क्या मजदूरी करके किसान होगा खुशहाल?

किसान की आय दोगुनी करने की चुनौती देश में खेती पर निर्भर किसी कृषि-परिवार की आर्थिक स्थितियों में बुनियादी बदलावों से जुड़ी है
देश में किसानों की तुलना में अधिक खेतिहर मजदूर हैं, और किसान मजदूरी से अधिक कमा रहे हैं। फोटो: अग्निमीर बासु
देश में किसानों की तुलना में अधिक खेतिहर मजदूर हैं, और किसान मजदूरी से अधिक कमा रहे हैं। फोटो: अग्निमीर बासु
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अगले साल यानी 2022 में देश को किसानों की आय को 2015-2016 की आय से दोगुनी करने का लक्ष्य हासिल करना है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 77वें दौर के ‘परिवारों की भूमि व पशुधन संपत्ति और खेती पर निर्भर परिवारों की स्थिति का आकलन ’ नामक सर्वेक्षण से कुछ संकेत मिलते हैं कि यह लक्ष्य हासिल किया भी जा सकता है अथवा नहीं।

इस सर्वेक्षण में 2018-2019 की स्थितियों को शामिल किया गया है और इससे पहले ऐसा ही एक सर्वेक्षण 2012-2013 में किया गया था। इस तरह यह सर्वेक्षण मौजूदा सरकार के कार्यकाल के दौरान किसानों की स्थिति को दर्शाने वाला पहला सर्वेक्षण भी है।

किसानों की मासिक आय 2012-2013 की तुलना में 59 फीसदी बढ़ी है। इस तरह से यह 7.8 फीसदी की वार्षिक वृद्धि है। इस वृद्धि का सही अर्थ समझने के लिए हमें वार्षिक महंगाई दर को भी देखना होगा। सर्वेक्षण यह भी दिखाता है कि इसके दो दौर अथवा 2012-2018 की समयावधि में खेती से होने वाली आय घटी है।
एक कृषि-परिवार के लिए आय के तीन मुख्य स्रोत हैं -खेती, मजदूरी और पशुधन। फिलहाल एक कृषि-परिवार के लिए उसकी कुल आय में से खेती से होने वाली आय सिर्फ 38 फीसदी रह गई है, जो 2013 में 48 फीसद थी।
यानी खेती पर निर्भर एक किसान की कमाई का बड़ा जरिया खेती की बजाय मजदूरी और पशुधन हैं। इसमें भी बड़ा योगदान मजदूरी का है, जिससे मिलने वाला पैसा उसके परिवार की आय में सबसे ज्यादा योगदान देता है। इसका मतलब यह है कि एक किसान परिवार, पैसे के लिए खेती से ज्याद मजदूरी पर निर्भर है। खेती से उसकी आय दोगुनी करने के लिए उसके परिवार की आर्थिकी में बुनियादी बदलाव की जरूरत है।
सवाल यह है कि 2022 तक किसान की आय दोगुनी करने के लिए कहां ध्यान केंद्रित करना होगा? इसका सीधा सा जवाब है कि इसके लिए खेती से होने वाली उसकी आय पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। हम यह नहीं मान सकते कि 2022 तक यह आय दोगुनी होकर किसी किसान परिवार की कुल आय को दोगुना कर देगी।
किसानों के लिए व्यापार की स्थितियां लंबे समय से अनुकल नहीं हैं, और वे अपनी फसल का उचित मूल्य भी नहीं पा रहे हैं। उनकी आय का दूसरा बड़ा हिस्सा पशुधन से आता है। आज की हकीकत यह है कि इसकी आर्थिकी, खाद्यान्न से भी बड़ी है।
इस क्षेत्र में तेज वृद्धि के बावजूद पशुधन से होने वाली आय को इतना नहीं बढ़ाया जा सकता कि उससे किसान की कुल आय दोगुनी हो जाए। इस तरह हम देखें तो हमें किसान की कुल आय बढ़ाने के लिए तीसरे हिस्से, यानी मजदूरी पर फोकस करना चाहिए।
2018 के बाद से देश में रोजगार का परिदृश्य बदतर बना हुआ है। पहले 2016 से अर्थव्यवस्था में गिरावट आई और फिर उसके बाद नोटबंदी ने असंगठित क्षेत्र को झटका दिया। इसके बाद हम जानते ही हैं कि कोरोना महामारी ने इस क्षेत्र को गहरा आघात दिया है।
अगर किसान परिवार, मजदूरी के जरिए अपनी आय दोगुनी करने की सोचते हैं तो पहले यह देखना पड़ेगा कि नौकरियां हैं कहां ? फिलहाल बेरोजगारी दर पिछले कई दशकों में सबसे ज्यादा है। यहां तक कि यह बेरोजगारी ऐसी है कि अधिक से अधिक लोग खेती पर लौट आए हैं, भले ही उन्हें इसके लिए पर्याप्त मेहनताना भी न मिल रहा हो।
चूंकि हमारे पास किसानों की तुलना में अधिक खेतिहर मजदूर हैं, और किसान मजदूरी से अधिक कमा रहे हैं, इसलिए यह स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के परिदृश्य को और बिगाड़ने वाली है। इससे कृषि क्षेत्र में ज्यादा लोग आएंगे और उनकी आय कम होगी, चाहे वह किसान हों या मजदूर। इससे आने वाले समय में किसानों की आय दोगुनी करने का वादा पूरा नहीं होगा।
इससे भी खराब बात यह कि इससे गरीबी कम करने की योजना खतरे में पड़ेगी। खेती को कुल आर्थिक वृद्धि की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों की गरीबी कम करने में दोगुना असरदार कारक माना जाता है। अब, जो क्षेत्र पहले से संकट में घिरा हो, उसमें अगर रोजगार के लिए भीड़ बढ़ जाती है तो बहुत संभव है कि इससे किसानों की आय घटने लगे और उनकी गरीबी कम न हो।
इस तरह देखें तो किसानों की आय दोगुनी करना और उससे राष्ट्रीय आय भी बढ़ाना सरकार के सामने बहुत बड़ी चुनौती है।

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