सौर ज्वालाओं में आयन का तापमान अब तक के अनुमान से 6.5 गुना ज्यादा पाया गया।
आयन का तापमान 6 करोड़ डिग्री सेल्सियस से अधिक तक पहुंच सकता है।
मैग्नेटिक रिकनेक्शन प्रक्रिया आयनों को इलेक्ट्रॉनों से कहीं ज्यादा ऊर्जा प्रदान करती है।
50 साल पुराने स्पेक्ट्रल लाइन्स रहस्य का समाधान मिला।
यह खोज अंतरिक्ष मौसम और तकनीक की सुरक्षा में मददगार साबित होगी।
सूर्य हमारे सौरमंडल का केंद्र है और पृथ्वी पर जीवन का सबसे बड़ा ऊर्जा स्रोत भी। लेकिन इसके भीतर और सतह पर होने वाली गतिविधियां आज भी वैज्ञानिकों के लिए रहस्यमयी बनी हुई हैं। हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट एंड्रूज के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा खुलासा किया है जिसने न सिर्फ सौर ज्वालाओं (सोलर फ्लॉरेस) के तापमान की समझ को बदल दिया है बल्कि एक 50 साल पुराने खगोल-विज्ञान से जुड़े सवाल का जवाब भी दे दिया है।
सौर ज्वाला क्या होती है?
सौर ज्वालाएं सूर्य के बाहरी वातावरण में अचानक और तीव्र ऊर्जा के विस्फोट को कहते हैं। ये विस्फोट सूर्य के वायुमंडल के कुछ हिस्सों को एक करोड़ डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा गर्म कर देते हैं। इन घटनाओं के समय सूर्य से निकलने वाली एक्स-रे किरणें और विकिरण पृथ्वी तक पहुंचते हैं, जो हमारे ग्रह के ऊपरी वातावरण को प्रभावित करते हैं। इससे उपग्रहों, अंतरिक्ष यात्रियों और संचार प्रणालियों को खतरा हो सकता है।
नई खोज: कण पहले से कहीं ज्यादा गर्म
एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स में प्रकाशित नई रिसर्च से पता चला है कि सौर ज्वालाओं में मौजूद आयन यानी धनावेशित कण पहले के अनुमानों से 6.5 गुना ज्यादा गर्म हो सकते हैं। जहां पहले वैज्ञानिक मानते थे कि इनका तापमान लगभग एक करोड़ डिग्री तक होता है, वहीं अब अध्ययन से पता चला कि ये छह करोड़ डिग्री सेल्सियस से भी अधिक तक पहुंच सकते हैं।
आयन और इलेक्ट्रॉन में अंतर
यह सौर प्लाज्मा दो मुख्य कणों से बना होता है, आयन (धन आवेशित कण) इलेक्ट्रॉन (ऋण आवेशित कण) हैं। अब तक वैज्ञानिकों का मानना था कि सौर ज्वालाओं में दोनों का तापमान लगभग समान होता है। लेकिन शोधकर्ताओं की टीम के अध्ययन ने बताया कि सौर ज्वालाओं में आयन इलेक्ट्रॉनों की तुलना में कहीं ज्यादा गरम हो जाते हैं।
यह गर्मी क्यों और कैसे होती है?
इसका मुख्य कारण है एक प्रक्रिया जिसे मैग्नेटिक रिकनेक्शन कहते हैं। यह एक भौतिक प्रक्रिया है जिसमें सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र की रेखाएं अचानक टूटकर फिर से जुड़ जाती हैं। इस प्रक्रिया से अपार ऊर्जा निकलती है, जो विशेष रूप से आयनों को इलेक्ट्रॉनों की तुलना में 6.5 गुना ज्यादा ऊर्जा प्रदान करती है। यही वजह है कि आयनों का तापमान इलेक्ट्रॉनों से कई गुना ज्यादा हो जाता है।
50 साल पुराना रहस्य सुलझा
1970 के दशक से वैज्ञानिकों को एक बड़ी उलझन थी। उन्होंने देखा था कि सौर ज्वालाओं से निकलने वाली स्पेक्ट्रल लाइन्स यानी किरणों की चौड़ाई उम्मीद से कहीं ज्यादा है। पहले यह माना जाता था कि इसका कारण तूफानी गतियां (टर्बुलेन्स) हैं। लेकिन समय के साथ इस व्याख्या पर सवाल उठने लगे, क्योंकि इतनी अधिक चौड़ाई को केवल गति से समझाना मुश्किल था।
नई रिसर्च ने दिखाया कि अत्यधिक गर्म आयन ही इन चौड़ी स्पेक्ट्रल लाइन्स का कारण हैं। इसका मतलब है कि आधी सदी से वैज्ञानिक जिस जवाब की तलाश कर रहे थे, वह अब मिल गया है।
पृथ्वी और लोगों पर असर
सौर ज्वालाएं केवल वैज्ञानिक रुचि का विषय ही नहीं हैं, बल्कि इनका सीधा असर हमारे जीवन और तकनीक पर भी पड़ता है।
उपग्रह: तीव्र विकिरण और गरम कणों की वजह से उपग्रहों की इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियां प्रभावित हो सकती हैं।
अंतरिक्ष यात्री: अंतरिक्ष में मौजूद यात्रियों के लिए ये विकिरण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं।
संचार और नेविगेशन सिस्टम: रेडियो तरंगों और जीपीएस पर भी इनका असर पड़ता है।
पृथ्वी का वातावरण: ऊपरी परतों (आयनोस्फीयर) में बदलाव के कारण हवाई यातायात और संचार बाधित हो सकते हैं।
क्यों महत्वपूर्ण है यह खोज?
यह खोज कई मायनों में ऐतिहासिक है, इसने सौर ज्वालाओं की वास्तविक गर्मी के बारे में नई जानकारी दी। इसने साबित किया कि आयन और इलेक्ट्रॉन का तापमान हमेशा समान नहीं होता। 50 साल से चले आ रहे स्पेक्ट्रल लाइन्स की चौड़ाई के रहस्य का समाधान दिया। भविष्य में अंतरिक्ष मौसम की बेहतर भविष्यवाणी करने में मदद मिल सकती है। सूर्य की कार्यप्रणाली को समझने में यह खोज एक नया अध्याय जोड़ती है।
सूर्य हमारे लिए ऊर्जा और जीवन का स्रोत है, लेकिन यह अपने भीतर कई रहस्य छुपाए बैठा है। सौर ज्वालाओं के तापमान और उनके असर को लेकर यह नई खोज न सिर्फ विज्ञान जगत में उत्साह भरने वाली है, बल्कि यह मानव जाति को अंतरिक्ष में सुरक्षित रहने और पृथ्वी पर तकनीकी प्रणालियों को बचाने के लिए भी मार्गदर्शन देगी।
सौर भौतिकी में यह खोज एक पैराडाइम शिफ्ट यानी सोच में बड़ा बदलाव लाती है। अब वैज्ञानिकों के सामने नए सवाल और चुनौतियां हैं, जैसे इन सुपर-हॉट आयनों को और बेहतर ढंग से मापना, और यह समझना कि इनका प्रभाव हमारी तकनीकी दुनिया पर किस तरह पड़ेगा। लेकिन इतना तय है कि यह खोज आने वाले वर्षों में अंतरिक्ष विज्ञान की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाएगी।