प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक 
स्वास्थ्य

इंसानी सेल्स के लिए खतरा हैं सिंगल-यूज प्लास्टिक बोतल से निकलने वाले नैनोप्लास्टिक: भारतीय अध्ययन

भारतीय शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन से पता चला है कि सिंगल-यूज पीईटी बोतलों से पैदा नैनोप्लास्टिक सीधे तौर पर उन शरीर के उन जरूरी बायोलॉजिकल सिस्टम को खराब कर सकते हैं जो इंसानी सेहत के लिए बेहद जरूरी हैं

Lalit Maurya

  • भारतीय अध्ययन में खुलासा हुआ है कि सिंगल-यूज प्लास्टिक बोतलों से निकलने वाले नैनोप्लास्टिक इंसानी शरीर के बायोलॉजिकल सिस्टम को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

  • ये कण आंतों, खून और कोशिकाओं के कामकाज को बाधित कर सकते हैं, जिससे स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।

  • यह अध्ययन प्लास्टिक के उपयोग पर पुनर्विचार की आवश्यकता को दर्शाता है।

हर दिन हम जिन प्लास्टिक की सिंगल यूज बोतलों का इस्तेमाल पानी के लिए करते हैं, वे हमारी सेहत को कितना नुकसान पहुंचा सकती हैं, इसका पहला ठोस सबूत एक नई भारतीय स्टडी में सामने आया है।

इंस्टिट्यूट ऑफ नैनो साइंस एंड टेक्नोलॉजी, मोहाली से जुड़े शोधकर्ताओं ने अपने नए अध्ययन में खुलासा किया है कि सिंगल-यूज पीईटी बोतलों से पैदा नैनोप्लास्टिक सीधे तौर पर उन शरीर के उन जरूरी बायोलॉजिकल सिस्टम को खराब कर सकते हैं जो इंसानी सेहत के लिए बेहद जरूरी हैं।

जर्नल नैनोस्केल एडवांसेज में प्रकाशित इस शोध के नतीजे दर्शाते हैं कि इन बोतलों से पैदा हुए प्लास्टिक के ये महीन कण हमारी आंतों, खून और कोशिकाओं के कामकाज को सीधा तौर पर बाधित कर सकते हैं।

नैनोप्लास्टिक: शरीर के अंदर बढ़ता मौन खतरा

आज दुनिया में शायद ही ऐसी कोई जगह बची होगी जहां प्लास्टिक इन इन महीन कणों ने अपना डेरा न जमाया हो। यहां तक कि इंसानी शरीर भी इंसाने सुरक्षित नहीं है। हमारे खाने-पीने की चीजों से लेकर हवा, धरती, समुद्र, नदियों, झीलों, बादलों में हर जगह यह कण मौजूद हैं। हालात यह हैं कि यह हमारे शरीर में रक्त से लेकर अन्य अंगों तक में रच-बस गए हैं।

हालांकि इससे पहले भी प्लास्टिक के इन महीन कणों पर कई अध्ययन हो चुके हैं लेकिन इंसानी शरीर पर इनका किस हद तक असर पड़ता है यह अब तक एक अबूझ पहेली बना हुआ है।

यही वजह है कि इस नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने यह समझने का प्रयास किया है कि नैनोप्लास्टिक गट माइक्रोब्स, यानी आंतों के फायदेमंद जीवाणुओं को कैसे प्रभावित करते हैं। गौरतलब है कि ये माइक्रोब्स हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता, पाचन, मेटाबोलिज्म और मानसिक स्वास्थ्य को संतुलित रखते हैं। इसलिए इनके नुकसान का मतलब है हमारी सेहत पर सीधी चोट।

कैसे पता चला खतरा?

अपने इस अध्ययन में मोहाली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ नैनो साइंस एंड टेक्नोलॉजी से जुड़े शोधकर्ताओं ने एक मल्टी-सिस्टम इन्वेस्टिगेशन किया। इसमें न सिर्फ गट बैक्टीरिया बल्कि रेड ब्लड सेल्स और ह्यूमन एपिथेलियल सेल्स को भी देखा गया। इसका मकसद वातावरण में मौजूद प्लास्टिक का इंसानी सेहत पड़ने वाले गंभीर प्रभावों की जांच करना था।

उन्होंने लैब में पीईटी बोतलों से नैनोप्लास्टिक तैयार किए और उन्हें तीन प्रमुख जैविक प्रणालियों पर उनका टेस्ट किया। इस अध्ययन में शरीर के लिए फायदेमंद गट बैक्टीरिया लैक्टोबैसिलस रैम्नोसस का इस्तेमाल यह देखने के लिए किया गया कि नैनो-प्लास्टिक माइक्रोबायोम पर कैसे असर डालते हैं।

शोधकर्ताओं ने पाया कि लम्बे समय तक इन नैनो-प्लास्टिक के संपर्क में रहने से अच्छे बैक्टीरिया की वृद्धि, गति और सुरक्षा क्षमता कम हो गई। तनाव बढ़ने से बैक्टीरिया एंटीबायोटिक के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो गए।

ब्लड कम्पैटिबिलिटी टेस्ट करने के लिए लाल रक्त कोशिकाओं की जांच की गई। इससे पता चला कि ज्यादा मात्रा में नैनोप्लास्टिक्स की मौजूदगी ने सेल मेम्ब्रेन को नुकसान पहुंचाया और हीमोलिटिक बदलाव किए, यानी रक्त कोशिकाएं टूटने लगीं।

सामान्य सेल प्रतिक्रिया को समझने के लिए ह्यूमन एपिथेलियल सेल्स पर भी अध्ययन क्या गया। यहां, लंबे समय तक नैनोप्लास्टिक्स के संपर्क में रहने से डीएनए को नुकसान पहुंचा, ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस, एपोप्टोसिस और इन्फ्लेमेटरी सिग्नलिंग के साथ-साथ ऊर्जा और पोषक तत्वों के मेटाबॉलिज्म में बदलाव देखे गए।

क्या कहती है स्टडी

इन तीनों प्रणालियों में हुए बदलाव एक ही दिशा की ओर इशारा करते हैं कि हमारी रोजमर्रा की प्लास्टिक बोतलें नैनोप्लास्टिक के रूप में शरीर के भीतर जाकर खतरनाक प्रतिक्रियाएं पैदा कर सकती हैं।

प्लास्टिक से बने ये नैनो-प्लास्टिक बायोलॉजिकली एक्टिव पार्टिकल हैं, ये कण हमारी आंतों की सेहत को बिगाड़ सकते हैं। रक्त कोशिकाओं को कमजोर कर सकते हैं। साथ ही कोशिकाओं के डीएनए को नुकसान पहुंचा सकते हैं और सूजन को बढ़ाकर कई बीमारियों को जन्म दे सकते हैं।

इसका मतलब है कि यह अदृश्य खतरे स्वास्थ्य के लिए बड़ा संकट बन चुके हैं, जिन्हें हम रोज बिना जाने अपने शरीर में उतार रहे हैं। यह अध्ययन एक चेतावनी है कि नैनोप्लास्टिक का असर अब केवल पर्यावरण तक सीमित नहीं रहा। यह इंसानी स्वास्थ्य, कृषि, पोषण और पारिस्थितिक तंत्र पर भी गहरे असर डाल सकता है।

यह अध्ययन साफ संकेत देता है कि अब वक्त आ गया है, जब उद्योग और सरकार, मिलकर प्लास्टिक के इस्तेमाल और उसके कचरे को लेकर गंभीरता से दोबारा सोचें।