हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के सराज क्षेत्र के गांवों में कुछ नहीं बचा। कुछ घर बचे हैं, लेकिन वो भी रहने लायक नहीं हैं फोटो: राेहित पराशर
जलवायु

ग्राउंड रिपोर्ट: फिर ढहा हिमाचल

मंडी जिले के सराज क्षेत्र में तबाही इतनी विध्वंसक थी कि 50 दिन तक हालात सामान्य नहीं हुए। यहां के लोगों ने इतनी अतिवृष्टि इससे पहले कभी नहीं झेली

Rohit Prashar

जून 29 की शाम करीब 7 बजे बारिश शुरू हुई, जो अगले दिन शाम 4 बजे तक लगातार जारी रही। शाम बारिश और तेज हो गई और रात 9 बजे तक यह बेकाबू हो गई। हालात ऐसे बने कि आस-पास के गांव वाले फोन से एक-दूसरे की खैरियत पूछने लगे, लेकिन कुछ समय बाद टेलीफोन के नेटवर्क गायब हो गए। रात 9.30 बजे बादल फटने की आवाज आई और करीब साढ़े 11 बजे हमारे पड़ोस में भूस्खलन से तीन मकान पूरी तरह ध्वस्त हो गए।

हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के सराज क्षेत्र के हेतराम एक साथ बोलते-बोलते फिर थम जाते हैं। लंबी सांस लेने के बाद 50 वर्षीय हेतराम कहते हैं, “अपने जीवन में मैंने कभी ऐसी बारिश नहीं देखी।” पश्चिमी हिमालय के एक और राज्य हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के सराज क्षेत्र में उस रात करीब 25 किलोमीटर के इलाके में 9 जगह बादल फटे और शिकारी देवी धार के दोनों ओर जंजेहली व करसोग की तरफ भारी तबाही मची।

लगभग 12 गांव चपेट में आ गए। 17 लोगों की जान चली गईं और 11 अभी भी लापता हैं। कई मकान, दुकानें, स्कूल, सड़कें, नदियों के पुल और जल परियोजनाएं तबाह हो गईं। खेतों की मिट्टी बह गई, सेब के बगीचे और पालतू पशु मारे गए। हालात ऐसे कि डेढ़ माह बाद भी राहत व बचाव कार्य चल रहे हैं। दर्जनों लोग अभी भी राहत कैंप, रिश्तेदारों या फिर किराए के मकानों में रहने को मजबूर हैं।

आखिर इस क्षेत्र में इतनी बड़ी आपदा क्यों आई? मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक मंडी जिले में 1 जुलाई को कुल 140.7 मिलीमीटर (मिमी) बारिश हुई, जो सामान्य बारिश 6.9 मिमी से 1,939 प्रतिशत अधिक थी, जबकि 25 जून से 2 जुलाई के बीच सामान्य से 482 प्रतिशत अधिक बारिश हुई। समुद्र तल से 2,100 मीटर से अधिक ऊंचाई पर बसी इस घाटी में इतनी अधिक बारिश असामान्य घटना है।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) मंडी के जियोटेक्निकल इंजीनियरिंग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर आशुतोष कुमार कहते हैं, “क्षेत्र में समय के साथ जलवायु परिस्थितियों में बदलाव आया है। साल 2023 में भी कुल्लू और मंडी में ऐसी ही घटना हुई थी। उस दौरान हमने बारिश का विश्लेषण किया तो पाया कि वहां सामान्य से 400 से 600 प्रतिशत अधिक बारिश हुई थी और नुकसान भी इसी तरह के थे।”

कुमार व उनकी टीम ने 2023 में रेनफॉल एनोमली इंडेक्स का विश्लेषण किया और पाया कि इस क्षेत्र में पहले एक लंबा शुष्क मौसम और एक लंबा नम मौसम होता था। इस दौरान ढलानों को सूखने का पर्याप्त समय मिल जाता था, जिससे वे स्थिर रहते थे, लेकिन अब जलवायु पैटर्न में बदलाव आने से अब मौसम छोटे-छोटे टुकड़ों में बदलता है।

लंबे नम और शुष्क मौसम नहीं होते, कभी शुष्क और कुछ समय बाद नमी और फिर शुष्क। इससे ढलानों में नमी हमेशा बने रहने से उनकी स्थिरता कम हो जाती है। शुष्क मौसम में ढलानों की मिट्टी और चट्टानों का आंतरिक जल दबाव नकारात्मक होता है, जिससे उनकी पकड़ मजबूत रहती है।

लेकिन, जब अचानक तेज बारिश होती है तो यह दबाव खत्म हो जाता है। इससे मिट्टी और चट्टानों की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे ढलान कमजोर होकर गिर जाते हैं और भूस्खलन का कारण बनते हैं। आशुतोष कुमार बताते हैं कि उनकी टीम वर्तमान में सराज, मंडी और औट टनल के पास हुई घटनाओं का अध्ययन कर रही है और उम्मीद है कि यह रिपोर्ट एक महीने के भीतर पूरी हो जाएगी।

