ओजोन परत कमजोर होती है तो मनुष्यों में त्वचा कैंसर और आंखों में मोतियाबिंद जैसी बीमारियां बढ़ती हैं। फसलों और वनस्पतियों को नुकसान पहुंचता है। फोटो साभार: आईस्टॉक
जलवायु

विश्व ओजोन दिवस 2025: ओजोन परत ठीक होने की राह पर, मगर चुनौतियां बरकरार

पृथ्वी की सुरक्षा, विज्ञान से प्रेरित वैश्विक कार्रवाई और ओजोन परत की बहाली की कहानी।

Dayanidhi

ओजोन परत का महत्व – यह परत सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी (यूवी) किरणों से पृथ्वी की रक्षा करती है।

2024 की प्रगति – डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट में बताया गया कि ओजोन छिद्र छोटा हुआ है और सुधार की गति तेज है।

2025 की थीम – “विज्ञान से वैश्विक कार्रवाई तक"।

वैश्विक सफलता – मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (1987) ने 99 फीसदी ओजोन-नष्टकारी रसायनों को समाप्त कर दिया।

भविष्य की चुनौती – एचएफसीएस और जलवायु परिवर्तन, ओजोन की पूरी तरह से रिकवरी में देरी कर सकते हैं।

हर साल 16 सितम्बर को विश्व ओजोन दिवस मनाया जाता है। इसे ओजोन परत के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस भी कहा जाता है। साल 2025 में यह दिन आज, यानी मंगलवार, 16 सितम्बर को मनाया जा रहा है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि पृथ्वी के वायुमंडल में स्थित ओजोन परत हमारे जीवन और पर्यावरण की सुरक्षा में कितनी महत्वपूर्ण है।

ओजोन परत क्यों जरूरी है?

ओजोन परत पृथ्वी के समताप मंडल में स्थित है। इसका मुख्य कार्य सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी (यूवी) किरणों को अवशोषित करना है।

यदि यह परत कमजोर होती है तो मनुष्यों में त्वचा कैंसर और आंखों में मोतियाबिंद जैसी बीमारियां बढ़ती हैं। फसलों और वनस्पतियों को नुकसान पहुंचता है। समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र, विशेषकर फाइटोप्लैंकटन, प्रभावित होते हैं। जलवायु परिवर्तन और अस्थिरता तेज हो जाती है।

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की 2024 की रिपोर्ट ने संकेत दिया कि ओजोन छिद्र पिछले सालों की तुलना में छोटा रहा है। यह सुधार मानव प्रयासों का परिणाम है। वैज्ञानिक मानते हैं कि मध्य शताब्दी (2050 के आसपास) तक ओजोन परत 1980 के स्तर पर लौट आएगी।आर्कटिक क्षेत्र की ओजोन परत 2045 तक और अंटार्कटिक क्षेत्र की परत 2066 तक पूरी तरह ठीक हो सकती है।

विश्व ओजोन दिवस 2025 की थीम

इस वर्ष की आधिकारिक थीम "विज्ञान से वैश्विक कार्रवाई तक" है। इसका अर्थ है कि 1970 के दशक में वैज्ञानिक खोजों ने जिस खतरे को उजागर किया, उसी ज्ञान ने विश्व को एकजुट कर ठोस नीतियां बनाने के लिए प्रेरित किया।

डब्ल्यूएमओ के ओजोन बुलेटिन के अनुसार 2024 में ओजोन छिद्र पिछले वर्षों की तुलना में हुआ छोटा

क्या है ऐतिहासिक पृष्ठभूमि?

1970 का दशक: वैज्ञानिकों ने पाया कि सीएफसीएस और एचसीएफसीएस (रेफ्रिजरेटर, ए.सी., हेयर स्प्रे और अग्निशमन फोम में प्रयुक्त रसायन) ओजोन परत को नष्ट करते हैं।

1985: वियना कन्वेंशन पर हस्ताक्षर हुए।

1987: मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल अपनाया गया। यह पहला वैश्विक प्रयास था जिसने 99 फीसदी ओजोन-नष्टकारी पदार्थों (ओडीएस) का उत्पादन और उपयोग बंद कर दिया।

2016: किगाली संशोधन लाया गया, जिसने एचसीएफसीएस को नियंत्रित करने पर ज़ोर दिया। एचसीएफसीएस ओजोन को नुकसान नहीं पहुंचाते लेकिन वे गंभीर ग्रीनहाउस गैसें हैं

मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को आज दुनिया का सबसे सफल पर्यावरण समझौता माना जाता है। इसमें 190 से अधिक देशों ने इसमें भाग लिया। 30 से अधिक सालों में, लगभग सभी हानिकारक रसायनों का उत्पादन और उपयोग खत्म कर दिया गया। जिसके कारण ओजोन परत धीरे-धीरे स्वस्थ हो रही है।

क्या है मौजूदा चुनौतियां?

हालांकि प्रगति स्पष्ट है, फिर भी खतरे बने हुए हैं, जलवायु परिवर्तन: 2019 से 2020 में ऑस्ट्रेलिया की भयंकर आग से धुएं ने दक्षिणी गोलार्ध की ओजोन परत का लगभग एक फीसदी हिस्सा नष्ट कर दिया। यदि देश अपने वादों पर पूरी तरह अमल न करें तो सुधार की गति धीमी हो सकती है।

एचसीएफसीएस का खतरा: ये रसायन ओजोन पर असर नहीं डालते, लेकिन इनकी ऊष्मा क्षमता (ग्लोबल वार्मिंग के आसार) बहुत अधिक है। एक टन एचएफसी, एक टन सीओ2 की तुलना में लगभग 14,800 गुना अधिक गर्मी को रोक सकता है।

आगे की दिशा

किगाली संशोधन के अनुसार, अगले 30 सालों में एचसीएफसीएस का उत्पादन और उपभोग 80 फीसदी तक कम किया जाएगा। इससे सदी के अंत तक वैश्विक तापमान वृद्धि को 0.5 डिग्री सेल्सियस तक कम करने में मदद मिलेगी।

विश्व ओजोन दिवस हमें यह भी सिखाता है कि वैज्ञानिक चेतावनियों को समय पर सुनकर और सामूहिक कार्रवाई कर मानवता बड़े से बड़े पर्यावरणीय संकटों को टाल सकती है।

ओजोन परत की सफलता की कहानी हमें उम्मीद और प्रेरणा देती है। यह साबित करती है कि जब दुनिया विज्ञान की चेतावनी को गंभीरता से लेती है और ठोस कदम उठाती है तो असंभव को संभव बनाया जा सकता है। यदि विज्ञान और वैश्विक एकजुटता को आधार बनाया जाए, तो धरती और आने वाली पीढ़ियों को बचाया जा सकता है।