एक नए अध्ययन के मुताबिक, कृषि व पशुपालन की गतिविधियों ने हजारों सालों से हमारी धरती पर प्रभाव डाला है, जिससे पर्वतीय क्षेत्रों में मिट्टी के कटाव में भारी बढ़ोतरी हुई है। पर्वतीय इलाकों में पानी वाले हिस्सों में कृषि व पशुपालन के साथ-साथ जलवायु में बदलाव और भूमि उपयोग ने भी इस पर बुरा प्रभाव डाला।
शोधकर्ताओं के द्वारा इन गतिविधियों के प्रभाव को अलग-अलग करके देखा गया और पाया गया कि इन गतिविधियों ने 3,800 साल पहले से मिट्टी के विकास पर हावी होना शुरू कर दिया था।
शोध के मुताबिक, पिछले 3,800 सालों में, जलवायु, कृषि व पशुपालन संबंधी गतिविधियों ने पर्वतीय इलाकों में मिट्टी के कटाव को उसके प्राकृतिक निर्माण की तुलना में चार से दस गुना तेज गति से बढ़ाया है। इस कटाव के इतिहास का हाल ही में सेंटर नेशनल डे ला रिसर्च साइंटिफिक (सीएनआरएस) के वैज्ञानिकों की अगुवाई में किए गए शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा इसका पहली बार खुलासा किया गया है।
शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि पशुपालन और इनके झुंडों की आवाजाही को सुगम बनाने के लिए जंगलों की कटाई के मिले-जुले प्रभाव से सबसे पहले ऊंचाई वाली मिट्टी का कटाव हुआ। इसके बाद रोमन काल के उत्तरार्ध से लेकर समकालीन काल तक, कृषि के विकास और हल के प्रयोग जैसी नई तकनीकों के साथ मध्यम और कम ऊंचाई वाली मिट्टी का कटाव हुआ।
शोध से यह भी पता चला है कि मानवजनित गतिविधियों के कारण पर्वतीय क्षेत्रों में मिट्टी का कटाव में तेजी दुनिया भर में एक साथ शुरू नहीं हुई।
प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज पत्रिका में प्रकाशित शोध में मिट्टी के कटाव के कारण मिट्टी की उर्वरता, जैव विविधता तथा पानी एवं कार्बन चक्र पर पड़ने वाले प्रभाव के दुनिया के परिप्रेक्ष्य में, शोधकर्ता दुनिया भर में संरक्षण उपायों को लागू करने की गुजारिश कर रहे हैं।
क्योंकि जलवायु में बदलाव तथा मानवजनित गतिविधियों ने मिट्टी के निर्माण और कटाव के बीच संतुलन को बिगाड़ दिया, जिसके कारण हिमयुग के अंत के बाद से मिट्टी का उत्पादन की तुलना में कटाव की दर तीन से 10 गुना तेज हो गई।
शोध के मुताबिक, ये निष्कर्ष बोर्गेट झील के तलछट में लिथियम के समस्थानिक चिह्न की तुलना आज की चट्टानों और मिट्टी से लिए गए नमूनों से हासिल किए गए थे। ये नमूने फ्रांसीसी ऊंचाई वाले पर्वतों के सबसे बड़े जलग्रहण क्षेत्र से लिए गए थे।
शोध में कहा गया है कि फिर हासिल किए गए आंकड़ों की तुलना दुनिया के अन्य क्षेत्रों से प्राप्त आंकड़ों से की गई। प्रत्येक काल में मौजूद स्तनधारियों और पौधों की पहचान के लिए तलछट में डीएनए की मात्रा का भी अध्ययन किया गया।