31 दिसंबर 2019 को विश्व स्वास्थ्य संगठन को चीन के शहर वुहान में अज्ञात कारण से निमोनिया के मामलों की जानकारी मिली। बाद में पता चला कि यह कोरोनावायरस की वजह से फैली बीमारी है, जिसे कोविड-19 नाम दिया गया, जिसे आगे चल कर एक महामारी घोषित कर दिया गया। आज इस घटना को पांच साल बीत चुके हैं। मई 2023 में कोविड-19 महामारी के खात्मे की घोषणा भी कर दी गई, लेकिन इसका असर भी अब भी बरकरार है।
कोरोनावायरस का प्रसार इतना तेज था कि वुहान का यह वायरस देखते ही देखते पूरी दुनिया में फैलने लगा और मात्र 30 दिनों में विश्व स्वास्थ्य संगठन को दुनिया के लिए हेल्थ इमरजैंसी घोषित करनी पड़ी। तब तक यह वायरस 20 से अधिक देशों में फैल चुका था। भारत में पहला मामला भी इसी दिन यानी 30 जनवरी 2020 को सामने आया, जब भारत सरकार ने दोपहर में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि केरल में नोबेल कोरोनावायरस का पहला मामला सामने आया है। पीड़ित युवती मेडिकल की छात्रा है और चीन के शहर वुहान में पढ़ती थी। हालांकि भारत में कोविड-19 से पहली मौत 12 मार्च 2020 को हुई। कर्नाटक के कलबुर्गी जिले के 76 वर्षीय व्यक्ति की मौत का कारण कोरोना वायरस पाया गया था। तब तक देश में 77 मामले सामने आ चुके थे। तब तक हालात पूरी दुनिया में बिगड़ चुके थे। यही वजह थी कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 11-12 मार्च की रात में कोरोनावायरस को वैश्विक महामारी घोषित कर दिया।
मार्च में भारत में भी कोविड-19 का विकराल रूप सामने आने लगा था। वायरस के प्रसार को रोकने के लिए पहले 22-23 मार्च को कुछ राज्यों में लॉकडाउन घोषित किया गया, लेकिन 24 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश में 21 दिन के लिए लॉकडाउन लगाने की घोषणा की। लॉकडाउन का सबसे अधिक असर अप्रवासी मजदूरों को झेलना पड़ा। शहरों में काम न होने के कारण उन्हें पैदल अपने गांवों को लौटना पड़ा। सफर के दौरान कई लोगों की मौत भी हो गई।
लॉकडाउन की वजह से जब पूरे देश की अर्थव्यवस्था लुढ़कने लगी, तब देश की कृषि व्यवस्था ने देश को संभाला। साथ ही, एक बड़ा परिवर्तन पर्यावरण में देखने को मिला। वायु प्रदूषण हो या जल प्रदूषण या ध्वनि प्रदूषण, सबमें अभूतपूर्व कमी आई। लेकिन इसके अलावा कई मोर्चों पर भारत काफी पिछड़ गया। खासकर गरीब बच्चों पर इसका व्यापक असर देखा गया।
फरवरी 2024 में प्रकाशित एक सर्वे में कहा गया है कि लॉकडाउन की वजह से बच्चों में कम वजन और कुपोषण के मामले बढ़ गए। शोधकर्ताओं ने भारत में लॉकडाउन समाप्त होने के 18 महीने बाद गणना की और जून 2017 और जुलाई 2021 के बीच कम वजन वाले बच्चों का अनुपात 31 प्रतिशत से बढ़कर 45 प्रतिशत हो गया, जिससे कुपोषित बच्चों की संख्या में 14 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
कितने लोग मारे गए
कोविड-19 से कुल कितने लोग मारे गए, इसका ठोस आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, क्योंकि ज्यादातर देशों ने आंकड़ों में घालमेल किया। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने मई 2022 में जारी अनुमानों में बताया था कि दुनिया में 1 जनवरी 2020 से 31 दिसंबर 2021 के बीच कोविड-19 महामारी से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी कुल मृत्यु दर लगभग 1.49 करोड़ थी।
भारत में भी कितने लोग मारे गए, यह अभी भी रहस्य बना हुआ है। डब्ल्यूएचओ ने अनुमान लगाया था कि कोविड-19 की वजह से भारत में 47 लाख लोगों की मौत हुई, जबकि भारत सरकार के आधिकारिक आंकड़ों में कहा गया था कि उस समय तक देश में 5.23 लाख लोगों की मौत हुई थी। वहीं, सरकार के कोविड डेशबोर्ड के मुताबिक 30 दिसंबर तक देश में मरने वालों की संख्या 5,33,661 है। जबकि 4,45,10,902 लोग ठीक हो चुके हैं।
स्रोत का पता नहीं
पांच साल बीतने के बावजूद अब तक यह पता नहीं चल पाया है कि कोरोनावायरस का स्रोत क्या था? डब्ल्यूएचओ लगातार चीन पर दबाव डाल रहा है कि वह वायरस के स्रोत की जानकारी दे। वर्षगांठ के अवसर पर जारी एक बयान में डब्ल्यूएचओ ने कहा कि वायरस की उत्पत्ति को समझने का प्रयास एक "नैतिक और वैज्ञानिक आवश्यकता" है। ऐसे में यदि चीन डेटा की साझेदारी करने व पारदर्शिता बरतने की अनदेखी करता है तो भविष्य में होने वाली महामारियों से निपटने में इसका बुरा असर पड़ सकता है। बयान में कहा गया है, "पारदर्शिता, साझेदारी और देशों के बीच सहयोग के बिना दुनिया भविष्य की महामारियों और महामारी की रोकथाम और तैयारी में पर्याप्त रूप से सक्षम नहीं हो सकती है।"