रंग में यह बदलाव कीटों को जंगलों के काटे जाने वाले इलाकों में शिकार से बचने में मदद कर सकता है, जहां शिकारियों के आसानी से दिखाई देने वाले शिकार को निशाना बनाने के अधिक आसार होते हैं। फोटो साभार: साइंस पत्रिका
जंगल

क्या आप जानते हैं कि रंग बदलने को क्यों मजबूर हो रहे हैं कीट?

शोधकर्ताओं ने इस बात की जांच-पड़ताल कर सबूत खोजे हैं कि जंगलों का भारी विनाश होने पर कीटों ने बार-बार अपने रंगों में बदलाव किया है।

Dayanidhi

एक नए अध्ययन में कहा गया है कि जंगलों में रहने वाले कीट जिंदा रहने की जद्दोजहद में तेजी से अपना रंग बदल रहे हैं। मानवजनित गतिविधियों के कारण जंगलों का लगातार विनाश हो रहा है, इसके चलते पर्यावरण में भारी बदलाव आ रहा है, वे इस बदलते परिदृश्य के प्रति तेजी से उसके अनुकूल होने के लिए ऐसा कर रहे हैं।

शोधकर्ताओं ने इस बात की जांच-पड़ताल कर सबूत खोजे हैं कि जंगलों का भारी विनाश होने पर कीटों ने बार-बार अपने रंगों में बदलाव किया। साइंस पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन इस बात पर आधारित है कि किस तरह जंगलों के विनाश ने अलग-अलग कीटों की प्रजातियों में रंगों में बदलाव किए हैं, कीटों के नए रंग विषैले वन स्टोनफ्लाई के चेतावनी वाले रंग से मिलते जुलते हैं।

रंग में यह बदलाव कीटों को जंगलों के काटे जाने वाले इलाकों में शिकार से बचने में मदद कर सकता है, जहां शिकारियों के आसानी से दिखाई देने वाले शिकार को निशाना बनाने के अधिक आसार होते हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि जंगलों के काटे जाने से न केवल आवासों में बदलाव हो रहा है, बल्कि यह अप्रत्याशित तरीकों से विकासवादी लक्षणों पर भी असर डाल रहा है।

शोध के मुताबिक, शोधकर्ताओं द्वारा किए गए शिकार संबंधी प्रयोगों से इस बात का भी पता चलता है कि अलग-अलग रंग फेनोटाइप की फिटनेस निवास स्थान के आधार पर अलग-अलग होती है।

जगंल के वातावरण में, जहां छलावा अहम है, कुछ रंग लक्षण और फायदे पहुंचा सकते हैं। हालांकि जंगलों को काटे जाने वाले इलाकों में, विषैले स्टोनफ्लाई के समान रंग वाले कीट शिकारियों से बेहतर तरीके से सुरक्षित रह सकते हैं, जो दिखता है कि बदलते परिदृश्य के जवाब में प्रजातियां कैसे विकसित हो रही हैं।

शोध में 1,200 नमूनों का विश्लेषण किया गया, शोधकर्ताओं ने आबनूस लोकस नामक कीट पर चयन के एक सुसंगत पैटर्न की पहचान की, एक आनुवंशिक हिस्सा जो कई तरह के रंगों को नियंत्रित करने के लिए जाना जाता है।

कीटों की आबादी में यह आनुवंशिक बदलाव इस विचार का समर्थन करता है कि तेजी से अनुकूल होने से मानवजनित पर्यावरणीय बदलावों की प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया के रूप में हो रहा है।

अध्ययन के ये निष्कर्ष पर्यावरणीय उथल-पुथल के सामने प्रजातियों के तेजी से विकसित होने की क्षमता को दर्शाते हैं, जिससे इस बात की उम्मीद जगती है कि कुछ जीव जंगलों के काटे जाने और उनके आवासों के नष्ट होने के अन्य रूपों से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हैं।

अध्ययन में इस तरह के तेज विकास के लंबे समय के परिणामों के बारे में भी सवाल उठाए गए हैं और क्या ये बदलाव टिकाऊ होंगे क्योंकि दुनिया भर में पर्यावरणीय परिस्थितियां लगातार बदल रही हैं।

अध्ययन के निष्कर्ष हमारी मूल जैव विविधता पर जंगलों के काटे जाने के बुरे प्रभावों को बदलने की क्षमता के बारे में दिलचस्प सवाल उठाते हैं। विशेष रूप से पारिस्थितिक की बहाली पर हमारा बढ़ता ध्यान हमें विरासत में मिले जटिल पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने की उम्मीद का इशारा है।