कृषि संपन्न क्षेत्रों में बढ़ रही है ग्रामीण युवाओं की आबादी, लेकिन …

ग्रामीण युवाओं पर जारी एक नई वैश्विक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2011-12 से ग्रामीण पुरुष व महिलाओं के बीच बेरोजगारी दर में तीन गुणा वृद्धि हुई है
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भारत समेत दुनिया भर में ग्रामीण युवाओं का भविष्य कैसा है? इस सवाल का जवाब यूनाइटेड नेशंस इंटरनेशनल फंड फॉर एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट (आइएफएडी) की नई वैश्विक रिपोर्ट में दिया गया है। क्रिएटिंग अपॉरच्युनिटी फॉर रूरल हेल्थ –2019 रूरल डेवलपमेंट रिपोर्ट  शीर्षक वाले इस नए अध्ययन और सर्वेक्षण के पन्ने दुनिया की ग्रामीण आबादी के आर्थिक भविष्य का आकलन करते हैं।  यह पहली बार है जब आबादी की प्रवृत्ति के साथ-साथ किसी रिपोर्ट में ग्रामीण युवाओं के आर्थिक भविष्य पर विविधतापूर्ण अध्ययन पेश किया गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया भर के गांवों में युवा आबादी तेजी से बढ़ रही है।  रिपोर्ट में बेहद चिंताजनक तथ्य यह है कि 2011-12 से ग्रामीण पुरुष व महिलाओं के बीच बेरोजगारी दर में  अभी तक तीन गुना वृद्धि हुई है।  रिपोर्ट के मुताबिक विश्व भर में ग्रामीण जनसांख्यिकी बदल रही है।  ग्रामीण आबादी में युवाओं की संख्या भी बढ़ रही है।

दुनिया भर में युवा आबादी बढ़ी है लेकिन एशिया व अफ्रीका में यह बढ़ोतरी अधिक है। इन देशों में ग्रामीण युवाओं की आबादी तेजी से बढ़ रही है। खासतौर से विकासशील देशों और कम विकसित देशों में इन ग्रामीण युवाओं की संख्या अच्छी-खासी है।  रिपोर्ट के मुताबिक विकासशील देशों में हर तीन में दो ग्रामीण युवा गांव में ही आधारित अवसरों पर निर्भर है। रिपोर्ट का यह हिस्सा ही खतरे की घंटी है।

18 जून को जारी हुई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि दुनिया के अति गरीब देश अपने ग्रामीण क्षेत्रों में रह करोड़ों युवाओं को सुरक्षित भविष्य देना चाहते हैं तो इस समय प्रभावी नीतियों और भारी निवेश की सख्त जरूरत है।

दुनिया के कुल 120 करोड़ युवाओं में 100 करोड़ ऐसे युवा हैं जिनकी उम्र 15 से 24 वर्ष के बीच है और ये विकासशील देशों में  गुजार रहे हैं।  चौंकाने वाला यह है कि इन विकासशील देशों में कुल युवाओं की आबादी में लगभग आधी संख्या ग्रामीण युवाओं की  हैं।

दुनिया के 120 करोड़ युवा जिनकी उम्र 15 से 24 साल है में से लगभग 100 करोड़ युवा विकासशील देशों में रह रहे हैं और इन  विकासशील देशों में कुल युवाओं के मुकाबले ग्रामीण युवाओं की संख्या लगभग आधी है।

इससे यह बात स्पष्ट तौर पर उभर रही है कि विकासशील देशों और कम विकसित देशों में ग्रामीण युवाओं पर खास ध्यान देने की जरूरत है। इन देशों में यही आबादी तेजी से बढ़ भी रही है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिक आय वाले देशों के मुकाबले कम आमदनी वाले देशों में यह संख्या तेजी से बढ़ रही है।  खासतौर से ग्रामीण इलाकों में यह संख्या काफी तेजी से बढ़ रही है। दुनिया के दो तिहाई ग्रामीण युवा एशिया प्रशांत क्षेत्र में रह रहे हैं, जबकि 20 फीसदी ग्रामीण युवा अफ्रीका में हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि 2050 में अफ्रीका में यह हिस्सा बढ़ कर 37 फीसदी तक पहुंच जाएगा, जबकि एशिया प्रशांत क्षेत्रों में यह हिस्सा घटकर 50 फीसदी पर पहुंच जाएगा।

इन महाद्वीपों में ग्रामीण युवाओं की आबादी में यह अचानक वृद्धि ऐसे समय में हो रही है, जब इन इलाकों में आर्थिक प्रगति और जीविका के साधनों की दशा ठीक नहीं है। ज्यादातर युवाओं के पास विरासत में मिले कृषि संसाधन ही एकमात्र जीविका का साधन हैं। लेकिन कृषि अब आजीविका का सक्षम साधन नहीं रह गया है, जबकि आबादी बढ़ रही है। ऐसे में महत्वपूर्ण सवाल यह है कि इन लोगों को रोजगार कहां और कैसे मिलेगा।

