सदी के पहले 20 बरस में जलवायु परिवर्तन से पैदा हुआ 70 फीसदी वैश्विक खेती पर खतरा

जलवायु परिवर्तन के कारण हर वर्ष आपदाओं में 60 हजार लोग जान गंवा रहे हैं। साथ ही दो दशकों में जलवायु संबंधी आपदाओं में दोगुनी बढ़ोत्तरी हुई है।
Droughts affected 1.4 billion people in 2009-19, according to a new UN report on disasters in the first two decades of the new century. Photo: Aparna Pallavi / CSE
Droughts affected 1.4 billion people in 2009-19, according to a new UN report on disasters in the first two decades of the new century. Photo: Aparna Pallavi / CSE
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आपदा जोखिम को कम करने वाले संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के कार्यालय (यूएनडीआरआर) की आपदाओं पर केंद्रित ताजा रिपोर्ट ने स्पष्ट चेतावनी दे रही है कि जलवायु परिवर्तन अब बेलगाम है। ह्यूमन कास्ट ऑफ डिजास्टर्स 2000-2019 रिपोर्ट में कहा गया है कि "बारिश की बदलती हुई प्रवृत्ति और अनिश्चितता ने खेती पर  वर्षा पर निर्भर रहने वाली 70 फीसदी वैश्विक कृषि और इससे जुड़े 1.3 अरब लोगों को खतरे में डाल दिया है।"

वर्षा आधारित खेती-किसानी वैश्वकि खाद्य उत्पादन में बड़ी भूमिका निभाती है। साथ ही कृषि पर आधारित एक बड़े गरीब तबके की आजीविका बनती है जिससे उनका जीवन यापन संभव होता है। वर्षा आधारित खेती में खेती लायक 95 फीसदी जमीने उप-सहारा अफ्रीका में मौजूद हैं। वहीं, 90 फीसदी लैटिन अमेरिका और 75 फीसदी पूर्व और उत्तरी अफ्रीका साथ ही 65 फीसदी पूर्वी एशिया और 60 फीसदी दक्षिण एशिया में वर्षा आधारित खेती की जमीनें मौजूद हैं। 

कृषि मंत्रालय के मुताबिक भारत में 51 फीसदी बुआई क्षेत्र वर्षा पर आधारित है और इस क्षेत्र से देश का करीब 40 फीसदी अनाज उत्पादन होता है।  

यूएनडीआरआर की रिपोर्ट कहती है कि 2000 से 2019 के बीच, जलवायु संबंधी आपदाओं ने दुनिया भर में कुल 3.9 अरब लोगों को प्रभावित किया जिसमें 5 लाख  (0.51 मिलियन) से अधिक लोगों की मौत हुई। पिछले दो दशकों में जलवायु से संबंधित आपदाएं दोगुनी हो गई हैं। 1980-1999 में 3,656 आपदाएं दर्ज हुई थीं जो 2000-2019 में बढ़कर 6,681 हो गई हैं। वर्ष 2000 से 2019 के बीच चीन और भारत के 2 अरब से अधिक लोग आपदा प्रभावित हुए। यह संख्या वैश्विक आबादी का लगभग 70 फीसदी है। पिछले दो दशकों में आपदाओं ने हर साल 20 करोड़ (200 मिलियन) लोगों को प्रभावित किया है।

बेल्जियम की यूनिवर्सिटी ऑफ लौवेन में सेंटर फॉर रिसर्च ऑन द एपिडेमियोलॉजी ऑफ डिजास्टर्स की प्रोफेसर देबब्रती गुहा-सपिर इस रिपोर्ट के लिए यूएनडीआरआर के साथ साझेदार हैं। उनका कहना है, "यदि  चरम मौसमी घटनाओं में वृद्धि का यह स्तर अगले बीस वर्षों तक इसी तरह जारी रहता है तो मानव जाति का भविष्य वास्तव में बहुत अंधकारमय है।"

वर्षा आधारित खेती से जुड़ी आपदाओं के लिए सूखा एक दूसरा सबसे बड़ा कारण है। इस आपदा के कारण प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या के मामले में यह दूसरा सबसे प्रभावशाली प्रकार है।
यह कुल आपदा घटनाओं का सिर्फ 5 प्रतिशत है। लेकिन इसने 2009-19 में 1.4 अरब लोगों को प्रभावित किया। पिछले दो दशकों में अफ्रीका सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ था। 2009-19 के कुल वैश्विक सूखे में इसका 40 फीसदी हिस्सा था। रिपोर्ट में कहा गया है, "सूखा भूख, गरीबी और अल्प-विकास के मामले में लगने वाला उच्च मानव टोल की तरह है।"

यह व्यापक कृषि विफलताओं, पशुधन की हानि, पानी की कमी और महामारी के रोगों के प्रकोप से जुड़ा है। यदि सूखा कुछ वर्षों तक रहता है तो इसका व्यापक और दीर्घकालिक आर्थिक प्रभाव पड़ता है, साथ ही साथ यह जनसंख्या के बड़े हिस्से को विस्थापित भी करता है।

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