शोधकर्ताओं ने एक नया, उपकरण विकसित किया है, जिसमें वर्तमान की कुछ सबसे गंभीर पर्यावरणीय चुनौतियों जैसे गंदे पानी को साफ करने, औद्योगिक प्रदूषण और पानी से तेल को अलग करने का समाधान करना शामिल है। प्रतीकात्मक छवि, फोटो साभार: आईस्टॉक
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

आईआईटी गुवाहाटी ने गंदे पानी और तेल रिसाव से निपटने के लिए नया उपाय खोजा

यह कई क्षमताओं वाली सामग्री विज्ञान में एक अहम प्रगति है, जो स्वच्छ जल, प्रदूषण नियंत्रण और अगली पीढ़ी के लिए तकनीकी समाधान प्रदान करती है।

Dayanidhi

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने एक नया उपकरण विकसित किया है जो गंदे पानी को साफ करने, औद्योगिक प्रदूषण कम करने और पानी से तेल अलग करने में मदद करेगा।

इस उपकरण में एक विशेष सामग्री का उपयोग किया गया है जिसे एरोजेल कहा जाता है। एरोजेल एक हल्की, छिद्रयुक्त और अत्यधिक सोखने वाली सामग्री है। इसकी सतह का क्षेत्र बहुत बड़ा होता है, जिससे यह पानी और तेल को प्रभावी ढंग से अलग कर सकता है।

प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, आईआईटी गुवाहाटी के भौतिकी विभाग और नैनो प्रौद्योगिकी केंद्र के प्रोफेसर पी. के. गिरी के नेतृत्व में किए गए इस शोध में एक नई सामग्री पेश की गई है, जिसे कई तरीकों से औद्योगिक कचरे से निपटने के लिए डिजाइन किया गया है

एरोजेल अल्ट्रा-लाइटवेट, अत्यधिक छिद्र वाली सामग्री है, जिसका सतह का क्षेत्र बड़ा है और इसमें असाधारण सोखने के गुण हैं, जो उन्हें पर्यावरणीय और औद्योगिक प्रयोगों के लिए आदर्श बनाते हैं।

तेजी से बढ़ते औद्योगीकरण और अंधाधुंध खेती के चलते विभिन्न प्रदूषक निकल रहे हैं। इनमें एंटीबायोटिक और औद्योगिक रंगों जैसे घुलनशील कार्बनिक यौगिकों से लेकर अघुलनशील तेल तक शामिल हैं। गंदे पानी का प्रभावी उपचार दुनिया भर में प्राथमिकता बन गई है। साफ पानी की बढ़ती कमी इस समस्या को और जटिल बना रही है, जो उन्नत, कुशल और टिकाऊ समाधानों की जरूरत को सामने लाती है।

जबकि झिल्ली से छानने जैसे पारंपरिक तरीकों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, उन्नत ऑक्सीकरण प्रक्रियाओं (एओपी) ने प्रदूषकों को नष्ट करने में उनकी प्रभावशीलता के लिए अधिक ध्यान आकर्षित किया है। विशेष रूप से, पेरोक्सिमोनोसल्फेट (पीएमएस)-सक्रिय एओपी अत्यधिक प्रतिक्रियाशील सल्फेट और हाइड्रॉक्सिल रेडिकल उत्पन्न करने के लिए खड़े हैं, जिनकी कम मात्रा भी जटिल कार्बनिक अणुओं को तोड़ने में सक्षम हैं।

इस समस्या को दूर करने के लिए आईआईटी गुवाहाटी की टीम ने कार्बन फोम के साथ एमएक्सीन, एक दो-आयामी सामग्री जो अपनी बहुत अधिक चालकता और रासायनिक प्रतिक्रियाशीलता के लिए जानी जाती है, को मिलाकर एक हाइब्रिड एरोजेल विकसित किया है। एमएक्सीन ढांचे में फास्फोरस डोपिंग को शामिल करके, शोधकर्ताओं ने इसकी पीएमएस सक्रियण क्षमता में काफी सुधार किया, जिससे गंदे पानी में लगातार कार्बनिक प्रदूषकों का आसानी से विघटन संभव हो जाता है।

गंदे पानी को साफ करने के अलावा एरोजेल ने तेल को पानी से अलग करने में भी बहुत अच्छा प्रदर्शन किया। इसकी छिद्रपूर्ण संरचना तेल को अवशोषित करती है जबकि पानी को पीछे हटाती है, जिससे यह तेल रिसाव को साफ करने और औद्योगिक कचरे के उपचार के लिए अत्यधिक प्रभावी हो जाता है। इस अलग करने की प्रक्रिया न केवल आसान व अच्छी है बल्कि पर्यावरण के अनुकूल भी है

विज्ञप्ति में शोध के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, प्रो. गिरी ने कहा कि यह शोध दर्शाता है कि कैसे एक ही सामग्री पर्यावरणीय चुनौतियों के लिए कई समाधान पेश कर सकती है। हमने जो हाइब्रिड एरोजेल विकसित किया है, वह गंदे पानी को छानने, तेल को पानी से अलग करने में आशाजनक परिणाम दिखाता है, जो पर्यावरणीय स्थिरता को व्यावहारिक बहुमुखी प्रतिभा के साथ जोड़ता है।

इसके अलावा विकसित एरोजेल एक लचीले स्ट्रेन सेंसर के रूप में भी कार्य करता है। इसका विद्युत प्रतिरोध यांत्रिक तनाव के जवाब में बदलता है, जिससे पहनने योग्य इलेक्ट्रॉनिक्स, स्मार्ट डिवाइस और संरचनात्मक स्वास्थ्य निगरानी प्रणालियों में इसके प्रयोग के रास्ते खुलते हैं।

यह कई क्षमताओं वाली सामग्री विज्ञान में एक अहम प्रगति है, जो स्वच्छ जल, प्रदूषण नियंत्रण और अगली पीढ़ी के लिए तकनीकी समाधान प्रदान करती है।

विज्ञप्ति में कहा गया है कि टीआई3सी2टीएक्स-आधारित हाइब्रिड एरोजेल बहुत अच्छे तरीके से काम करता है, लेकिन इसका पारंपरिक एचएफ-आधारित संश्लेषण महत्वपूर्ण पर्यावरणीय और विषाक्तता संबंधी समस्याएं उत्पन्न करता है। इससे निपटने के लिए, शोधकर्ता बड़े पैमाने पर प्रयोगों के लिए एसिड-मुक्त संश्लेषण मार्गों की खोज कर रहे हैं।

इसके अलावा वे उत्प्रेरक के दौरान एमएक्सीन- नैनोशीट के प्रत्यक्ष क्षरण को रोककर एमएक्सीन-आधारित एरोजेल के प्रदर्शन और स्थायित्व को बढ़ाने के लिए एक सह-उत्प्रेरक परत शुरू करने पर काम कर रहे हैं। इस शोध के निष्कर्ष अंतर्राष्ट्रीय जर्नल कार्बन में प्रकाशित हुए है।