फिल्मों में नायक, नायिकाओं से लेकर स्पोट्सपर्सन जैसे सेलेब्रिटी अक्सर च्युइंग गम चबाते दिख जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि च्युइंग गम सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है। ऐसे में यदि आप भी च्युइंग गम चबाते हैं, तो सावधान हो जाइए।
च्युइंग गम को लेकर किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि च्युइंग गम में प्लास्टिक के बेहद महीन कण छिपे होते हैं, जो इसे चबाने से आपके शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।
यह अध्ययन ब्रिटेन की क्वीन यूनिवर्सिटी बेलफास्ट के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है, जिसके नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल ऑफ जर्नल ऑफ हैजर्डस मैटेरियल्स में प्रकाशित हुए हैं। इस अध्ययन में जो चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं, उनसे पता चला है कि एक घंटे तक च्युइंग गम चबाने के बाद मानव लार (सलाईवा) में माइक्रोप्लास्टिक्स के 250,000 लाख तक कण पाए गए।
इतना ही नहीं यह महीन कण कहीं ज्याद छोटे टुकड़ों में भी टूट सकते हैं, जिन्हें नैनोप्लास्टिक्स (एनपी) के नाम से जाना जाता है। वैज्ञानिकों को इस अध्ययन के दौरान मानव लार में नैनोप्लास्टिक्स के कण भी मिले हैं।
गौरतलब है कि जब प्लास्टिक के बड़े टुकड़े टूटकर छोटे-छोटे कणों में बदल जाते हैं, तो उन्हें माइक्रोप्लास्टिक कहते हैं। इसके साथ ही कपड़ों और अन्य वस्तुओं के माइक्रोफाइबर के टूटने से भी माइक्रोप्लास्टिक्स के कण बनते हैं। सामान्यतः प्लास्टिक के एक माइक्रोमीटर से पांच मिलीमीटर के टुकड़े को ‘माइक्रोप्लास्टिक’ कहा जाता है।
अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने खास तकनीक 'ऑटोमेटेड रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी' की मदद से यह जांच की है, ताकि यह समझा जा सके कि इसे चबाने के दौरान कितने कण हमारी लार में प्रवेश करते हैं।
गौरतलब है कि च्युइंग गम रबर बेस, स्वीटनर, फ्लेवर और अन्य चीजों से बनाए जाते हैं। इनमें से नेचुरल गम को चबाने योग्य बनाने के लिए पौधों से प्राप्त पॉलिमर, जैसे कि चिकल या अन्य पेड़ के रस का उपयोग किया जाता है, जबकि अन्य को पेट्रोलियम-आधारित पॉलिमर से बने सिंथेटिक रबर बेस की मदद से बनाया जाता है।
अध्ययन के बारे में जानकारी देते हुए क्वींस यूनिवर्सिटी के पीएचडी फेलो उदित पंत ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “स्टडी के दौरान शोधकर्ताओं ने तीन हिस्सों में लार के सैंपल लिए हैं। इसमें पहला सैंपल च्युइंग गम चबाने के 0 से 20 मिनट के बाद, दूसरा 20 से 40 मिनट बाद, जबकि तीसरा सैंपल 40 से 60 मिनट के भीतर लिया गया। चौंकाने वाली बात यह है कि इन सभी नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक की मौजूदगी के सबूत मिले हैं।“
मतलब गम को चबाने की कोई सुरक्षित अवधि नहीं हो सकती — हर हाल में च्युइंग गम चबाने से प्लास्टिक के यह महीन कण हमारे शरीर में प्रवेश कर रहे हैं।
एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि चबाने के दो मिनट के भीतर ही ज्यादातर माइक्रोप्लास्टिक च्युइंगम से अलग हो गए। वैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसा लार के कारण नहीं बल्कि चबाने की वजह से होता है। चबाने से गम की परत टूटने लगती है और उसमें से प्लास्टिक के कण निकलने लगते हैं।
