एंटीबायोटिक दवाओं को बेअसर करने वाला रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) एक ऐसा अदृश्य खतरा है, जिसका प्रभाव सीमाओं से परे है। यही वजह है कि कोई भी देश अकेला दुनिया में तेजी से बढ़ते इस खतरे का मुकाबला नहीं कर सकता।
हालांकि इस खतरे से निपटना बेहद जरूरी है, क्योंकि समय रहते यदि इस पर ध्यान न दिया गया तो यह कोरोना और जलवायु परिवर्तन जितना ही खतरनाक हो सकता है। रोगाणुरोधी प्रतिरोध के इसी खतरे को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के 79 वें सत्र के दौरान आयोजित एक उच्चस्तरीय बैठक में वैश्विक नेताओं ने इसपर निर्णायक कार्रवाई का संकल्प लिया है। साथ ही इस दौरान एक राजनैतिक घोषणा-पत्र भी पारित किया गया है।
गुरूवार को पारित इस घोषणा-पत्र में रोगाणुरोधी प्रतिरोध की वजह से होने वाली मौतों में 2030 तक दस फीसदी की कमी करने की बात कही गई है। घोषणा पत्र में इस लक्ष्य को स्थापित करने के साथ-साथ, चुनौती से निपटने के लिए अहम समाधानों को भी चिन्हित किया गया है।
घोषणापत्र में रोगाणुरोधी प्रतिरोध के खिलाफ जंग में देशों की मदद के लिए 10 करोड़ डॉलर के शुरूआती फण्ड की बात कही गई है। इसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि 2030 तक कम से कम 60 फीसदी देशो में एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध का मुकाबला करने की योजनाओं को वित्तपोषित किया जा सके। डब्ल्यूएचओ प्रमुख ने इस घोषणापत्र को वैश्विक कार्रवाई योजना की दिशा में पहला कदम बताया है, जिसे 2026 तक अमल में लाए जाने की सम्भावना है।
रोगाणुरोधी प्रतिरोध या एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेन्स एक ऐसा खतरा है, जो हर साल सीधे तौर पर 13 लाख जिंदगियों को निगल रहा है। वहीं हर साल होने वाली करीब 50 लाख मौतों के लिए भी यह किसी न किसी रूप में जिम्मेवार है। इतना ही नहीं यह अर्थव्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव डाल रहा है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा जारी रिपोर्ट "ब्रेसिंग फॉर सुपरबग" के मुताबिक हर बीतते दिन के साथ रोगाणुरोधी प्रतिरोध कहीं ज्यादा बड़ा खतरा बनता जा रहा है। अनुमान है कि यदि इसपर अभी ध्यान न दिया गया तो अगले कुछ वर्षों में इसकी वजह से सालाना वैश्विक अर्थव्यवस्था को 281.1 लाख करोड़ रूपए से ज्यादा का नुकसान उठाना पड़ सकता है।
आशंका है यदि इससे निपटा न गया तो और 2.4 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी की मार झेलने को मजबूर होंगे। इतना ही नहीं आशंका है कि अगले 26 वर्षों में रोगाणुरोधी प्रतिरोध से मरने वालों का आंकड़ा बढ़कर दोगुणा हो जाएगा। मतलब की 2050 तक यह एक करोड़ से ज्यादा लोगों की मौत की वजह बन सकता है।
स्वास्थ्य ही नहीं विकास से भी जुड़ा मुद्दा है रोगाणुरोधी प्रतिरोध
संयुक्त राष्ट्र महासभा के इस सत्र के अध्यक्ष फिलेमॉन यैंग ने इस समस्या को मौजूदा दौर के सबसे बड़े खतरों में से एक बताया है। उनका कहना है कि रोगाणुरोधी प्रतिरोध महज दुनिया में वैश्विक स्वास्थ्य से जुड़ा खतरा ही नहीं है, बल्कि यह विकास से जुड़ा भी मुद्दा है। उनके मुताबिक एंटीबायोटिक्स से लेकर एंटीवायरल जैसी एंटीमाइक्रोबियल दवाएं, हर दिन लाखों लोगों का जीवन बचाने में मददगार साबित होती हैं, लेकिन सम्भव है कि एक दिन ये दवाएं असर करना बन्द कर दें।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जब बैक्टीरिया, वायरस, कवक व परजीवी जैसे रोगाणुओं पर रोगाणुरोधी दवाओं का असर बन्द हो जाता है, तब रोगाणुरोधी प्रतिरोध की स्थिति पैदा होती है। यह वो स्थिति है जिसमें रोगाणुओं पर दवा-प्रतिरोध के चलते रोगाणुरोधी दवाएं काम करना बंद कर देती हैं। नतीजन संक्रमण का इलाज मुश्किल हो जाता है।
बता दें कि कोरोना महामारी की तरह ही दवा-प्रतिरोधी संक्रमण सीमाओं के दायरे में बंधे नहीं होते। ऐसे में दुनिया का कोई भी व्यक्ति इससे सुरक्षित नहीं है।
पढ़ने में भले यह महज आंकड़े लगे, लेकिन रोगाणु रोधी प्रतिरोध के हर आंकड़े के एक इंसानी जीवन और उसकी पीड़ा शामिल है। जो लोग इसका शिकार बनते हैं उनको कई समस्याओं से जूझना पड़ता है। उपचार के सीमित विकल्प, लम्बे समय तक अस्पताल में भर्ती रहना और लगातार दवाएं लेना इसमें शामिल है।
इतना ही नहीं इसकी वजह से न केवल आय में कमी आती है। साथ ही इलाज पर बढ़ते खर्च की वजह से उधार लेने तक की नौबत आ जाती है। ऐसे में गरीबी, परिवार पर बढ़ता दबाव और पीड़ा इसी सिक्के का एक पहलु है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, "यह किसी को, कहीं भी हो सकता है।" भले ही आप पूरी तरह स्वस्थ हों, लेकिन एक छोटी सी चोट, आम सर्जरी या फेफड़ों का सामान्य सा लगने वाला संक्रमण भी अचानक से जीवन के लिए संकट बन सकता है। इसी तरह जो लोग पहले ही कैंसर, मधुमेह या एचआईवी जैसी बीमारियों से जूझ रहे हैं, उनके लिए एक संक्रमण घातक साबित हो सकता है। यह ऐसे समय में वार करता है, जब इसके उभरने की बहुत कम आशंका होती है।
अब सवाल यह है कि रोगाणुरोधी प्रतिरोध क्यों फैल रहा है। देखा जाए तो इसके पैदा होने और फैलने के लिए कई कारक जिम्मेवार हैं। इनमें इंसानों और जानवरों पर एंटीबायोटिक दवाओं का बेतहाशा होता उपयोग सबसे बड़ी वजह है। जब जरूरी न होने पर यह दवाएं दी जाती हैं या फिर जरूरत से ज्यादा दवाएं देना, इलाज पूरा न करना जैसे कारक इसके फैलने की वजह बन सकते हैं।
इसी तरह मवेशियों में जिस तरह बीमारियों की रोकथाम या उनके विकास की दर को बढ़ाने के लिए रोगाणुरोधी दवाओं का उपयोग बढ़ रहा है। वो इसके बढ़ने की वजह बन सकता है। यह इन जीवों के जरिए इंसानों में भी फैल सकता है।
इसी तरह साफ सफाई और स्वच्छता की कमी भी दवा प्रतिरोधी सूक्ष्मजीवों के प्रसार को बढ़ा सकती है। इसके साथ ही सीमाओं के परे लोगों की बढ़ती आवाजाही भी रोगाणुओं के प्रसार के लिए अनुकूल माहौल तैयार कर सकती है।
हालांकि अच्छी खबर यह है कि इसके प्रसार को सीमित किया जा सकता है, साथ ही इसकी सौ फीसदी रोकथाम संभव है। इस समस्या को देखते हुए 2015 में अन्तरराष्ट्रीय साझेदारों ने एक वैश्विक कार्य योजना भी अपनाई थी।
इसके लिए रोगाणुरोधी दवाओं का विवेकपूर्ण इस्तेमाल जरूरी है। आम लोगों में इसके बढ़ते खतरे को लेकर जागरूकता भी जरूरी है, साथ ही ज्यादा से ज्यादा रिसर्च की भी आवश्यकता है। संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण के साथ-साथ, नियमित टीकाकरण, साफ-सफाई, स्वच्छ पानी आदि को भी प्राथमिकता देना जरूरी है। इतना ही नहीं स्वास्थ्य प्रणालियों को सशक्त करने से इसके बढ़ते मामलों को सीमित किया जा सकता है।
इनपर लगातार निगरानी रखना भी जरूरी है। बता दें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसके खतरे को देखते हुई 2024 की शुरुआत में ही दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया की सूची को अपडेट किया है।
इस योजना में संक्रमण की रोकथाम व नियंत्रण के लिए भी लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। इसके तहत 2030 तक, सभी देशों में स्वास्थ्य सुविधाएं, साफ पानी, स्वच्छता, अपशिष्ट प्रबंधन जैसी बुनियादी सुविधाएं होनी चाहिए। लक्ष्य यह भी है कि 90 फीसदी देश संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित न्यूनतम मानकों को हासिल करें।
दवाओं तक उचित पहुंच में निवेश के साथ, यह भी सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता जताई गई है कि उनका उचित उपयोग किया जाएगा। साथ ही इस बारे में बेहतर रिपोर्टिंग पर भी बल दिया गया है कि रोगाणुरोधी दवाओं का उपयोग कैसे किया जाता है और प्रतिरोधी रोगाणु कैसे फैल रहे हैं।
महासभा प्रमुख ने ध्यान दिलाया है कि यह मनुष्यों, पशुओं और पौधों में होने वाली बीमारियों का उपचार करने की हमारी क्षमता के नजरिए से बेहद अहम है। साथ ही यह खाद्य सुरक्षा, पोषण, आर्थिक विकास, समानता व पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने ध्यान दिलाया है कि पेनिसिलिन की खोज करने वाले वैज्ञानिक अलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने 1945 में ही रोगाणुरोधी प्रतिरोध के खतरों को लेकर आगाह किया था।
उनके मुताबिक यह स्वास्थ्य एवं विकास के लिए बड़ा खतरा है, जिससे स्वास्थ्य क्षेत्र में हुई दशकों से की प्रगति पलट सकती है।