दिल्ली में पहली बार कृत्रिम वर्षा का प्रयोग आईआईटी कानपुर की अगुवाई में अक्टूबर व नवंबर 2025 में किया जाएगा।
विशेष विमान से बादलों में सिल्वर आयोडाइड और अन्य रसायन छोड़े जाएंगे ताकि बारिश हो और प्रदूषण धुल सके।
यह तकनीक अस्थायी राहत देती है, लेकिन स्थायी समाधान नहीं है क्योंकि यह मौसम और बादलों की उपलब्धता पर निर्भर करती है।
विशेषज्ञों के अनुसार, कृत्रिम वर्षा केवल ‘इमरजेंसी उपाय’ है, असली बदलाव के लिए प्रदूषण के स्रोतों (गाड़ियां, उद्योग, निर्माण) पर नियंत्रण जरूरी है।
कृत्रिम वर्षा से जुड़े कुछ स्वास्थ्य और पर्यावरणीय खतरे हैं, इसलिए सावधानी और वैज्ञानिक निगरानी अनिवार्य है।
दिल्ली में प्रदूषण हर साल सर्दियों के मौसम में एक बड़ी समस्या बनकर सामने आता है। अक्टूबर से लेकर जनवरी तक स्मॉग और जहरीली हवा लोगों के लिए गंभीर स्वास्थ्य संकट खड़ा कर देती है। इस बार प्रदूषण से तुरंत राहत दिलाने के लिए एक अनोखा प्रयोग किया जा रहा है, कृत्रिम वर्षा या आर्टिफिशियल रेन।
इस तकनीक को वैज्ञानिक भाषा में क्लाउड सीडिंग कहा जाता है। यह परियोजना आईआईटी कानपुर के नेतृत्व में अक्टूबर से नवंबर 2025 के बीच दिल्ली में की जाएगी। विशेष विमान की मदद से बादलों में कुछ रसायन छोड़े जाएंगे ताकि बारिश हो और हवा में मौजूद जहरीले कण धुल जाएं।
कृत्रिम वर्षा क्या है?
कृत्रिम वर्षा का अर्थ है ऐसी बारिश कराना जो प्राकृतिक रूप से नहीं होती, बल्कि वैज्ञानिक तरीकों से बादलों को उत्तेजित करके कराई जाती है। इस प्रक्रिया में सिल्वर आयोडाइड, पोटैशियम आयोडाइड या ड्राई आइस जैसे रसायन बादलों में छोड़े जाते हैं। ये रसायन बादलों की नमी को आकर्षित करते हैं और छोटे-छोटे कणों को मिलाकर बूंदें बनाते हैं, इन बूंदों से बारिश होती है।
दिल्ली को कृत्रिम वर्षा की जरूरत क्यों?