जम्मू सेंट्रल यूनिवर्सिटी के लाइफ साइंस विभाग के प्रोफेसर और डीन सुनील धर ने हिमाचल में बढ़ रही आपदाओं के लिए बढ़ते तापमान को दोषी बताया और कहा कि इस बार हिमाचल में पिछले 25 वर्षों में औसत तापमान सबसे अधिक रिकॉर्ड किया गया। यही वजह है कि राज्य में जगह-जगह अतिवृष्टि की घटनाएं हुई।

चालू मॉनसून सीजन में 20 अगस्त 2025 तक हिमाचल प्रदेश में 280 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 37 लोग लापता है और 2,280 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हो चुका है। अकेेले मंडी क्षेत्र में 1,100 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने केंद्र से मांग की कि जलवायु परिवर्तन की वजह से राज्य को हो रहे नुकसान के मद्देनजर व्यापक वैज्ञानिक अध्ययन कराया जाए। साथ ही, जिन गांवों को नुकसान पहुंचा है, उन्हें फिर से बसाने के लिए वन भूमि उपलब्ध कराई जाए।

लोकल वार्मिंग भी एक वजह

हिमाचल सहित पूरे हिमालय क्षेत्र में बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन के लिए वैश्विक ताप यानी ग्लोबल वार्मिंग को दोषी माना जाता है, लेकिन सवाल यह उठता है कि ग्लोबल वार्मिंग के लिए हिमालय वासी कितने जिम्मेवार हैं। शिमला नगर निगम के पूर्व उप महापौर एवं केरल अर्बन कमीशन के वर्तमान सदस्य टिकेंद्र सिंह पंवार कहते हैं कि हिमालय के स्थानीय लोग उस उस अपराध की सजा भुगत रहे हैं, जो उन्होंने किया ही नहीं।

उत्सर्जन के लिए दुनिया के अमीर देश और बड़े औद्योगिक घराने जिम्मेवार हैं, जबकि राज्य में बेतरतीब विकास परियोजनाओं के लिए केंद्र व राज्य सरकारें। (पढ़ें: आपदा नहीं अन्याय, पेज 39) वहीं, विशेषज्ञ ग्लोबल वार्मिंग के साथ-साथ लोकल वार्मिंग को भी दोषी मानते हैं। हिमालय नीति अभियान के अध्यक्ष और पर्यावरणविद कुलभूषण उपमन्यु कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में सराज क्षेत्र के 20-30 किलोमीटर के सीमित दायरे में इतनी अधिक बारिश और बादल फटने की घटनाओं के पीछे “इंपाउंडमेंट-इंड्यूस्ड एमिशन” (जलाशयों के कारण होने वाला उत्सर्जन) एक संभावित कारण हो सकता है।

वह समझाते हैं कि सराज क्षेत्र के आसपास भाखड़ा, पंडोह और लारजी जैसे बड़े बांध स्थित हैं। बांधों में जब मलबे के साथ जैविक पदार्थ ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में सड़ते हैं तो वे मीथेन गैस छोड़ते हैं। मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 8-10 गुना अधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन करती है। इस मीथेन सांद्रता से स्थानीय स्तर पर तापमान में वृद्धि हो रही है, जिसे वे “लोकल एनहांसमेंट इफेक्ट” कहते हैं।

उनका कहना है कि राज्य सरकार को इस नजरिए से बांध के आसपास के क्षेत्रों में व्यापक वैज्ञानिक अध्ययन कराना चाहिए। इसके अलावा, उपमन्यु इस क्षेत्र में बढ़ते अनियंत्रित मानवीय हस्तक्षेपों को भी एक बड़ा कारण मानते हैं। वह कहते हैं कि प्रकृति के साथ हमारा व्यवहार बदल गया है। जंगलों की अंधाधुंध कटाई, नदियों के किनारों पर अनियोजित निर्माण और सड़कों के साथ-साथ पर्यटन की वजह से वाहनों की भारी संख्या ने पारिस्थितिकी को बुरी तरह प्रभावित किया है।

मौसम नहीं नुकसान का कारण

क्षेत्र में मॉनसून के दौरान हो रही भारी बारिश को सामान्य तौर पर बादल फटना बताया जा रहा है, लेकिन मौसम विभाग की परिभाषा के मुताबिक इन्हें बादल फटना नहीं माना जाता। विभाग की परिभाषा के मुताबिक एक ही जगह में एक घंटे में 100 मिमी यानी 10 सेंटीमीटर से अधिक बारिश को बादल फटना माना जाता है, जबकि मौसम विभाग द्वारा रिकॉर्ड किए जा रहे आंकड़ों में कहीं भी इतनी अधिक बारिश नहीं दिखती।

जानकारों का मानना है कि वेदर स्टेशन न होने के कारण यह रिकॉर्ड नहीं होते। मौसम विभाग के पूर्व उप महानिदेशक आनंद शर्मा कहते हैं कि हिमालय की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए मौसम पूर्वानुमान व मौसम केंद्रों की स्थापना एक बड़ी चुनौती है। (पढ़ें: मौसम को समझें) हालांकि शर्मा कहते हैं कि हिमालयी क्षेत्रों में मानसून के दौरान भारी बारिश होना एक सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन इससे होने वाला विनाश मानव की गलतियों का नतीजा है। नदियों और नालों के किनारों पर हुए अनियोजित निर्माण और अतिक्रमण ने पानी के प्राकृतिक बहाव को रोक दिया है, जो नुकसान की बड़ी वजह बनता है।