कचरे में आसानी से मिलते भोजन की वजह से भालुओं के भोजन संबंधी व्यवहार में बदलाव आ सकता है; फोटो: आईस्टॉक 
वन्य जीव एवं जैव विविधता

जम्मू कश्मीर: मानव अतिक्रमण और बढ़ते कचरे से खतरे में हिमालयी भूरे भालू

कचरे में आसानी से भोजन मिलने की वजह से भालू भोजन खोजने का अपना प्राकृतिक तरीका भूलने लगे हैं, जिससे इंसानों और उनके बीच टकराव की घटनाएं बढ़ सकती हैं

Susan Chacko, Lalit Maurya

जम्मू कश्मीर में भूरे भालू की आबादी बेहद परेशान होने के साथ-साथ कई तरह के खतरों से जूझ रही है। यह जानकारी 11 नवंबर, 2024 को वाइल्डलाइफ एसओएस ने अपनी रिपोर्ट में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को दी है। 

इसके कारणों पर प्रकाश डालते हुए रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि बढ़ती मानव आबादी, प्राकृतिक आवासों को हो रहा नुकसान, पर्यटन और उससे संबंधित निर्माण, बढ़ती सड़कें-सुरंगें इसके लिए जिम्मेवार हैं।

साथ ही मवेशियों की चराई, प्रतिशोध में भालुओं की हत्या, धार्मिक स्थलों के आसपास हो रहे निर्माण, प्राकृतिक आवासों में किया जा रहा वृक्षारोपण, औषधीय पौधों का संग्रह और अन्य इंसानी गतिविधियां भी भूरे भालुओं की आबादी को प्रभावित कर रही हैं।

गौरतलब है कि एनजीओ वाइल्डलाइफ एसओएस ने हिमालयी भूरे भालुओं का अध्ययन करने और यह समझने के लिए कि लोगों और भालुओं के बीच संघर्ष क्यों होता है, जम्मू कश्मीर वन्यजीव संरक्षण विभाग के साथ एक शोध परियोजना शुरू की थी। इस शोध के आधार पर उन्होंने यह रिपोर्ट तैयार की है।

इस रिपोर्ट में हिमालयी भूरे भालू की पारिस्थितिकी, आवास और इंसानों के साथ संघर्ष से लेकर कचरा डंप तक उनके पहुंचने पर प्रकाश डाला गया है।

यह रिपोर्ट वन अधिकारियों, वन्यजीव प्रबंधकों, नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और उन स्थानीय समुदायों की मदद से तैयार की गई है, जो जम्मू कश्मीर में मानव-भालू संघर्ष का सामना कर रहे हैं।

इस अध्ययन में भूरे भालुओं की गतिविधियों और दैनिक जीवन का अध्ययन करने के लिए 20,627 कैमरा ट्रैप फुटेज का विश्लेषण किया गया। इनमें से 9,131 वीडियो में भालू आहार की तलाश करते दिखाई दिए।

इसके बाद शोधकर्ताओं ने हिमालयी क्षेत्र में भूरे भालुओं के आहार के बारे में जानने के लिए उनके मल का विश्लेषण किया। वाइल्डलाइफ एसओएस के शोधकर्ताओं ने नमूनों के आकार, रंग, बनावट और यहां तक ​​कि गंध का भी सावधानीपूर्वक अध्ययन किया।

कचरे में खाना तलाशते भालू

इनके मल के विश्लेषण से पता चला कि भूरे भालू अपचनीय वस्तुओं का सेवन कर रहे हैं, जो उनके खाने के लिए उपयुक्त नहीं हैं। जांच के दौरान 408 में से 86 नमूनों में प्लास्टिक की थैलियां, दूध पाउडर के पैकेट, चॉकलेट के रैपर, कांच के टुकड़े और उच्च कैलोरी वाले भोजन पाया गया। यह सभी चीजे भालुओं के जीवनकाल को कम कर सकती हैं।

