मलेरिया एक जानलेवा बीमारी है जो मादा एनोफिलीज मच्छरों के काटने से मनुष्यों में फैलती है; फोटो: आईस्टॉक 
स्वास्थ्य

एक सदी की मेहनत लाई रंग, 2025 में मलेरिया मुक्त होने वाला पहला देश बना जॉर्जिया

अब तक दुनिया के 45 देशों और एक क्षेत्र को मलेरिया मुक्त घोषित किया जा चुका है। इससे पहले 2024 में मिस्र और केप वर्डे ने यह उपलब्धि हासिल की थी

Lalit Maurya

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने जॉर्जिया को आधिकारिक रूप से मलेरिया मुक्त घोषित कर दिया है। जॉर्जिया को यह सफलता उसके एक सदी तक किए अथक प्रयासों के बाद मिली है।

इस तरह जॉर्जिया 2025 में मलेरिया मुक्त होने वाला पहला देश बन गया है। बता दें कि अब तक दुनिया के 45 देशों और एक क्षेत्र को मलेरिया मुक्त घोषित किया जा चुका है। इससे पहले 2024 में मिस्र और केप वर्डे ने यह उपलब्धि हासिल की थी।

डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉक्टर टैड्रॉस एडनॉम घेब्रेयसस ने गुरूवार को यह घोषणा करते हुए कहा कि, "हम जॉर्जिया के लोगों को मलेरिया जैसी जानलेवा बीमारी को रोकने के लिए कई सालों से की गई उनकी कड़ी मेहनत के लिए बधाई देते हैं।" उनका आगे कहना है कि "जॉर्जिया की सफलता हमें दिखाती है कि मलेरिया मुक्त दुनिया संभव है।"

गौरतलब है कि मलेरिया एक जानलेवा बीमारी है जो मादा एनोफिलीज मच्छरों के काटने से मनुष्यों में फैलती है। हालांकि बीमारी का इलाज संभव है और इसे रोका जा सकता है। यह बीमारी अधिकांशतः उष्णकटिबन्धीय देशों में पाई जाती है। इससे जुड़ा संक्रमण एक परजीवी के कारण फैलता है, जो एक इंसान से दूसरे में नहीं फैलता।

मलेरिया के कुछ मामलों में हल्के लक्षण सामने आते हैं, जबकि कुछ के लिए यह बीमारी जानलेवा हो सकती है। इसके हल्के लक्षणों में बुखार आना, ठंड लगना और सिरदर्द शामिल हैं, जबकि गम्भीर लक्षणों में थकान, भ्रम पैदा होना, दौरा पड़ना और सांस लेने में कठिनाई आदि होना शामिल हैं।

जॉर्जिया में लम्बा है मलेरिया का इतिहास

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बारे में प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए लिखा है कि जॉर्जिया में मलेरिया की समस्या बेहद लंबे समय से है। 1900 के दशक से पहले वहां कम से कम तीन मलेरिया परजीवियों प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम, प्लास्मोडियम मलेरिये और प्लास्मोडियम विवैक्स का कहर जारी था।

1900 में इसको नियंत्रित करने के व्यवस्थित प्रयासों की शुरुआत हुई। 1920 तक करीब 30 फीसदी आबादी प्लास्मोडियम विवैक्स के कारण होने वाले मलेरिया से पीड़ित थी।

1940 तक, बड़े पैमाने पर मच्छर नियंत्रण कार्यक्रमों, परीक्षण और उपचार की बेहतर पहुंच ने मलेरिया के मामलों को काफी हद तक कम कर दिया। हालांकि, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, मामले फिर से बढ़ गए क्योंकि आबादी पड़े पैमाने पर आवागमन कर रहे थे। वहीं स्वास्थ्य सुविधाओं पर बढ़ते दबाव के कारण, मलेरिया के मामले एक बार फिर से बढ़ गए।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जॉर्जिया ने मलेरिया को खत्म करने के लिए एक गहन कार्यक्रम शुरू किया। उन्होंने नई दवाइयों का इस्तेमाल किया, कीटनाशकों का छिड़काव किया और मच्छरों पर सावधानीपूर्वक नजर रखी।

इस प्रयासों की मदद से 1953 तक प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम, 1960 तक प्लास्मोडियम मलेरिये और 1970 तक प्लास्मोडियम विवैक्स का प्रसार रुक गया। इसके बाद अगले 25 वर्षों तक यह देश मलेरिया मुक्त रहा। मगर 2002 तक यह बीमारी फिर से उभर आई, इस दौरान देश में मलेरिया के 474 मामले सामने आए।

