किसान क्रेडिट कार्ड लोन में 3.79 करोड़ का फर्जीवाड़ा!

बिहार के एक बैंक में फर्जी कागजात से लोन लिया और जब बैंक से आरटीआई में जानकारी मांगी गई तो जानकारी तक नहीं दी गई
Photo credit: Pixabay
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किसानों को खेती के लिए अल्पकालिक लोन देने के लिहाज से शुरू की गई किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) स्कीम में फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है।

पड़ताल में बिहार के रोहतास जिले के दिनारा अंचल के 10 लोगों के लैंड पोजेशन सर्टिफिकेट (एलपीसी) और लगान रसीद तथा एक व्यक्ति का गलत लगान रसीद पाए गए हैं। केसीसी ऋण लेने के लिए ये दस्तावेज अनिवार्य होते हैं। इन्हीं फर्जी दस्तावेजों के जरिए बैंक ऑफ बड़ौदा से 3.79 करोड़ का केसीसी लोन निकाला गया है, जो 24 बैंक अकाउंट्स में वितरित हुए हैं।

सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी में इस फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है। बताया जाता है कि साल 2017 में ही ये फर्जीवाड़ा हुआ था, लेकिन दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।

आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार, 20 सितंबर 2017 को दिनारा के अंचल अधिकारी ने बैंक ऑफ बड़ौदा (दिनारा) के शाखा प्रबंधक को एलपीसी सत्यापन से जुड़ा एक पत्र भेजा था, जिसमें 12 किसानों के नाम थे। इनमें से 10 किसानों की ओर से केसीसी लोन के लिए बैंक में जमा किए गए एलपीसी और लगान रसीद गलत पाए गए। वहीं, एक किसान का एलपीसी सही था, लेकिन लगान रसीद का कागज फर्जी था जबकि एक किसान के सभी दस्तावेज दुरुस्त थे।

आरटीआई कार्यकर्ता नारायण गिरि ने बताया, “बैंक ऑफ बड़ौदा को मैंने आरटीआई के तहत आवेदन देकर पूछा था कि इस फर्जीवाड़े के दोषियों की शिनाख्त कर कार्रवाई करने की दिशा में अब क्या प्रगति हुई है, ये बताया जाए, लेकिन बैंक की तरफ से गोपनीय बता कर जानकारी नहीं दी गई। इसके बाद मैंने प्रथम अपील दायर की। फिर दूसरी अपील दायर की, लेकिन तब भी सूचनाएं मुहैया नहीं कराई गईं।” अंततः नारायण गिरि ने केंद्रीय सूचना आयोग को पत्र लिखा, तो 4 दिसंबर 2019 को सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद 11 दिसंबर 2019 को केंद्रीय सूचना आयोग ने लिखित आदेश दिया। इस आदेश में आयोग ने लिखा है, “सारे तथ्य और केस की परिस्थितियों को देख कर, सभी पार्टियों की दलीलें सुन कर और उपलब्ध रिकॉर्ड के अध्ययन के बाद आयोग दर्ज करता है कि आवेदक की शिकायत के बाद 3.79 करोड़ रुपए के फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है, जो 26 बैंक अकाउंट्स में ट्रांसफर हुए हैं। इसलिए आवेदन को ये जानने (व्यक्तिगत जानकारियां छोड़ कर) का हक है कि इसके दोषी अफसरों के खिलाफ क्या कार्रवाइयां हुईं।”  

केंद्रीय सूचना आयोग ने अपने आदेश में कहा था कि आदेश जारी होने के 10 दिनों के भीतर बैंक आवेदक को संतोषजनक उत्तर दे, लेकिन जनवरी का आधा महीना गुजर जाने के बावजूद आवेदक को कोई जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई है।  नारायण गिरि ने कहा, “बैंक के इस रवैये से तो साफ पता चल रहा है कि इस घोटाले पर पर्दा डालने की कोशिश की जा रही है।” वहीं, बैंक ने बताया है कि मामले की जांच का जिम्मा आर्थिक अपराध इकाई को सौंपा है।

किसान क्रेडिट कार्ड स्कीम की शुरुआत वर्ष 1998 में की गई थी। इसका उद्देश्य किसानों को खेती के वक्त अल्पकालिक ऋण मुहैया कराना था। लेकिन, आरोप है कि गैर-किसान लोग अपने प्रभाव और फर्जी दस्तावेज की बदौलत लोन ले लेते हैं, जबकि जरूरतमंद इस स्कीम से वंचित रह जाते हैं।

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