विश्व एड्स दिवस 2025 का थीम : “विघटन पर विजय, एड्स प्रतिक्रिया में रूपांतरण” पर वैश्विक जोर।
भारत की बड़ी प्रगति : 2010 से 2024 के बीच नए संक्रमणों, मौतों और मां-से-बच्चे में संक्रमण में भारी कमी।
नाको की प्रमुख भूमिका: विकेंद्रीकृत, समुदाय-आधारित एचआईवी सेवाओं से भारत का सफल एड्स नियंत्रण मॉडल।
वैश्विक स्थिति: 2024 में 4.08 करोड़ लोग एचआईवी के साथ जी रहे थे, 13 लाख नए संक्रमण और 63 लाख मौतें दर्ज की गई।
2030 लक्ष्य: डब्ल्यूएचओ और यूएनएड्स का 95-95-95 लक्ष्य, ताकि एचआईवी महामारी को खत्म किया जा सके।
हर साल एक दिसंबर को दुनिया भर में विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है। यह दिन हमें एचआईवी-एड्स के प्रति जागरूकता फैलाने, एचआईवी से जुड़े मिथकों को तोड़ने, इस बीमारी से मरने वाले लोगों को याद करने और एचआईवी के साथ जी रहे लोगों के प्रति समर्थन प्रकट करने का अवसर देता है।
विश्व एड्स दिवस की शुरुआत साल 1988 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा की गई थी। आज यह एक वैश्विक आंदोलन बन चुका है, जिसमें सरकारें, संस्थाएं, समुदाय और हर एक नागरिक एड्स-मुक्त दुनिया के लक्ष्य के लिए मिलकर प्रयास कर रहे हैं।
2025 का थीम
इस साल की थीम “विघटन पर विजय, एड्स प्रतिक्रिया में रूपांतरण” है। यह थीम हमें याद दिलाती है कि महामारी, संघर्ष, आर्थिक चुनौतियां और सामाजिक असमानताएं एचआईवी सेवाओं की उपलब्धता में बाधाएं उत्पन्न करती हैं।
इसलिए केवल पिछली सफलताओं को बचाए रखना पर्याप्त नहीं है। हमें स्वास्थ्य सेवाओं को अधिक मजबूत, न्यायसंगत और समुदाय-आधारित बनाते हुए एचआईवी प्रतिक्रिया में बदलाव करने होंगे।
भारत में विश्व एड्स दिवस की महत्वता
भारत में हर साल विश्व एड्स दिवस राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता अभियानों, सामुदायिक कार्यक्रमों और सरकारी पहल से मनाया जाता है। इसका नेतृत्व राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) द्वारा किया जाता है, जो स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है।
स्कूलों, कॉलेजों, सामुदायिक संस्थाओं और स्वास्थ्य केंद्रों के माध्यम से व्यापक अभियान चलाए जाते हैं ताकि लोग एचआईवी के रोकथाम, जांच, उपचार और समर्थन सेवाओं के बारे में सीख सकें।
भारत का एड्स नियंत्रण कार्यक्रम : एक सफल मॉडल
भारत का एड्स नियंत्रण कार्यक्रम विश्व स्तर पर एक सफलता की कहानी माना जाता है। 1985 से 1991 के शुरुआती चरण में देश ने एचआईवी संक्रमण की पहचान, सुरक्षित रक्त संक्रमण और जागरूकता पर ध्यान केंद्रित किया। 1992 में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (एनएसीपी) और नाको की स्थापना के बाद देश में एचआईवी प्रतिक्रिया को संगठित रूप मिला।
समय के साथ कार्यक्रम का फोकस राष्ट्रीय स्तर से बदलकर अधिक विकेंद्रीकृत और समुदाय भागीदारी आधारित हुआ। निजी संस्थाओं, गैर-सरकारी संगठनों और एचआईवी के साथ जी रहे लोगों के नेटवर्क को इसमें व्यापक रूप से शामिल किया गया। इस समुदाय-आधारित मॉडल ने भारत को एचआईवी के खिलाफ लड़ाई में मजबूत बनाया।
2010 से 2024 तक भारत की प्रगति
भारत ने हाल के वर्षों में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं
नए एचआईवी संक्रमणों में 48.7 फीसदी की कमी
एड्स से होने वाली मौतों में 81.4 फीसदी की कमी
मां से बच्चे में एचआईवी संचरण में 74.6 फीसदी की गिरावट
सरकार द्वारा जारी 2025 के आंकड़ों के अनुसार, एचआईवी परीक्षण 2020 से 21 के 4.13 करोड़ से बढ़कर 2024 से 25 में 6.62 करोड़ हो गया। एंटीरिट्रोवायरल उपचार लेने वाले लोगों की संख्या 14.94 लाख से बढ़कर 18.60 लाख हो गई। वायरल लोड परीक्षण 8.90 लाख से बढ़कर 15.98 लाख हो गया। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत एचआईवी नियंत्रण में लगातार प्रगति कर रहा है और उपचार सेवाओं की पहुंच बढ़ती जा रही है।
वैश्विक स्तर पर एचआईवी/एड्स की स्थिति
एचआईवी अभी भी दुनिया के लिए एक बड़ी स्वास्थ्य चुनौती है। अब तक लगभग 4.41 करोड़ लोग एड्स से संबंधित बीमारियों के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं। 2024 के अंत तक 4.08 करोड़ लोग एचआईवी के साथ जी रहे थे, जिनमें से 65 फीसदी अफ्रीकी क्षेत्र में थे।
13 लाख लोग नए संक्रमित हुए, 63 लाख लोगों की मौत एचआईवी से संबंधित बीमारियों से हुई।
डब्ल्यूएचओ, यूएनएड्स और द ग्लोबल फंड, सभी का लक्ष्य साल 2030 तक एचआईवी महामारी को समाप्त करना है। इसके लिए विश्व स्तर पर 95-95-95 लक्ष्य तय किए गए हैं:
95 फीसदी लोग अपनी एचआईवी स्थिति जानें, उनमें से 95 फीसदी उपचार हासिल करें और उपचार पाने वालों में से 95 फीसदी में वायरल लोड दबा हुआ हो
2024 तक दुनिया इन लक्ष्यों की ओर बढ़ रही है, 87 फीसदी लोग अपनी स्थिति जानते हैं, 77 फीसदी इलाज ले रहे हैं और 73 फीसदी में वायरल लोड नियंत्रित है।
आगे की राह
विश्व एड्स दिवस 2025 हमें याद दिलाता है कि एचआईवी के खिलाफ लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। हालांकि वैज्ञानिक प्रगति, उपचार की उपलब्धता और जागरूकता ने स्थिति में सुधार किया है, लेकिन सामाजिक कलंक, असमानताएं, आर्थिक कठिनाइयाँ और स्वास्थ्य सेवाओं में बाधाएं अभी भी चुनौती बनी हुई हैं।
हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि एचआईवी के साथ जी रहे लोग सम्मान, समर्थन और बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के साथ एक सुरक्षित जीवन जी सकें। समुदाय की भागीदारी, शिक्षा, नियमित परीक्षण, और उपचार ही एचआईवी महामारी को नियंत्रित करने की कुंजी हैं।