एचजीपीएस एक दुर्लभ बीमारी है जिसमें बच्चों में तेजी से बुढ़ापा आता है, जिसका कारण है प्रोटीन प्रोजेरिन।
प्रोजेरिन कोशिका की कार्यप्रणाली को बाधित करता है और डीएनए को नुकसान पहुंचाता है, जिससे कोशिकाएं जल्दी बूढ़ी हो जाती हैं।
शोध में पाया गया कि प्रोजेरिन को लाइसोसोम के जरिए हटाया जा सकता है, लेकिन एचजीपीएस में लाइसोसोम की कार्यक्षमता घट जाती है।
पीकेसी को सक्रिय करके या एमटीओआरसी1 को अवरुद्ध करके लाइसोसोम को दोबारा सक्रिय किया गया, जिससे प्रोजेरिन तेजी से साफ हुआ।
यह खोज बुढ़ापे और अन्य उम्र-संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए नई उम्मीद लेकर आई है।
हम सभी जानते हैं कि बुढ़ापा एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। लेकिन कुछ बच्चों में यह प्रक्रिया बहुत जल्दी शुरू हो जाती है। इस दुर्लभ बीमारी को हचिंसन-गिलफोर्ड प्रोजेरिया सिंड्रोम (एचजीपीएस) कहा जाता है। इस बीमारी से पीड़ित बच्चे बहुत कम उम्र में ही बूढ़े दिखने लगते हैं। उनकी त्वचा झुलसी हुई लगती है, बाल झड़ जाते हैं, शरीर कमजोर हो जाता है और दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
अब वैज्ञानिकों ने एक नई उम्मीद जगाई है। हाल ही में चीन के पेइचिंग विश्वविद्यालय और कुनमिंग विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी खोज की है जिससे इस बीमारी को कम किया जा सकता है। उनका कहना है कि अगर शरीर में लाइसोसोम को सक्रिय किया जाए, तो यह बीमारी और इससे जुड़ी बुढ़ापे की समस्याएं काफी हद तक ठीक हो सकती हैं।
एचजीपीएस और प्रोजेरिन: बीमारी का कारण
एचजीपीएस का सबसे बड़ा कारण है प्रोजेरिन नामक एक दोषपूर्ण प्रोटीन। यह प्रोटीन कोशिका के नाभिक को नुकसान पहुंचाता है। इसके कारण कोशिका की दीवार बिगड़ जाती है, डीएनए को नुकसान पहुंचता है, टेलोमियर छोटे हो जाते हैं और कोशिका की वृद्धि रुक जाती है।
हालांकि पहले यह माना जाता था कि प्रोजेरिन सिर्फ एचजीपीएस में ही पाया जाता है, लेकिन अब यह भी पाया गया है कि यह सामान्य बुढ़ापे और क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) जैसी बीमारियों में भी मौजूद होता है। इसलिए अगर इस प्रोटीन को शरीर से हटाया जाए, तो न केवल एचजीपीएस के रोगियों को मदद मिल सकती है, बल्कि उम्र से जुड़ी दूसरी बीमारियों में भी फायदा हो सकता है।
लाइसोसोम: शरीर की सफाई करने वाली मशीन
हमारी कोशिकाओं में लाइसोसोम एक तरह की सफाई करने वाली मशीन की तरह काम करता है। यह खराब हो चुके प्रोटीन और अन्य बेकार चीजों को खत्म करता है। इस नए शोध में पाया गया कि प्रोजेरिन को भी लाइसोसोम के जरिए साफ किया जा सकता है।
शोधकर्ताओं ने यह भी देखा कि एचजीपीएस के मरीजों की कोशिकाओं में लाइसोसोम ठीक से काम नहीं कर रहा था। उन्होंने आएनए सीक्वेंसिंग और अन्य तकनीकों से यह सिद्ध किया कि एचजीपीएस मरीजों में लाइसोसोम से जुड़ी कई जरूरी जीनों की गतिविधि कम हो गई थी।
लाइसोसोम की सक्रियता से मिला समाधान
अब सवाल यह था कि अगर लाइसोसोम कमजोर हो गया है, तो क्या उसे दोबारा सक्रिय किया जा सकता है?
शोधकर्ताओं ने दो तरीकों से लाइसोसोम बायोजेनेसिस (यानि नए लाइसोसोम बनाना) को बढ़ाया, जिसमें प्रोटीन काइनेज सी (पीकेसी) को सक्रिय करके। एमटीओआरसी1 नामक प्रोटीन कॉम्प्लेक्स को रोक कर।
इन दोनों तरीकों से कोशिकाओं में नए लाइसोसोम बनने लगे और प्रोजेरिन को तेजी से साफ किया जाने लगा। नतीजा यह हुआ कि कोशिकाओं में डीएनए को नुकसान कम हुआ, कोशिकाएं फिर से विभाजित होने लगीं, बुढ़ापे के लक्षण कम हो गए।
इस खोज के बड़े फायदे
साइंस नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन यह साबित करता है कि अगर हम शरीर के प्राकृतिक सफाई तंत्र यानी लाइसोसोम को सही तरीके से काम करने दें, तो हम न केवल एचजीपीएस जैसी गंभीर बीमारियों से लड़ सकते हैं, बल्कि सामान्य बुढ़ापे की प्रक्रिया को भी धीमा कर सकते हैं।
एचजीपीएस के इलाज में नई दिशा, सीकेडी और अन्य बुढ़ापे से जुड़ी बीमारियों में संभावित उपचार, उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को बेहतर तरीके से समझना और रोकना।
यह शोध न केवल एचजीपीएस जैसी दुर्लभ बीमारी को समझने में मदद करता है, बल्कि हमें यह भी दिखाता है कि शरीर की अपनी सफाई प्रणाली को मजबूत बनाकर हम उम्र से जुड़ी कई समस्याओं का समाधान पा सकते हैं।
भविष्य में ऐसे उपचार विकसित किए जा सकते हैं जो सीधे लाइसोसोम को सक्रिय करें, ताकि प्रोजेरिन और अन्य हानिकारक प्रोटीनों को हटाया जा सके और कोशिकाएं फिर से स्वस्थ और सक्रिय हो सकें।
शोध से पता चलता है कि बुढ़ापा कोई अपरिवर्तनीय प्रक्रिया नहीं है, सही जानकारी और तकनीक से हम इसे धीमा कर सकते हैं और लंबी, स्वस्थ जीवन की ओर बढ़ सकते हैं।