इनके मल के विश्लेषण से पता चला है कि भूरे भालू कचरे वाली जगहों पर इंसानों द्वारा फेंका अपशिष्ट खा रहे थे। इसमें चिकन के पंख, पंजे, अंडे के छिलके, भेड़ के बाल और हड्डियां जैसे हिस्से शामिल थे। इसके साथ ही उनके द्वारा खाई गई चीजों में चना दाल, बीन्स, मूंगफली, चावल, जई और फलों के बीज जैसे खाद्य अवशेष भी शामिल थे।

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि जंगली पौधों (15.48 फीसदी), प्लास्टिक बैग (8.77 फीसदी), फसल (0.41 फीसदी) और भेड़ (0.31 फीसदी) की तुलना में भूरे भालू के मल में कचरे में मौजूद खाद्य पदार्थों (75.03 फीसदी) के पाए जाने की आवृत्ति कहीं अधिक थी। जो इस बात को दर्शाता है कि जंगली भालू कचरे में मौजूद खाद्य पदार्थों पर कहीं ज्यादा निर्भर हो रहे हैं।

शोध से पता चला है कि भूरे भालू अक्सर सोनमर्ग विकास प्राधिकरण (एसडीए) के सरबल स्थित कचरा डंप के साथ-साथ सेना शिविरों और अमरनाथ शिविर के कचरा स्थलों पर जाते है। सोनमर्ग साइट पर, कम से कम तीन से 11 कचरा ट्रक हर दिन 50 से 550 किलोग्राम भोजन और कचरा फेंकते हैं।

बदल रहा व्यवहार

ये कचरा स्थल ऐसे स्थान बन गए हैं जहां जंगली और पालतू जानवर दोनों आसानी से भोजन पा रहे हैं। इससे जानवरों के भोजन खोजने की आदतों में बदलाव आ रहा है। यही वजह है कि आसानी से भोजन मिलने की वजह से कई भालू भोजन खोजने का अपना प्राकृतिक तरीका भूलने लगे हैं।

ऐसे में रिपोर्ट में चेताया गया है कि यदि भूरे भालू इसी तरह से व्यवहार करते रहे, तो आने वाली पीढ़ियां प्राकृतिक तरीके से भोजन ढूंढने की जगह उसे कचरे में ढूंढना सामान्य मान सकती हैं। इसकी वजह से युवा भालुओं के भोजन संबंधी व्यवहार में बदलाव आ सकता है। नतीजन भालुओं और मनुष्यों के बीच संघर्ष की घटनाएं बढ़ सकती हैं।

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि चरवाहे और उनके झुंड भूरे भालुओं के प्राकृतिक आवास के आसपास फैल गए हैं, जिसकी वजह से भूरे भालू और इंसानों के बीच संघर्ष को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।

रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि इनके आवासों को लगातार नुकसान पहुंचाया जा रहा है। साथ ही वन क्षेत्रों पर होते अतिक्रमण के चलते यह मानव बस्तियों के करीब आने को मजबूर हो गए हैं। इससे इंसानों और इनके बीच संघर्ष का खतरा बढ़ गया है। इसकी वजह से भालू गांवों और सड़कों पर आ रहे हैं, जो भालुओं और इंसानों दोनों के लिए खतरनाक है।

यह भी देखा गया है कि जब मनुष्य अपने उपयोग के लिए ज्यादा से ज्यादा क्षेत्रों पर अतिक्रमण करते हैं तो उससे इंसानों और जंगली जीवों के बीच संघर्ष की आशंका बढ़ जाती है। इससे जीवों के प्राकृतिक आवास और प्रजातियों का नुकसान होता है।

यह भी देखा गया है कि क्षेत्र में पर्यटकों की संख्या में वृद्धि के साथ पैदा हो रहे कचरे की मात्रा में भी वृद्धि हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक मई से दिसंबर के बीच पर्यटन के व्यस्त सीजन में इतनी बड़ी संख्या में कचरा डंप किया जाता है जिसे संभालने के लिए कचरा प्रबंधन प्रणाली तैयार नहीं है।