कहीं प्लास्टिक तो नहीं चबा रहे आप
वहीं आठ मिनट चबाने के बाद गम में से 94 फीसदी माइक्रोप्लास्टिक बाहर आ चुका था। ऐसे में वैज्ञानिकों का सुझाव है कि अगर लोग च्युइंगम से होने वाली माइक्रोप्लास्टिक के संभावित खतरे को कम करना चाहते हैं, तो बार-बार नई गम खाने की बजाय एक ही गम को ज्यादा देर तक चबाएं।
इस रिसर्च में यह भी सामने आया है कि एक ग्राम च्युइंग गम से औसतन माइक्रोप्लास्टिक के 100 कण निकलते हैं। हालांकि कुछ गम के टुकड़ों में प्रति ग्राम माइक्रोप्लास्टिक के 600 कण तक मिले हैं। आमतौर पर एक च्युइंग गम का वजन दो से छह ग्राम के बीच होता है। ऐसे में एक बड़े गम से 3,000 तक माइक्रोप्लास्टिक कण निकल सकते हैं। इसका मतलब है कि यदि कोई व्यक्ति प्रति वर्ष 160 से 180 छोटे गम चबाता है, तो उसके द्वारा माइक्रोप्लास्टिक के 30,000 तक कण निगले जा सकते हैं।
पंत के मुताबिक यह बेहद चिंताजनक है, क्योंकि इन कणों का इंसानी शरीर पर लंबे समय तक क्या असर होगा, यह अभी भी पूरी तरह ज्ञात नहीं है। लेकिन उन्हें उम्मीद है कि इस अध्ययन में उपयोग किया गया अभिनव दृष्टिकोण प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने में मददगार साबित हो सकता है।
पिछले शोधों से पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक शरीर के कई अंगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। अध्ययन के मुताबिक प्लास्टिक के यह महीन कण हमारे खाने, पीने या सांस के जरिए हमारे शरीर के अंदर पहुंच सकते हैं, जहां यह हमारे पाचन तंत्र, फेफड़ों, प्रजनन तंत्र और अन्य अंगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
शोधों में इस बात की भी पुष्टि हो चुकी है कि प्लास्टिक के यह महीन कण मानव रक्त से लेकर फेफड़ों, दिमाग सहित अन्य महत्वपूर्ण अंगों तक में अपनी पैठ बना चुके हैं। इनकी वजह से न केवल दिल के दौरे और स्ट्रोक का खतरा बढ़ रहा है साथ ही यह कई प्रजातियों में वृद्धि और प्रजनन जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं को भी बाधित कर रहे हैं।
देखा जाए तो प्लास्टिक के यह महीन कण धरती पर आज करीब-करीब हर जगह मौजूद हैं। अंटार्कटिका की बर्फ से महासागरों की अथाह गहराइयों में भी इनकी मौजूदगी किसी से छिपी नहीं है। यह कण बादलों, पहाड़ों, मिट्टी यहां तक की जिस हवा में हम सांस लेते हैं, उसमें भी मौजूद हैं। यहां तक कि हमारा खाना-पानी भी इनसे अनछुआ नहीं रह गया है।
अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर कुआंग काओ को भरोसा है कि उनका यह अध्ययन माइक्रो और नैनो प्लास्टिक प्रदूषण से जुड़ी एक बड़ी चिंता को समझने में मदद करेगा, जोकि दुनिया के सामने एक बड़ी समस्या बन चुका है।
अध्ययन में प्लास्टिक के इन महीनों कणों की पहचान का एक प्रभावी और असरदार तरीका पेश किया गया है। साथ ही च्युइंग गम जैसे अनदेखे स्रोतों से प्लास्टिक हमारे शरीर में कैसे पहुंच रहा है, इसको भी उजागर किया गया है।
ऐसे में अगली बार जब भी च्युइंग गम खाने जाएं, तो जरा रुकिए और सोचिए कि कहीं स्वाद के साथ-साथ आप अनजाने में प्लास्टिक तो नहीं चबा रहे?