अजमेर के जामुन व्यवसाय पर पहले लॉकडाउन, अब मौसम की मार

पीक सीजन में लॉकडाउन के कारण माल बाहर नहीं जा सका। जब थोड़ा खुला है तो बारिश नहीं हो रही
अजमेर जिले की पीसांगन पंचायत समिति की चार ग्राम पंचायतों गनाहेड़ा, तनात, तिलोरा और बासेली के 18 गांवों में जामुन की खेती की जाती है। फोटो: अनिल अश्वनी शर्मा
अजमेर जिले की पीसांगन पंचायत समिति की चार ग्राम पंचायतों गनाहेड़ा, तनात, तिलोरा और बासेली के 18 गांवों में जामुन की खेती की जाती है। फोटो: अनिल अश्वनी शर्मा
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दिल्ली, जयपुर अजमेर सहित उत्तर भारत के तमाम शहरों में हम और आप जो बड़े-बड़े और मीठे जामुन चाव के साथ खाते हैं, वो अजमेर जिले के कुछ गांवों के किसानों की मेहनत का नतीजा हैं। उत्तर भारत में सप्लाई होने वाले जामुन, गोंदा जैसे फलों की मांग का अधिकतर हिस्सा अमजेर जिला पूरी करता है। जिले की पीसांगन पंचायत समिति की चार ग्राम पंचायतें गनाहेड़ा, तनात, तिलोरा और बासेली के 18 गांवों में जामुन की खेती की जाती है, लेकिन इस बार लॉकडाउन और देरी से हुई बारिश के कारण जामुन किसान मायूस हैं।
जामुन के बाग रखने वाले किसानों का कहना है कि पीक सीजन के वक्त लॉकडाउन था जिसके कारण हमारा माल बाहर नहीं जा सका और अब जब सब थोड़ा खुला है तो बारिश नहीं हो रही। बारिश नहीं होने से जामुन का आकार छोटा हो गया है। जुलाई के आखिरी हफ्ते में तेज बारिश हुई है, लेकिन अब सीजन ही खत्म होने को आ गया है।
गनाहेड़ा में जामुन का व्यवसाय करने वाले मनोहर कहार की पीड़ा भी कुछ ऐसी ही है। मनोहर के पास बाग में जामुन के 20 पेड़ हैं जो उन्होंने 30 हजार रुपए में एक सीजन के लिए ठेके पर लिए हैं। वह बताते हैं कि हमारा जामुन दिल्ली, जयपुर, जोधपुर, अजमेर सहित कई शहरों में सप्लाई होता है, लेकिन इस बार हम बहुत कम संख्या में सिर्फ अजमेर और जयपुर तक ही सप्लाई कर पाए क्योंकि लॉकडाउन में हमें जामुन सप्लाई के लिए वाहन नहीं मिल सके। वह आगे बताते हैं, "इस बार हमारा खर्चा निकालना भी मुश्किल हो गया है। जामुन तोड़ने के लिए 700 रुपए प्रति दिन के हिसाब से मजदूर आता है। इसके साथ ही एक पेड़ पर पूरे सीजन में करीब 2,500 रुपए खर्चा होता है। इसमें खाद, पानी, केमिकल के खर्चे शामिल होते हैं। इस बार मांग कम होने से हमें बहुत नुकसान हुआ है।"
एक अन्य जामुन व्यवसायी मांगीलाल रावत डाउन टू अर्थ को बताते हैं कि हर साल सीजन में इस क्षेत्र से रोजाना 70 छोटे-बड़े ट्रक जामुन के अलग-अलग शहरों के लिए भेजे जाते थे, लेकिन इस बार ये संख्या सिर्फ 30 रह गई है। इसके अलावा जून महीने में बारिश नहीं हुई इससे जामुन का साइज छोटा रह गया और मंडी में हमें भाव कम मिला। अब जब जामुन पेड़ में ही पक गया है तब बारिश हुई है जिससे पूरा जामुन जमीन पर गिर गया। इससे हमें हजारों रुपए का आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा है।
बता दें कि पीसांगन पंचायत समिति में जुलाई माह तक सिर्फ 125 मिलीमीटर बारिश ही हुई है जबकि यहां औसत बारिश 348 एमएम है। 125 एमएम में से करीब 80 एमएम बारिश जुलाई महीने में हुई है इसीलिए जामुन किसानों का कहना है कि सही वक्त में कम बारिश से जामुन का साइज छोटा हो गया है।

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