खरीफ सीजन में बुंदेलखंड के एक गांव को 11 करोड़ का नुकसान, कैसे होगी किसान की आमदनी दोगुनी

बांदा जिले के बसहरी गांव में 100 फीसदी किसानों ने बोई थी तिल, पूरी फसल हुई नष्ट, 7.5 करोड़ रुपए की लागत डूबी, फसल नष्ट न होने पर 18 करोड़ रुपए में तिल बेची जाती
बांदा जिले के बसहरी गांव में दूर-दूर तक खेत खाली पड़े हैं। खेतों में घास और खरपतवार के अलावा कुछ नजर नहीं आ रहा। फोटो : भागीरथ
बांदा जिले के बसहरी गांव में दूर-दूर तक खेत खाली पड़े हैं। खेतों में घास और खरपतवार के अलावा कुछ नजर नहीं आ रहा। फोटो : भागीरथ
Published on

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के बांदा जिले के अधिकांश गांवों में खरीफ की फसल पानी की कमी या अत्यधिक बारिश से बुरी तरह प्रभावित हुई है। सबसे बड़ा झटका तिल की खेती करने वाले किसानों को लगा है। जिले के कुछ गांव तो ऐसे हैं जहां लगभग 100 प्रतिशत किसानों ने तिल की बुआई की थी। बसहरी भी ऐसा ही एक गांव है। डाउन टू अर्थ ने इस गांव का दौरा किया और पाया कि गांव के लगभग सभी किसान खरीफ के मौसम से उम्मीद हार चुके हैं। तीन महीनों में किसानों को लगभग 11 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। सितंबर महीने के आखिरी सप्ताह में जब तिल की फसल लहलहाती है और कटने को तैयार रहती है, तब इस गांव के लगभग सभी खेत खाली पड़े हैं। दूर-दूर तक खेतों में घास और खरपतवार के अलावा कुछ नहीं है।    

नाउम्मीद हुए किसान

बसहरी गांव में करीब 500 किसान परिवार हैं। गांव के अधिकांश किसान खरीफ के मौसम में तिल की फसल बोते हैं। इस साल भी करीब सभी किसानों ने जून-जुलाई के महीने में तिल की बुआई की थी। अपने 19 बीघे (2.5 बीघा= 1 एकड़) खेत में तिल की बुआई करने वाले घनश्याम कुमार बताते हैं कि एक बीघे में औसतन 60-70 किलो तिल निकल जाता है। इस तरह उनके पूरे खेत से 1,200-1,300 (12-13 क्विंटल) किलो तिल की पैदावार हो जाती थी। करीब 8,000 रुपए प्रति क्विंटल के भाव से तिल बिक जाता है। इस भाव से तिल बिकने पर करीब एक लाख रुपए की पूरी उपज बिक जाती थी। लेकिन इस साल समय पर बारिश न होने से तिल की पूरी फसल सूख गई। घनश्याम बताते हैं कि खेतों में बुआई और जुताई की लागत करीब 38 हजार रुपए आई थी। मॉनसून के दगा देने से न केवल घनश्याम की लागत डूबी बल्कि संभावित उपज से होने वाली आमदनी की उम्मीद भी खत्म हो गई। अकेले घनश्याम के परिवार को खरीफ के मौसम में फसल चौपट होने पर एक लाख रुपए का नुकसान हुआ है।

ग्रामीण इंद्रपाल ने डाउन टू अर्थ को बताया कि मौजूदा खरीफ के मौसम में खेतों से कोई उम्मीद नहीं बची है। पिछले 2-3 साल से गांव के लगभग सभी किसान तिल के भरोसे रहते हैं क्योंकि तिल की खेती में अधिक पानी की जरूरत नहीं होती और यह फसल सूखाग्रस्त बुंदेलखंड के लिए उपयुक्त है। बुआई के कुछ दिन बाद पानी बरसने से ही फसल हो जाती है लेकिन इस साल इतना पानी भी खेतों को नसीब नहीं हुआ। इंद्रपाल ने भी अपने पूरे 9 बीघा के खेत में तिल बोया था। उनके खेत में एक भी पौधा नहीं बचा है। इंद्रपाल के अनुसार, एक बीघा खेत में जुताई, बुवाई और बीज की लागत करीब 2,000 रुपए आई। इस तरह इंद्रपाल ने 18,000 रुपए खर्च कर दिए लेकिन हाथ कुछ नहीं आया।  

18 करोड़ की संभावित उपज का नुकसान

बसहरी गांव में कुल 18,000 एकड़ का मौजा है। इसमें से 3,000 एकड़ खेत बंजर और शेष 15,000 एकड़ कृषि योग्य भूमि है। अगर इस हिसाब से देखें तो गांव में करीब 15,000 एकड़ यानी 37,500 बीघा जमीन पर तिल बोया गया था। इंद्रपाल द्वारा बताई गई लागत (2,000 रुपए प्रति बीघा) के अनुसार, पूरे गांव की कृषि योग्य भूमि पर तिल की बुआई, जुताई और बीज की लागत 7.5 करोड़ रुपए आई। दूसरे शब्दों में कहें तो 500 परिवार वाले इस गांव में प्रति किसान औसतन 1.5 लाख रुपए की लागत का नुकसान हुआ। अगर तिल की फसल खराब नहीं होती तो प्रति बीघा 60 किलो तिल के हिसाब से 37,500 बीघा में 22,500 क्विंटल तिल की पैदावार होती। 8,000 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से 22,500 क्विंटल तिल बेचने पर किसानों को 18 करोड़ की रुपए आमदनी हो सकती थी। अगर इस संभावित आय से 7.5 करोड़ रुपए की लागत को निकाल दें तो 10.5 करोड़ रुपए का नुकसान पूरे गांव को खरीफ के मौसम यानी तीन महीने में हुआ है।

अन्ना पशु बड़ी समस्या

गांव में रहने वाले अरविंद सिंह पिछले कुछ सालों से तिल के प्रति किसानों के आकर्षण की एक और वजह बताते हैं। उनका कहना है कि क्षेत्र में अन्ना मवेशी (आवारा पशु) बड़ी संख्या में है और वे खेती को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। ये मवेशी तिल की फसल को कम नुकसान पहुंचाते हैं, इसलिए किसान चाहकर भी दूसरी फसल नहीं लगाते। जब अन्ना मवेशियों की समस्या गंभीर नहीं थी, तब किसान उदड़ और मूंग की फसल भी लेते थे जो अब न के बराबर रह गई है। अरविंद ने भी अपने पांच बीघा के खेत में तिल की बुआई की थी जो पहले कम बारिश से सूख गई और बची खुची फसल बाद में अत्यधिक बारिश से सड़ गई। घनश्याम बताते हैं कि 2020 में भी 60-70 प्रतिशत तिल की फसल बारिश से खराब हो गई थी। साल 2019 तिल की फसल के लिए काफी अच्छा रहा लेकिन पिछले दो साल से मॉनसून की अनिश्चितता ने किसानों के सामने विकट संकट खड़ा कर दिया है।

किसान रज्जू कुमार बताते हैं कि उनके करीब 10 बीघा खेत हैं। उन्होंने करीब 140 बीघा खेत बटाई (उपज का आधा हिस्सा खेत के मालिक को देने की व्यवस्था) और 10 बीघा खेत बलकट (किराए) पर लिए हैं। खेती चौपट होने से उन्हें करीब 2.5 लाख रुपए का नुकसान हुआ है। रज्जू बताते हैं कि जलवायु के उतार-चढ़ाव ने खेती को बेहद जोखिम भरा बना दिया है। 

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in