलावा इस सत्र में आंध्र प्रदेश सरकार के कृषि विभाग में फसल बीमा के उप निदेशक डी वेणुगोपाल ने फसल बीमा योजनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी।