“वे ही कहें यह पाठ कविता है याकि उपन्यास।” यून फुस्से के उपन्यास का अनुवाद “आग के पास आलिस है यह” (2016, वाणी प्रकाशन) को अशोक वाजपेयी को समर्पित करते हुए तेजी ग्रोवर का यह सवाल यून फुस्से की विशिष्ट शैली की व्याख्या कर देता है।
यून फुस्से की शैली, यानी कम शब्दों में गहन भाव को रख देना। भाव की गहनता और शब्दों की न्यूनता मिलकर ऐसा निर्वात रचते हैं जहां पाठक खुद को मंचीय किरदार की तरह बैठा हुआ पाता है। दर्शक दीर्घा के गहन अंधेरे के बीच उस पर केंद्रित मंचीय प्रकाश और संवाद शुरू होने के पहले का सन्नाटा। पर्दे के पीछे खड़ा कुशल निर्देशक मुस्करा रहा होता कि सब सही चल रहा है। अंधेरे से लेकर आवाज तक जब किरदार बनकर आते हैं तो उनकी आकृति देखी जा सकती है। शायद यही वजह है कि यून फुस्से अपने समय में सबसे ज्यादा मंचित होने वाले रचनाकारों में से हैं।
“आग के पास आलिस है यह” जॉन फुस्से की शैली का प्रतिनिधि उपन्यास है। फ्योर्ड नदी के तट पर कुछ दूर बसे घर की नायिका सिग्ने और उस घर की खिड़की। घर की यह खिड़की यादों का वह दरवाजा खोलती है जिसमें सिग्ने के साथ पांच पीढ़ियों का संवाद होता है।
आखिर खिड़की के बाहर देखने को है क्या? भारी और लगभग काला अंधेरा। प्रेम जब किसी अंतरीप पर जाकर टिका होता है तो उसके बारे में देखने के लिए किसी उजाले की दरकार नहीं होती है। फ्योर्ड के तट पर पांच पीढ़ियों के साथ स्मृति का यह ज्वार-भाटा प्रेम और सम्मोहन का अद्भुत आख्यान रचता है। बीस साल पहले चले गए आस्ले का इंतजार करती सिग्ने सिर्फ अपने पति आस्ले का इंतजार नहीं कर रही है। वह आस्ले की पांच पीढ़ियों की स्मृति के साथ संवादरत है।
यून फुस्से का यह उपन्यास अतीत के प्रति स्नेहिल सम्मोहन रचता है। पुराना मकान और स्मृति में जवान और बच्चे। मां और बेटे का प्रेम। दादी और पोते का प्रेम। अपनी स्मृति में पुरखन आलिस, सिग्ने के साथ कथा की सूत्रधार हैं। आग के पास कभी आलिस आती है तो कभी उसकी स्मृति। पुरखन आलिस की कठोर अंगुलियों और झुर्रियों में जो स्मृति का इतिहास है, आस्ले उसे महसूस करता है। आस्ले 1979 में किसी रोज चला गया था। सिग्ने 2002 में खिड़की से आती आकृतियों को ऐसे देखती है जैसे वो कहीं आस्ले न हो। एक खास समय के बाद मर चुके लोगों की स्मृति स्निग्धता से भर देती है। लेकिन, कहीं गए हुए इंसान का इतना लंबा इंतजार प्रेम के गहन अंधेरे में धकेल देता है जहां से आगे जाने का कोई रास्ता नहीं सूझता है। इस हालत में किसी भी चीज की कुछ वजह दिखती नहीं। यह इंतजार मानो कहता हो, “आखिर हर चीज की कोई वजह होनी भी क्यों चाहिए?”
एक ठंडी जगह पर रहने वाली सिग्ने की स्मृतियों के ठंडेपन को गरमाती है वह आग जो कमरे में जल रही है। कमरे की बेंच पर लेटी सिग्ने, आग और स्मृति के साथ आस्ले का इंतजार करते हुए टकराती है पड़-पड़दादी आलिस से। एक बूढ़ी औरत, जिसने अपनी आंखों के सामने पीढ़ियों को जन्म लेते और खुदा के यहां जाते हुए देखा है।
प्रेम अपने साथ परवाह की पीड़ा लाता है। सिग्ने कहती है, “मैं बहुत चिंता कर रही थी तुम्हारी।” मर चुके लोग भी पीछे छोड़ जाते हैं परवाह की याद। सिग्ने की स्मृति देखती है, फ्योर्ड के ठंडे पानी में डूबा बच्चा और अपने शरीर की गर्मी से उसकी जान बचाती मां। बेटे की जान बच जाती है। लेकिन, अगली पीढ़ी की मां वैसे ही हादसे में पानी में डूबे बच्चे के ठंडे पड़े शरीर को लेकर घूमती है, लेकिन बच्चे के शरीर में जीवन की गर्मी वापस नहीं आ पाती है। आलिस दादी के नाम के साथ जुड़ा है पोते का नाम आस्ले। दादी महसूस करती है जीवन के बिछोह को और कहती है, “खुदा अच्छा है”। वह पोते को सीख देती है, “अपना सामान उठाने से आसान रहता है, इससे संतुलन बना रहता है।”
प्रेम और स्मृति ही इस कृति का सार है। आपको किसी की जरूरत कब तक रह सकती है? ठहराव भी तो प्रेम ही है। यहां पर विरक्ति नहीं है। यहां इंतजार भी एक किरदार है जो कभी अंधेरे में, कभी आग में तो कभी नदी की आवाज में दिख जाता है।
यून फुस्से की शैली ऐसी है कि सोच भी दीवार बन कर बात करती नजर आती है। जैसे, “वह सोचती है और फिर से पहाड़ को देखती है, और, वह सोचती है, वहां नीचे वो पहाड़ सांस छोड़ रहा है, नहीं उसे यह सब बंद करना होगा, ऐसा कुछ सोचना, सांस छोड़ता पहाड़, इसमें कोई तुक नहीं। सांस छोड़ता पहाड़...।” पहाड़, नदी, अंधेरा, आग हमारी स्मृतियों का हिस्सा हैं। नदी और आग पुरखों के पास भी थे।
यून फुस्से की अन्य कृतियों की तरह “आग के पास आलिस है यह” भी छोटे शब्दों में बात करती है। इनके किरदारों को बड़े शब्द पसंद नहीं हैं। किरदार कहता है, “बड़े शब्द। वे सिर्फ झूठ बोलते थे और चीजों को दबा देते थे।” जब अभाव प्रेम का होता है तो उसके खालीपन को शब्दों से नहीं भरा जा सकता है। प्रेम का अभाव अतीत के प्रति अनुग्राही बना देता है। यह उपन्यास एक ऐसा रंगमंच है, जिसमें पांच पीढ़ियों के किरदार अपनी खासियत के साथ आते हैं। इंसान की कुछ आदतें, चीजें उसके साथ नत्थी हो जाती हैं। दादी की टोपी उसके साथ नत्थी है।
यून फुस्से की यह कृति स्मृति के साथ नत्थी लोगों की कथा है। आग के पास आलिस है, पड़-परदादी। ये लोग अनादि काल से खड़े हैं, बुगुर्ज और उनकी संतति।
यून फुस्से को 2023 का नोबेल पुरस्कार उनके अभिनव नाटकों और गद्य के लिए दिया जाएगा। इन्होंने नार्वे के साहित्य को वैश्विक मंच प्रदान किया है। फुस्से की एकांतप्रियता ने ऐसा साहित्य रचा है जो शब्दों का शोर मचाए बिना अपने साथ चलने के लिए, कहीं रुक कर ठहरने के लिए मजबूर कर देता है।