15 नवंबर, 2025 को एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते कॉप-30 के अध्यक्ष आंद्रे कोरेया डू लागो; फोटो: शगुन/डीटीई 
जलवायु

वित्त-व्यापार की तकरार में फंसा कॉप-30, पहले सप्ताह अहम मुद्दों पर नहीं बन सकी आम सहमति

विकासशील देश चाहते हैं कि समृद्ध देश अनुच्छेद 9.1 के तहत मदद देने का एक पक्का वादा करें, लेकिन बैठकों में अभी भी सब आम सहमति से दूर हैं

Shagun

ब्राजील के बेलेम में चल रहे संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप-30) का पहला सप्ताह 15 नवंबर 2025 को बिना किसी अहम निर्णय के समाप्त हो गया।

15 घंटे से अधिक चली बंद-दरवाजा बैठकों और छह दिनों की लगातार चर्चा के बाद भी विकसित और विकासशील देशों के बीच सबसे विवादित मुद्दों खासकर जलवायु वित्त और जलवायु के नाम पर लगाए जाने वाले एकतरफा व्यापार प्रतिबंध जैसे सबसे विवादित मुद्दों पर कोई आम सहमति नहीं बन सकी। अब सबकी उम्मीदें दूसरे सप्ताह पर टिकी हैं।

विकासशील देश चाहते हैं कि दो सप्ताह की यह बैठक पेरिस समझौते के अनुच्छेद 9.1 को लागू करने के लिए एक कानूनी रूप से बाध्यकारी कार्ययोजना दे। यह मुद्दा ग्लोबल साउथ (दक्षिण) और छोटे द्वीपीय देशों की सबसे बड़ी प्राथमिकता है।

गौरतलब है कि अनुच्छेद 9.1 विकसित देशों को कानूनी तौर पर बाध्य करता है कि वे विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने, अनुकूलन और उत्सर्जन को कम करने के लिए वित्तीय सहायता दें।

ब्राजील की अध्यक्षता के सामने कठिन चुनौती

इस सप्ताह ब्राजील की अध्यक्षता के सामने कठिन चुनौती है, क्योंकि चार विवादित मुद्दों पर बातचीत अब भी जारी हैं:

1. पेरिस समझौते के अनुच्छेद 9.1 का लागू करना

2. जलवायु से जुड़े एकतरफा व्यापार प्रतिबंधों पर चिंता और अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना

3. एनडीसी रिपोर्ट और डेढ़ डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य की समीक्षा करना

4. द्विवार्षिक पारदर्शिता रिपोर्ट (बीटीआर) का सार तैयार करना

इस जलवायु सम्मेलन के पहले दिन तय हुए औपचारिक एजेंडे में ये चारों मुद्दे शामिल नहीं हो पाए थे। इसलिए इन पर सारी चर्चा अलग से अध्यक्षीय परामर्श में की जा रही है।

15 नवंबर को कॉप-30 के अध्यक्ष आंद्रे कोरेया डू लागो ने पत्रकारों को बताया कि पिछले दो दिनों में देशों और समूहों ने अपनी-अपनी राय पेरिस समझौते की 10वीं वर्षगांठ, बातचीत से आगे बढ़कर अब कार्यान्वयन पर जोर, जलवायु संकट की तात्कालिकता को समझते हुए तेज कार्रवाई, और आपसी सहयोग व एकजुटता जैसे विषयों पर साझा की है।

उन्होंने आगे बताया कि 16 नवंबर 2025 को देशों की राय का एक सार जारी किया जाएगा, जो आगे लिए जाने वाले फैसलों का आधार बनेगा।

वित्त: सबसे बड़ा गतिरोध

अनुच्छेद 9.1 को एजेंडे में शामिल करने का प्रस्ताव ‘लाइक-माइंडेड डेवलपिंग कंट्रीज’ (एलएमडीसी) समूह ने दिया था, जिसमें भारत भी शामिल है। अध्यक्षीय परामर्श में भारत ने एलएमडीसी की ओर से प्रस्ताव रखा कि अनुच्छेद 9.1 पर 2028 तक चलने वाला तीन साल का कार्य कार्यक्रम बनाया जाए। इस प्रस्ताव पर अरब समूह, अफ्रीकी वार्ताकार समूह, सबसे कमजोर देशों के साथ-साथ चीन, मोरक्को और दक्षिण अफ्रीका सहित कई देशों का समर्थन मिला है।

वार्ता से परिचित एक सूत्र ने डाउन टू अर्थ को बताया कि कई विकासशील मानते हैं कि वे “वित्तीय मुद्दे” पर ठोस व्यवस्था तय किए बिना बेलेम से नहीं लौट सकते। देशों ने इस बात पर भी जोर दिया है कि कार्यान्वयन की जो बड़ी खाई है, उसे अब कम करना जरूरी है।

भारत ने एलएमडीसी समूह की ओर से यह भी मांग की है कि सभी देशों के लिए एक समान लेखा-प्रणाली (अकाउंटिंग मेथडोलॉजी) तय की जाए।  

वहीं यूरोपियन यूनियन का कहना है कि वह वित्त और अनुच्छेद 9.1 की अहमियत को समझता है, क्योंकि इससे विकासशील देशों में काम तेज हो सकता है। लेकिन वह इस समाधान को “वर्क प्रोग्राम’ के रूप में तैयार करने से सहमत नहीं है।

व्यापार प्रतिबंधों पर टकराव

विकासशील देशों के समूहों ने व्यापार के ऐसे एकतरफा कदमों (यूटीएम) को तुरंत रोकने की मांग की है। उनका कहना है कि ये कदम विकासशील देशों पर अनुचित कर लगाते हैं, बहुपक्षीय सहयोग को कमजोर करते हैं और सामान्य लेकिन विभेदित उत्तरदायित्व (सीबीडीआर) के सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं।

पार्टियां भविष्य में ऐसे कदमों को रोकने के लिए यूटीएम पर हर साल एक संवाद शुरू करने की भी अपील कर रहे हैं। लेकिन दूसरी तरफ जापान और यूरोपियन यूनियन जैसे विकसित देशों का तर्क है कि इस मुद्दे को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) तक ही सीमित रखा जाना चाहिए।

परामर्श में दो अन्य मुद्दे, एनडीसी रिपोर्ट, डेढ़ डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य की समीक्षा करना और बीटीआर का सार तैयार करना शामिल हैं। द्विवार्षिक पारदर्शिता रिपोर्ट (बीटीआर) एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है जिसके जरिए देश अपने एनडीसी लक्ष्यों की दिशा में हो रही प्रगति, ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन, अनुकूलन प्रयासों और मिली या दी गई सहायता की जानकारी साझा करते हैं।

ये मुद्दे छोटे द्वीपीय देशों और यूरोपियन यूनियन जैसे विकसित देशों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं।