पहचाने गए फिर से उगने वाले वनों में बीज फैलाने में गिरावट सालाना कार्बन अवशोषण में कमी से जुडी हुई पाई गई, जो औसतन 1.8 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर थी, जो दोबारा उगने वालों में 57 फीसदी की कमी के बराबर थी। फोटो साभार: आईस्टॉक
वन्य जीव एवं जैव विविधता

उष्णकटिबंधीय जंगलों की ताकत हैं बीज फैलाने वाले जीव: अध्ययन

यह स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन जैव विविधता के लिए खतरा है और अब यह अध्ययन दर्शाता है कि जैव विविधता का नुकसान जलवायु परिवर्तन को कैसे बढ़ा सकता है।

Dayanidhi

मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर जैव विविधता (यानि पेड़-पौधे और जानवरों की विभिन्न प्रजातियांं) घटती रही, तो यह धरती को जलवायु परिवर्तन से बचाने की एक बड़ी ताकत को कमजोर कर सकती है।

शोध में बताया गया है कि जब जंगल काटे जाते हैं और फिर वे खुद-ब-खुद दोबारा उगते हैं, तो वहां मौजूद बीज फैलाने वाले जानवरों की भूमिका बहुत जरूरी होती है। अगर इन जानवरों की संख्या ठीक रहती है, तो ऐसे जंगल उन इलाकों की तुलना में चार गुना ज्यादा कार्बन सोख सकते हैं, जहां ऐसे जानवर नहीं होते या बहुत कम होते हैं।

इसका मतलब यह है कि प्रकृति अपने आप पेड़-पौधों को फिर से उगाकर वातावरण से कार्बन हटाने में मदद कर सकती है — लेकिन यह तभी मुमकिन है जब बीज फैलाने वाले जीव, जैसे कुछ पक्षी और जानवर, बचे रहें।

क्योंकि इस समय उष्णकटिबंधीय जंगल धरती के सबसे बड़े कार्बन सोखने वाले क्षेत्र हैं, इसलिए यह शोध जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक अहम तरीका साबित हो सकता है।

अध्ययन में हजारों पशु प्रजातियों की जैव विविधता और उनके बीज फैलाने की क्षमता से जुड़े आंकड़े शामिल किए गए हैं। इसके साथ ही हजारों उष्णकटिबंधीय जंगलों में जमा होने वाले कार्बन से जुड़े आंकड़ों का भी विश्लेषण किया गया है।

इससे यह समझने में मदद मिली है कि अगर बीज फैलाने वाले जानवरों की संख्या बनी रहे, तो जंगल ज्यादा तेजी से उगते हैं और ज्यादा कार्बन जमा कर सकते हैं — जिससे धरती को गर्म होने से बचाया जा सकता है।

पीएनएएस में प्रकाशित एक शोध पत्र में कहा गया है कि यह अब तक का सबसे साफ सबूत है कि बीज फैलाने वाले जीव जैसे पक्षी, बंदर या छोटे स्तनधारी जंगलों की कार्बन सोखने की क्षमता में अहम भूमिका निभाते हैं।

इस अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि जैव विविधता का नुकसान और जलवायु परिवर्तन आपस में जुड़े हुए हैं। इसलिए इन समस्याओं को अलग-अलग नहीं, बल्कि एक साथ, एक नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में समझना और सुलझाना जरूरी है।

जंगलों की सेहत सिर्फ पेड़ों पर नहीं, बल्कि उन जानवरों पर भी निर्भर करती है जो पेड़ों के बीज फैलाते हैं। ऐसे में इन जीवों की रक्षा करना, जलवायु संकट से निपटने का एक अहम तरीका हो सकता है।

यह स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन जैव विविधता के लिए खतरा है और अब यह अध्ययन दर्शाता है कि जैव विविधता का नुकसान जलवायु परिवर्तन को कैसे बढ़ा सकता है। इस दोतरफा रास्ते को समझने से हमें इन चुनौतियों के बीच संबंधों को समझने और उनका समाधान करने के तरीके समझने में मदद मिलती है।

ये ऐसी चुनौतियां हैं जिनका मिलकर सामना करना होगा। उष्णकटिबंधीय जंगल कार्बन में जानवरों का योगदान दर्शाता है कि जैव विविधता का समर्थन करने और साथ ही जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने से दोनों पक्षों को फायदा हो सकता है।

अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने हजारों अलग-अलग अध्ययनों के आंकड़ों को जोड़ा और असमान लेकिन परस्पर जुड़ी पारिस्थितिक प्रक्रियाओं का विश्लेषण करने के लिए नए उपकरणों का उपयोग किया।

17,000 से अधिक वनस्पति भू-भागों के आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद, शोधकर्ताओं ने उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों पर गौर करने का निर्णय लिया, जहां उन्होंने बीज फैलाने वाले जानवरों के निवास स्थान, हर एक जानवर कितने बीज फैलाता है और वे अंकुरण को कैसे प्रभावित करते हैं, जैसे आंकड़ों का अध्ययन किया।

फिर शोधकर्ताओं ने उन आंकड़ों को शामिल किया जिनसे पता चलता है कि मानवजनित गतिविधियां बीज फैलने वाले विभिन्न जानवरों की उपस्थिति और गति को कैसे प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए, जब जानवर ज्यादा लोगों की आबादी वाले क्षेत्रों में बीज खाते हैं, तो उनकी गति कम होती है।

इन सभी आंकड़ों को मिलाकर, शोधकर्ताओं ने बीज फैलाने में व्यवधान का एक सूचकांक तैयार किया, जिससे मानवीय गतिविधियों और जीवों द्वारा बीज को फैलाने में गिरावट के बीच के संबंध का पता चला। फिर उन्होंने उस सूचकांक और समय के साथ प्राकृतिक रूप से फिर से उगने वाले उष्णकटिबंधीय जंगलों में कार्बन जमा करने के रिकॉर्ड के बीच संबंधों का विश्लेषण किया, जिसमें सूखे की स्थिति, आग लगने की घटना और चरने वाले पशुओं की उपस्थिति जैसे कारणों को नियंत्रित किया गया।

अध्ययन में शामिल हजारों उष्णकटिबंधीय जंगलों में कार्बन अवशोषण में चार गुना अंतर के लिए बीज फैलाव में रुकावट के कारणों की खोज की गई, जो उष्णकटिबंधीय जंगलों में कार्बन पर प्रमुख तंत्र के रूप में बीज फैलाने वालों की ओर इशारा करता है।

पहचाने गए फिर से उगने वाले वनों में बीज फैलाने में गिरावट सालाना कार्बन अवशोषण में कमी से जुडी हुई पाई गई, जो औसतन 1.8 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर थी, जो दोबारा उगने वालों में 57 फीसदी की कमी के बराबर थी।

अध्ययन के परिणामों से पता चलता है कि प्राकृतिक तौर पर फिर से उगने वाली वन परियोजनाएं उन भू-दृश्यों में अधिक प्रभावी होंगी जहां बीज फैलाने वाले जानवरों को कम रुकावट का सामना करना पड़ा, जिनमें हाल ही में पेड़ों के काटे जाने वाले इलाके और अधिक वृक्षावरण वाले क्षेत्र शामिल हैं।

पेड़ लगाने और पेड़ों को प्राकृतिक रूप से फिर से उगने देने के बीच की लागत अहम है, जबकि पेड़ लगाने में पैसा खर्च होता है और इससे वनों में विविधता भी कम होती है। इन परिणामों के साथ अब हम समझ सकते हैं कि प्राकृतिक रूप से पेड़ कहां उग सकते है क्योंकि कुछ जानवर मुफ्त में बीज बो रहे हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि बीज फैलाने वाले जीवों की सहायता के लिए, उनके आवासों की रक्षा की जानी चाहिए। जिसमें वन्यजीव गलियारों से लेकर वन्यजीव व्यापार पर प्रतिबंध तक शामिल हैं। उन जगहों पर बीज फैलाने वाली प्रजातियों को दोबारा स्थापित करके भी संभव है जहां वे लुप्त हो गई हैं या ऐसे पेड़ लगाकर जो उन जीवों को आकर्षित करते हैं

इन निष्कर्षों से प्राकृतिक रूप से दोबारा उगने वाले वनों के जलवायु प्रभाव का मॉडलिंग अधिक सटीक हो सकता है। जब जीव विलुप्त हो जाते हैं, तो उन पारिस्थितिक बुनियादी ढांचे भी गायब हो जाते हैं जो हमारे उष्णकटिबंधीय जंगलों को स्वस्थ बनाए रखते हैं।