साल 2021 के एक अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने हर साल 50,000 से ज्यादा अकाल मौतों, जिनमें से ज्यादातर हृदय रोग से होती हैं, को फ्थैलेट से जोड़ा था।  प्रतीकात्मक छवि, फोटो साभार: आईस्टॉक
स्वास्थ्य

हृदय रोग से होने वाली मौतों के पीछे प्लास्टिक में इस्तेमाल होने वाले केमिकल : शोध

प्लास्टिक में उपयोग होने वाले केमिकल डीईएचपी से जुड़े हृदय रोग से भारत में 1,03,587, यानी सबसे अधिक मौतें हुईं, उसके बाद चीन और इंडोनेशिया का स्थान रहा।

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एक नए अध्ययन में कहा गया है कि प्लास्टिक के घरेलू सामान बनाने में इस्तेमाल होने वाले कुछ केमिकलों के रोजमर्रा के संपर्क से साल 2018 में हृदय रोग से 3,56,000 से अधिक मौतें हुई।

फ्थैलेट नामक इन रसायनों का दुनिया भर में बहुत ज्यादा उपयोग होता है, लेकिन मध्य पूर्व, दक्षिण एशिया, पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में अन्य देशों की तुलना में मरने वालों की संख्या काफी ज्यादा है, जो कुल मौतों की लगभग तीन-चौथाई के बराबर है।

दशकों से विशेषज्ञ सौंदर्य प्रसाधनों, डिटर्जेंट, सॉल्वैंट्स, प्लास्टिक पाइप, कीट निरोधकों और अन्य उत्पादों में पाए जाने वाले कुछ फ्थैलेट के संपर्क से स्वास्थ्य समस्याओं को जोड़ते रहे हैं। जब ये रसायन सूक्ष्म कणों में टूटकर शरीर में प्रवेश करते हैं, तो अध्ययनों ने इन्हें मोटापे और मधुमेह से लेकर प्रजनन संबंधी समस्याओं और कैंसर जैसी बीमारियों के बढ़ते खतरों से जोड़ा है।

एनवाईयू लैंगोन हेल्थ के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए अध्ययन डाइ-2-एथिलहेक्सिल फ्थैलेट (डीईएचपी) नामक एक प्रकार के फ्थैलेट पर आधारित है। इसका उपयोग भोजन रखने के कंटेनरों, चिकित्सा उपकरणों और अन्य प्लास्टिक को नरम और अधिक लचीला बनाने के लिए किया जाता है।

अध्ययनों में यह पाया गया है कि इसके संपर्क से हृदय की धमनियों में सूजन उत्पन्न होती है, जो समय के साथ दिल के दौरे या स्ट्रोक के बढ़ते खतरों से जुड़ी होती है। अपने नए विश्लेषण में, शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि डीईएचपी के संपर्क में आने से 3,56,238 मौतें हुईं, जो 2018 में 55 से 64 वर्ष की आयु के पुरुषों और महिलाओं में हृदय रोग से होने वाली कुल वैश्विक मृत्यु दर का 13 फीसदी से अधिक है।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि दुनिया भर में मृत्यु के एक प्रमुख कारण और फ्थैलेट के बीच संबंध को सामने लाकर, शोध के निष्कर्ष उन व्यापक प्रमाणों में शामिल हो गए हैं जो बताते हैं कि ये रसायन मानव स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा हैं।

शोध के मुताबिक, अध्ययन में पहचानी गई मौतों से पड़ने वाला आर्थिक बोझ लगभग 510 अरब डॉलर आंका गया और यह 3.74 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है।

साल 2021 के एक अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने हर साल 50,000 से ज्यादा अकाल मौतों, जिनमें से ज्यादातर हृदय रोग से होती हैं, को फ्थैलेट से जोड़ा था। शोध की नई जांच को इन रसायनों के संपर्क में आने से होने वाली हृदय संबंधी मृत्यु दर या वास्तव में किसी भी स्वास्थ्य परिणाम का अब तक का पहला वैश्विक अनुमान माना जा रहा है।

यह शोध रिपोर्ट लैंसेट ईबायोमेडिसिन पत्रिका में ऑनलाइन प्रकाशित की गई है

शोध के लिए शोधकर्ताओं ने 200 देशों में डीईएचपी के संपर्क का अनुमान लगाने के लिए दर्जनों जनसंख्या सर्वेक्षणों से स्वास्थ्य और पर्यावरण संबंधी आंकड़ों का उपयोग किया। इस जानकारी में प्लास्टिक योजक द्वारा छोड़े गए रासायनिक उत्पादों वाले मूत्र के नमूने शामिल थे। मृत्यु दर के आंकड़े अमेरिका के एक शोध समूह, इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन से हासिल किए गए थे, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य में रुझानों की पहचान करने के लिए दुनिया भर से चिकित्सा जानकारी एकत्र करता है।

शोध के प्रमुख निष्कर्षों में, यह दिखाया गया है कि पूर्वी एशिया और मध्य पूर्व के इलाकों और पूर्वी एशिया और प्रशांत के हिस्सों में डीईएचपी से जुड़े हृदय रोग से होने वाली मृत्यु दर में क्रमशः 42 और 32 फीसदी की कमी आई। विशेष रूप से, भारत में सबसे अधिक 103,587 मौतें हुईं, उसके बाद चीन और इंडोनेशिया का स्थान रहा। इन आबादियों में हृदय मृत्यु के खतरे तब भी अधिक रहे जब शोधकर्ताओं ने अध्ययन किए गए आयु वर्ग के भीतर जनसंख्या के आकार को ध्यान में रखते हुए अपने सांख्यिकीय विश्लेषण किया।

शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि इन देशों में इन रसायनों के संपर्क में आने की दर ज्यादा है, हो सकता है इसलिए क्योंकि इन देशों में प्लास्टिक उत्पादन में तेजी आ रही है, लेकिन अन्य क्षेत्रों की तुलना में निर्माण से संबंधित प्रतिबंध कम हैं।

दुनिया के किन हिस्सों में फ्थैलेट से होने वाले हृदय संबंधी खतरे अधिक है, इसमें स्पष्ट असमानता है। शोध के नतीजे इन विषाक्त पदार्थों के संपर्क को कम करने के लिए दुनिया भर में नियमों की तत्काल जरूरत को सामने लाते हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां तेजी से औद्योगीकरण और प्लास्टिक की खपत सबसे ज्यादा हो रही है

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले कहा गया है कि विश्लेषण यह स्थापित करने के लिए नहीं बनाया गया था कि डीईएचपी सीधे या अकेले हृदय रोग का कारण बनता है और मृत्यु के बहुत बड़े खतरे में अन्य प्रकार के फ्थैलेट को ध्यान में नहीं रखा गया था। न ही इसमें अन्य आयु समूहों में मृत्यु दर को शामिल किया गया था। इसके कारण इन रसायनों से जुड़े हृदय रोग से होने वाली कुल मृत्यु दर हो सकता है कहीं अधिक हो।

शोध में कहा गया है कि शोधकर्ता अब यह पता लगाने की योजना बना रहे हैं कि समय के साथ फ्थैलेट के संपर्क को कम करने से दुनिया भर में मृत्यु दर को कैसे कम किया जा सकता है, साथ ही इस अध्ययन को आगे बढ़ते हुए इन रसायनों से उत्पन्न अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं, जैसे कि समय से पहले जन्म, पर भी शोध किया जाएगा।