दिल्ली और एनसीआर में हर साल अक्टूबर-नवंबर के दौरान हवा जहरीली हो जाती है। इसके कई कारण हैं, जिनमें पराली जलाना, गाड़ियों का धुआं, उद्योग और फैक्ट्री से निकलने वाले उत्सर्जन तथा निर्माण कार्य से उड़ने वाली धूल आदि शामिल हैं।
जब हवा ठंडी होती है तो प्रदूषण जमीन के पास जम जाता है और लोग सांस की गंभीर बीमारियों से जूझते हैं। इसी वजह से दिल्ली सरकार और वैज्ञानिक कृत्रिम वर्षा का सहारा लेना चाहते हैं ताकि बारिश से हवा कुछ साफ हो सके।
कृत्रिम बारिश के फायदे
बारिश होने पर धूल और जहरीले कण जमीन पर बैठ जाते हैं। कुछ दिनों के लिए हवा साफ और सांस लेने लायक हो जाती है। विदेशों जैसे संयुक्त अरब अमीरात, चीन और अमेरिका में इस तकनीक से पांच से 15 फीसदी तक अतिरिक्त बारिश हुई है। दिल्ली के लिए यह एक तात्कालिक राहत का उपाय हो सकता है।
कृत्रिम बारिश की सीमाएं और नुकसान
हालांकि कृत्रिम बारिश कोई स्थायी समाधान नहीं है। इसमें कई सीमाएं और खतरे भी हैं, जिनमें मौसम पर निर्भरता – अगर बादल और नमी पर्याप्त न हों, तो यह तकनीक काम नहीं करेगी। तात्कालिक राहत– बारिश केवल कुछ दिनों तक ही प्रदूषण को कम करेगी।
रासायनिक खतरे: सिल्वर आयोडाइड जैसे रसायन पानी और मिट्टी में जमा होकर पारिस्थितिकी पर असर डाल सकते हैं।
स्वास्थ्य पर प्रभाव: बहुत कम मात्रा में ही सही, लेकिन लंबे समय तक प्रयोग से सांस और त्वचा की समस्याएं हो सकती हैं।
जलवायु असंतुलन: कृत्रिम रूप से मौसम में बदलाव करने से अन्य इलाकों में बारिश प्रभावित हो सकती है।
स्वास्थ्य से जुड़े खतरे
वैज्ञानिकों का कहना है कि कृत्रिम बारिश में इस्तेमाल होने वाले रसायनों की विषाक्तता बहुत कम है। लेकिन अगर यह बार-बार और बड़े पैमाने पर किया जाए तो खतरे हो सकते हैं। इसकी वजह से अस्थमा और ब्रोंकाइटिस वाले मरीजों की परेशानी बढ़ सकती है। त्वचा पर एलर्जी हो सकती है। पानी में रसायन जमा होने पर अगर बिना छाने पिया जाए तो स्वास्थ्य जोखिम बढ़ सकता है।
क्या हैं सावधानियां?
अगर दिल्ली में कृत्रिम बारिश होती है तो आम लोगों को बारिश के दौरान और तुरंत बाद ज्यादा देर बाहर नहीं निकलना चाहिए। मास्क का प्रयोग करना चाहिए तथा पानी को छानकर पीना चाहिए।
साल 2018 में डाउन टू अर्थ के अंग्रेजी संस्करण को दिए गए एक साक्षात्कार में, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) में सीनियर रिसर्च एसोसिएट रहे पोलाश मुखर्जी ने कहा था कि “क्लाउड सीडिंग तभी किया जा सकता है जब मौसम की स्थिति इसके अनुकूल हो और वातावरण में पर्याप्त नमी हो"।
"लेकिन यह सिर्फ अस्थायी राहत देगा। जब तक प्रदूषण के असली स्रोतों – जैसे गाड़ियां, फैक्ट्रियां और निर्माण कार्य पर रोक नहीं लगाई जाएगी, तब तक कृत्रिम वर्षा का असर बहुत सीमित रहेगा"।
दिल्ली में होने वाली कृत्रिम वर्षा एक तरह से आपातकालीन उपाय है, जो कुछ दिनों के लिए प्रदूषण को कम कर सकती है। लेकिन यह प्रदूषण की असली वजहों का समाधान नहीं है। विशेषज्ञ मानते हैं कि दिल्ली को साफ हवा देने के लिए वाहनों के उत्सर्जन, औद्योगिक धुएं और निर्माण प्रदूषण पर कड़े कदम उठाने होंगे।
कृत्रिम वर्षा को एक सहायक रणनीति की तरह देखा जाना चाहिए, न कि स्थायी समाधान की तरह। अगर इसे वैज्ञानिक निगरानी और पर्यावरणीय सुरक्षा के साथ किया जाए तो यह थोड़ी राहत जरूर दिला सकती है। लेकिन असली बदलाव तभी संभव होगा जब हम प्रदूषण के स्रोतों पर नियंत्रण करेंगे और टिकाऊ विकास की ओर बढ़ेंगे।