जोधपुर शहर के अधिकांश उद्योग अपने अपशिष्ट जल को बिना किसी उपचार के सीधे नालियों के माध्यम से जोजरी नदी में बहा रहे हैं। फोटो: सतीश कुमार मालवीय 
नदी

जहरीली होती जीवनधाराएं, भाग-सात: बीमारियों का कारण बनी जोधपुर की जोजरी नदी

जोजरी लूणी नदी की सहायक नदी है और बालोतरा के पास तिलवाड़ा में लूणी नदी में मिलती है

Satish Kumar Malviya

राजस्थान के जोधपुर से करीब 50 किलोमीटर दूर डोली धवा गांव के रहने वाले श्रवण कहते हैं, जब से जोजरी नदी का दूषित पानी हमारे इलाके में आया है। तब से जैव विविधता नष्ट हो गई हैं। धवा और डोली गांव सहित आसपास के क्षेत्र में पहले बड़ी संख्या में चिंकारा, नीलगाय, खरगोश, पोक्योपाइन, रेगिस्तानी लोमड़ी और कुछ अन्य दुर्लभ रेगिस्तानी सरीसृप रहते थे। लेकिन अब उनके जीवन पर जोजरी नदी के दूषित पानी की वजह से संकट पैदा हो गया। श्रवण ने बताया कि कुछ वर्षों में वन्यजीवों की संख्या में गिरावट आई हैं।

जोजरी नदी के विषैले पानी से प्रभावित गांवों में जोधपुर और बालोतरा जिले के कुछ गांव आते हैं। इनमें धवा, मेलावा, लोनावास, कल्याणपुर, आरबा और डोली समेत करीब एक दर्जन गांव है।

दरअसल जोजरी नदी जिसका उद्गम नागौर के पास है और एक बरसाती नदी है। जोजरी लूणी नदी की सहायक नदी है और बालोतरा के पास तिलवाड़ा में लूणी नदी में मिलती है। अब लंबे समय से नदी में पानी और बहाव नहीं होने से लोगों ने इसे कभी लूणी में मिलते नहीं देखा है। यह रास्ते में ही धवा गांव के पास रेगिस्तान में लुप्त हो जाती है।

वन्य जीव विशेषज्ञ सुमित डुकिया के अनुसार जोधपुर शहर से गुजरते समय इतनी बड़ी मात्रा में घरेलू और इंडस्ट्रियल अपशिष्ट छोड़ा जाता है, जिससे नदी में बहाव शुरू हो जाता है। लंबे समय तक अपशिष्ट छोड़ने से अपने बहाव क्षेत्र को छोड़कर तीन किलोमीटर पूर्व में बहने लगी। जिससे आसपास के गांवों में इसका पानी भरना शुरू हो गया। इस विषैले पानी की वजह से जल स्रोत, कुआं-तालाब, स्कूल, अस्पताल, देवस्थान भी दूषित हो गए हैं। 

 असेसमेंट ऑफ वॉटर क्वालिटी इण्डिसेज ऑफ हैवी मेटल पोल्लुशन इन जोजरी रिवर नामक एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जोजरी नदी के सिंचाई के लिए उपयोग किए जाने वाले औद्योगिक अपशिष्ट जल में सीसा, क्रोमियम और कैडमियम की उच्च सांद्रता जोधपुर शहर के लोगों में सांस संबंधी विकार, लीवर,  गुर्दा, तंत्रिका संबंधी समस्याएं, पेट संबंधी समस्याएं और कैंसर का कारण बन सकती है, जो इस पानी से उगाई गई सब्जियां, अनाज और दालें खा रहे हैं। 

जोधपुर शहर के अधिकांश उद्योग अपने अपशिष्ट जल को बिना किसी उपचार के सीधे नालियों के माध्यम से जोजरी नदी में बहा रहे हैं। स्थानीय पशु चिकित्सक श्रवण सिंह शेखावत बताते हैं, "जोजरी के विषैले पानी में नाइट्रेट की मात्रा बहुत अधिक है। ये नाइट्रेट पानी या हरे चारे के माध्यम से पशुओं के पेट में जाता है जो नाइट्राइट बनता है जिससे पशु या जंगली जानवर की प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, उनकी ऑक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता बेहद कम हो जाती है जिसका प्रभाव पशु के पुरे जीवन चक्र पर पड़ता है वो कई बीमारियों की चपेट में आता है।