इस तथ्य पर नजर डालिए। लगभग तीन चौथाई ग्रामीण ऐसे देशों में रहते हैं, जहां दुनिया में कृषि से सबसे कम आमदनी हो रही है। रिपोर्ट बताती है, “इन देशों में खेती-बाड़ी करके ये युवा अपनी गरीबी से बच नहीं सकते हैं, बेहतर जीवन जीने के लिए इन्हें दूसरे क्षेत्रों में काम करना होगा”।

लगभग यह प्रवृति भारत में भी देखी जा रही है। भारत में दो राज्यों उत्तर प्रदेश व बिहार में ग्रामीण बेरोजगारों की संख्या अच्छी खासी है। ये दोनों राज्य कृषि पर आधारित हैं और यहां की युवा आबादी खेती बाड़ी छोड़कर दूसरे क्षेत्रों में आजीविका के साधन तलाश रही है। हालांकि दूसरे अफ्रीका देशों के मुकाबले भारत में गैर कृषि रोजगार का स्तर ऊंचा नहीं है।

इसी अध्ययन में यह भी बताया गया है कि बेशक खेती-बाड़ी आजीविका का बेहतर साधन नहीं है, बावजूद इसके इन देशों में खेती में ही नए रोजगार की काफी संभावनाएं हैं। लगभग 67 फीसदी ग्रामीण युवा ऐसे इलाकों में रहते हैं, जहां खेती से काफी संभावनाएं हैं।

इसलिए, ग्रामीण युवाओं के लिए खेती को पेशे के रूप में न चुनने का मतलब यह नहीं है कि कृषि में संभावनाएं (क्षमता) नहीं हैं। बल्कि इसकी दो वजह हैं, एक तो वे अच्छी फसल का उत्पादन नहीं कर पाते, दूसरा उन्हें सही मूल्य नहीं मिलता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भूमि का विखंडन, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव और उनकी उपज के लिए बाजार तक पहुंच पाना ऐसे बड़ी वजह हैं, जिससे खेती एक बेहतर आजीविका का साधन नहीं रही। यही वजह है कि भारत के किसान अकसर सड़कों पर प्रदर्शन भी करते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि सामूहिक खेती का उत्पादन कम है तो इसका मतलब यह है कि वे अपने उत्पादों को बाजार तक पहुंचा पा रहे हैं। साथ ही, उनकी लागत (खासकर बीज, उवर्रक और सिंचाई) बढ़ रही है, जबकि उनके उत्पादों की कीमत सही नहीं मिल रही है।  

हुंगबू कहते हैं, “सही नीतियों और निवेश से इन युवाओं को ग्रामीण क्षेत्र की आर्थिक प्रगति का चालक बनाया जा सकता है और वे अपनी व समाज का जीवन स्तर पर सुधार सकते हैं।”

जिन देशों में भी ग्रामीण युवा आबादी की संख्या अधिक हैं, वे सभी लगभग एक समान काम कर रहे हैं। रिपोर्ट में अलग-अलग देशों की 57 नीतियों का सर्वेक्षण किया गया है, जिससे मिले परिणाम उत्साहजनक नहीं हैं। सर्वेक्षण यह संकेत देते हैं कि युवाओं को लक्ष्य करती कृषि नीतियों की इस समय सख्त जरूरत है।  

इनमें से लगभग 40 नीतियों में कहा गया है कि किसी तरह से ग्रामीण युवाओं का विकास किया जाएगा। इनमें 15 में ग्रामीण युवाओं को लक्ष्य करते हुए कार्यक्रम या एक खास नीति बनाने की बात कही गई है। लगभग 17 में ग्रामीण युवाओं को तरजीह ही नहीं दी गई है। इस सर्वेक्षण में एक अन्य दिलचस्प यह तथ्य सामने आया कि इन नीतियों में ग्रामीण युवाओं पर फोकस तो किया गया है, लेकिन यहां तेजी से बढ़ती ग्रामीण युवाओं की आबादी पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है।

आईएफएडी के एसोसिएट वाइस प्रेसिडेंट पॉल विंटर्स कहते हैं, “एक व्यापक, मजबूत ग्रामीण विकास नीति बनाने की जरूरत है, जहां इन साफ तौर पर इन युवाओं के लिए बनाई जाए। यही एक रास्ता है जो दुनिया भर के करोड़ों युवाओं की मदद कर सकता है।”

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