पिछले कुछ सालों से जलवायु परिवर्तन और बढ़ती गर्मी पूरी दुनिया के लिए चिंता का कारण बने हुए हैं। लेकिन हाल ही में एक अंतरराष्ट्रीय शोध ने एक और गंभीर पहलू उजागर किया है। इस अध्ययन के अनुसार, पिछले 20 सालों में जंगलों को काटे जाने की वजह से दुनिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में लगभग पांच लाख से अधिक लोग मारे गए हैं। ये मौतें सीधे तौर पर बढ़ते तापमान और उससे होने वाली बीमारियों के कारण हुई।
यह रिपोर्ट हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि जंगलों को काटे जाने का असर केवल पेड़-पौधों और जानवरों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह इंसानों की जिंदगी के लिए भी सीधा खतरा है।
जंगलों को कटने से बढ़ा खतरा
जंगलों को धरती के “फेफड़े” कहा जाता है, क्योंकि वे ऑक्सीजन प्रदान करते हैं, कार्बन डाइऑक्साइड को सोखते हैं और मौसम का संतुलन बनाए रखते हैं। लेकिन जब बड़े पैमाने पर जंगल काटे जाते हैं, तो यह प्राकृतिक संतुलन टूट जाता है।
अध्ययन के मुताबिक जंगलों की कटाई से छाया और नमी कम होती है, बारिश घट जाती है। जंगलों में आग लगने का खतरा बढ़ जाता है। इन कारणों से स्थानीय तापमान में तेजी से बढ़ोतरी होती है। यह अतिरिक्त गर्मी इंसानों के लिए जानलेवा साबित होती है।
क्या कहते हैं अध्ययन के आंकड़े?
इस अध्ययन में साल 2001 से 2020 तक की स्थिति का आकलन किया गया। जसके नतीजे बेहद चौंकाने वाले रहे, करीब 34.5 करोड़ लोग जंगलों के काटे जाने की वजह से बढ़ती गर्मी से प्रभावित हुए। इनमें से 26 लाख लोगों को स्थानीय स्तर पर लगभग तीन डिग्री सेल्सियस तक अतिरिक्त गर्मी झेलनी पड़ी।
हर साल औसतन 28,330 लोगों की मौत इस अतिरिक्त गर्मी के कारण हुई। बीते 20 सालों में कुल मिलाकर लगभग पांच लाख मौतें दर्ज की गई। यह स्पष्ट करता है कि जंगलों को काटा जाना केवल पर्यावरणीय समस्या नहीं है, बल्कि यह सीधे तौर पर स्वास्थ्य और जीवन का संकट भी है।
किन क्षेत्रों पर सबसे ज्यादा असर?
अध्ययन में यह भी पाया गया कि ये मौतें सभी उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में समान रूप से नहीं हुई। दक्षिण-पूर्व एशिया में सबसे ज्यादा मौतें (50 फीसदी से अधिक) दर्ज की गई। कारण यह है कि इस क्षेत्र में जनसंख्या बहुत घनी है और बड़ी संख्या में लोग गर्मी-संवेदनशील परिस्थितियों में रहते हैं।
अफ्रीका का उष्णकटिबंधीय इलाकों में मौतों का लगभग एक-तिहाई हिस्सा यहीं दर्ज किया गया। मध्य और दक्षिण अमेरिका के बाकी मौतें अमेजन जैसे क्षेत्रों में हुई, जहां जंगलों का काटे जाने की गतिविधि लगातार जारी है।
कैसे किया गया शोध?
यह अध्ययन नेचर क्लाइमेट चेंज नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इसमें ब्राजील, घाना और ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने मिलकर काम किया है। वैज्ञानिकों ने जंगलों के काटे जाने वाले इलाकों में तापमान और बिना हादसों से हुई मौतों के आंकड़े जुटाए। फिर उन क्षेत्रों की तुलना की, जहां जंगल सुरक्षित थे। परिणाम साफ था जहां जंगल कटे, वहां तापमान ज्यादा बढ़ा और मौतें भी अधिक हुई।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
शोध पत्र में ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स के शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि शोध बताता है कि जंगलों को काटे जाने से सीधे तौर पर इंसानों को मार रही है। यह सिर्फ वैश्विक जलवायु परिवर्तन की बहस नहीं है, बल्कि स्थानीय लोगों की जिंदगी का मुद्दा है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि ब्राजील के माटो ग्रोसो इलाके में बड़े पैमाने पर जंगल काटकर सोया की खेती की जा रही है। वहां के किसान अब अमेजन में और भूमि साफ करने की मांग कर रहे हैं।
अगर जंगलों को बचाया जाए तो, लोगों को कम गर्मी का सामना करना पड़ेगा, खेती की पैदावार बढ़ेगी और स्थानीय समुदायों का जीवन अधिक सुरक्षित रहेगा।
🌳 जंगल क्यों हैं जरूरी?
जंगल हमारे लिए सिर्फ पेड़ों का समूह नहीं हैं। वे हमारी जीवन-रेखा हैं। जंगल तापमान नियंत्रित करते हैं, बारिश लाते हैं, खेती को सहारा देते हैं और गर्मी व आग के खतरे को कम करते हैं। अर्थात जंगल सीधे तौर पर लोगों की सेहत, खेती और जीवन पर असर डालते हैं।
इस अध्ययन से यह साफ हो जाता है कि जंगलों को काटे जाने का असर केवल पेड़ों या पर्यावरण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह इंसानों की जिंदगी को भी खतरे में डाल रहा है। 20 सालों में पांच लाख मौतें इसका प्रमाण हैं।
अगर हमने समय रहते जंगलों को नहीं बचाया, तो आने वाले दशकों में यह संख्या और बढ़ेगी। इसलिए जंगलों को बचाना सिर्फ जलवायु संकट से निपटने का तरीका नहीं है, बल्कि यह सीधे तौर पर इंसानी जीवन बचाने का सबसे बड़ा उपाय है।