शेखावत के मुताबिक इस पानी के सम्पर्क में आने से जानवर फ्यूसो बैक्टीरिया के शिकार हो जाते हैं जिससे उनके खुर सड़ने लगते हैं और धीरे धीरे वे दर्दनाक से मरते। बिट्स पिलानी में सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर अजीत सिंह जो एनजीटी के साथ जोजरी नदी पर एक रिपोर्ट पर काम कर चुके हैं, अपनी रिपोर्ट में लिखते हैं, "धोली और अराबा में जोजरी नदी के मार्ग को बहाल करना चाहिए, ताकि अपशिष्ट जल/वर्षा के पानी के संचय को रोका जा सके। डोली-अराबा क्षेत्र अनुपचारित अपशिष्ट जल से गंभीर रूप से प्रभावित क्षेत्र है। डोली गाँव की भूमि कई स्थानों पर औद्योगिक अपशिष्टों से भर गई है। खेती की जमीन खराब हो रही है। क्षेत्र में ताजे पानी के स्रोत जैसे कुएं, तालाब और भूजल प्रदूषित हो गए हैं और अब उपयोग के लिए उपयुक्त नहीं हैं। वे अपने मवेशियों के नहाने और पीने के लिए पानी की कमी से भी पीड़ित हैं। भारत के विलुप्त होते जा रहे जानवरों में से एक काला हिरण और अन्य वन्यजीव निवास स्थान डोली और अराबा गांव के बीच एनीकट के पास देखे गए थे, जो दूषित अपशिष्ट जल के कारण खतरे में हैं।"

जोधपुर पश्चिमी राजस्थान का सबसे बड़ा जिला है। जिसकी जनसंख्या 16 लाख के करीब है। विभिन्न स्थानों पर 21 औद्योगिक क्षेत्र हैं, जिन्हें राजस्थान औद्योगिक संरचना निगम (रीको) द्वारा विकसित और प्रबंधित किया गया है। जोधपुर में लगभग 215 कपड़ा उद्योग हैं। जोधपुर के कपड़ा उद्योग ज्यादातर स्क्रीन प्रिंटिंग प्रक्रियाओं से संबंधित है। 60 प्रतिशत उद्योगों में तैयार उत्पाद मुद्रित कपड़े हैं, जबकि 40 प्रतिशत में रंगे और प्रक्षालित कपड़े हैं। इस क्षेत्र में अन्य औद्योगिक इकाइयां सीमेंट, औद्योगिक गैसों, वस्त्र, ग्वारगम, रसायन, प्लास्टिक, इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल, खनिज आधारित आदि के निर्माण में लगी हुई हैं।

जोजरी पर एनजीटी की 2018 में आई रिपोर्ट के अनुसार नदी में प्रतिदिन 180 एमएलडी प्रदूषित अपशिष्ट छोड़ा जाता है। जोधपुर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मुख्य अभियंता शिल्पी शर्मा जोजरी में बह रह काले पानी को महज रंग कहती है, उसमें कोई खतरनाक रसायन नहीं है। शिल्पी के अनुसार जोधपुर में 380 एमएलडी पानी आता है, जिसमें हमारे पास 280 एमएलडी के ट्रीटमेंट की व्यवस्था है। 120 एमएलडी ट्रीट किया जा रहा है, इसमें से भी 40 एमएलडी क्षमता वाला रीको का ड्रेन भी है। नवंबर महीने तक तीन और एसटीपी चालू हो जाएंगे। जिसकी वजह से हमारे पास 205 एमएलडी अपशिष्ट ट्रीट करने की व्यवस्था होगी। उम्मीद है कि इससे स्थिति में कुछ सुधार होगा। शिल्पी पानी की गुणवत्ता रिपोर्ट साझा करने से इंकार करती है। 

एनजीटी में याचिकाकर्ताओं में से एक एडवोकेट पूरन सिहं आरबा जोधपुर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नए एसटीपी या सीईटीपी प्रबंधन के दावों को झूठा बताते हैं। उन्होंने बताया कि वह इस केस में वकील है और यह केस हमारी ग्राम पंचायत ने दायर किया था। 2015 में हमने, ग्राम पंचायत आरबा के रूप में इस ज्वलंत मुद्दे को संबोधित करने के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण में एक मामला दायर किया।

न्यायाधीश ने अपने विवेक से फरवरी 2022 में एक फैसला सुनाया, जिसमें उसने जोधपुर और बाड़मेर जिलों के स्थानीय अधिकारियों पर जुर्माना लगाया। इसके अतिरिक्त न्यायालय ने न्यायमूर्ति प्रकाश टाटिया की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को छह महीने के भीतर लागू करने का आदेश दिया। जिसके लिए 30 सितंबर 2022 की समय सीमा निर्धारित की गई। लेकिन स्थानीय निकायों और अधिकारियों ने न्यायालय के फैसले की पालना नहीं की। दूषित पानी

हमारे समुदाय पर कहर बरपा रहा है। रीको और नगर निगम ने इस मामले में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के आदेश के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में दो अपील दायर की है।