2005 में जॉर्जिया ने डब्ल्यूएचओ यूरोपीय क्षेत्र के नौ अन्य देशों के साथ मिलकर ताशकंद घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए, जिसमें मलेरिया को खत्म करने का वादा किया गया था। इसके बाद किए गए मजबूत प्रयासों से मलेरिया के मामलों में काफी कमी आई और जॉर्जिया में आखिरी स्थानीय मामला 2009 में रिपोर्ट किया गया। 2015 तक जॉर्जिया सहित यूरोपीय क्षेत्र के सभी 53 देशों में मलेरिया का कोई स्थानीय मामला नहीं आया।

गौरतलब है कि ताशकंद घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने वाले देशों ने 2017 में अश्गाबात वक्तव्य जारी किया, जिसमें मलेरिया मुक्त रहने और इसकी वापसी को रोकने का वादा किया गया। बता दें कि तुर्की, यूरोप का एकमात्र देश है, जिसे अभी मलेरिया मुक्त होने का प्रमाण पत्र हासिल करना है।

देखा जाए तो जॉर्जिया की यह उपलब्धि दुनिया में मलेरिया के खिलाफ जारी जंग में हासिल की गई महत्वपूर्ण जीत का प्रतिनिधित्व करती है। यह सफलता अन्य देशों के लिए भी प्रेरणा स्रोत की तरह है, जो दर्शाती है कि संसाधनों के सही उपयोग, उपायों और उपकरणों की मदद से क्या कुछ हासिल नहीं किया जा सकता।

आपकी जानकारी के लिए बता दें किसी देश को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मलेरिया उन्मूलन का यह प्रमाण पत्र तब दिया जाता है जब वो देश यह साबित कर दे कि एनोफिलीज मच्छरों द्वारा मलेरिया का प्रसार कम से कम पिछले तीन वर्षों में सामने नहीं आया है।

इसके साथ ही देश को मलेरिया को फिर से उभरने से रोकने की अपनी क्षमता को प्रदर्शित करना होता है।

भारत सहित कई देशों के लिए अभी भी बड़ा खतरा है मलेरिया

वैश्विक आंकड़ों पर नजर डालें तो 2023 में मलेरिया के 26.3 करोड़ मरीज सामने आए थे, जो 2022 की तुलना में कहीं अधिक है। इनमें से अधिकांश (94 फीसदी) मामले अफ्रीका में दर्ज किए गए थे। 2022 से तुलना करें तो 2023 में एक करोड़ से अधिक मामले सामने आए। इससे पहले 2022 में वैश्विक स्तर पर मलेरिया के 25.2 करोड़ मामले दर्ज किए गए थे।

दूसरी तरफ 2022 की तुलना में मलेरिया से होने वाली मौतों में गिरावट दर्ज की गई है। 2022 में जहां करीब छह लाख लोगों की जान इस बीमारी ने ली थी, वहीं 2023 में इसकी वजह से मरने वालों का आंकड़ा घटकर करीब 597,000 रह गया।

भारत से जुड़े आंकड़ों पर नजर डालें तो देश में हर घंटे मलेरिया के औसतन 233 मामले सामने आते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपनी नई रिपोर्ट में जानकारी दी है कि भारत में 2023 के दौरान मलेरिया के 20.4 लाख मामले सामने आए थे।

हालांकि 2005 से देश में मलेरिया के मामलों में 92 फीसदी की गिरावट आई है। 2005 के दौरान भारत में मलेरिया के 2.43 करोड़ मामले सामने आए थे।

देश में मलेरिया की वजह से जाने वाली मौतों में भी करीब 90 फीसदी की उल्लेखनीय गिरावट आई है। बता दें कि जहां 2005 में मलेरिया की वजह से 32,582 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। वहीं 2023 में मौतों का यह आंकड़ा घटकर 3,461 रह गया।

यह एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन अभी भी भारत को मलेरिया मुक्त होने के लिए एक लंबा सफर तय करना है।

अफ्रीकी देशों में तो आज भी मलेरिया एक बड़ी समस्या है जो हर साल लाखों लोगों की जान ले रहा है। इतना ही नहीं जिस तरह से वैश्विक तापमान में इजाफा हो रहा है और जलवायु में बदलाव हो रहे हैं, वो इस बीमारी को पैर पसारने में मदद कर रहे हैं। इसकी वजह से यह बीमारी नए क्षेत्रों को भी अपना निशाना बना रही है।

वैज्ञानिकों ने भी पुष्टि की है कि, जलवायु में आता बदलाव मच्छरों से होने वाली बीमारियों के खतरे को और बढ़ा रहा है। अनुमान है कि सदी के अंत तक करीब 840 करोड़ लोगों पर डेंगू और मलेरिया का खतरा मंडराने लगेगा।

द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक आज जिस तरह से जलवायु में बदलाव आ रहे हैं, उसकी वजह से यह मच्छर उन स्थानों पर भी पनपने लगे हैं, जहां पहले नहीं पाए जाते थे। ऐसे में मलेरिया जैसी बीमारियों का खतरा नए क्षेत्रों में भी बढ़ रहा है।