जलवायु परिवर्तन से खेतों पर मंडराता खतरा; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक 
जलवायु

खतरे में खेती: सदी के अंत तक मध्य एशिया में 1,000 फीसदी से ज्यादा बढ़ सकता है लू का प्रकोप

आशंका है कि लू के बढ़ते खतरे की वजह से मध्य एशिया में उत्तरी कजाकिस्तान के कृषि क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित होंगे

Lalit Maurya

मध्य एशिया में खेती-किसानी पर गर्मी के बढ़ते प्रकोप को लेकर गंभीर चेतावनी सामने आई है। चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज से जुड़े वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किए नए अध्ययन से पता चला है कि सदी के अंत तक इस क्षेत्र में खेतों पर लू का प्रभाव 1,000 फीसदी से ज्यादा से बढ़ सकता है।

यह इस क्षेत्र में कृषि के भविष्य पर मंडराते गंभीर खतरे को उजागर करते हैं। प्रोफेसर बाओ आनमिंग के नेतृत्व में किए इस अध्ययन के नतीजे जर्नल अर्थ्स फ्यूचर में प्रकाशित हुए हैं।

अध्ययन में इस बात को गहराई से समझने की कोशिश की गई है कि मध्य एशिया में लू कृषि को कैसे प्रभावित कर रही है, और आने वाले वर्षों में यह खतरा कितना बढ़ सकता है। यह विश्लेषण तीन सामाजिक-आर्थिक परिदृश्यों (एसएसपीएस) पर आधारित है, जो दर्शाते हैं कि 21वीं सदी में दुनिया की सामाजिक व्यवस्था, आबादी और अर्थव्यवस्था में कैसे बदलाव आ सकते हैं और इन बदलावों का ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन पर क्या असर पड़ेगा।

अध्ययन के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि यदि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन मध्यम (एसएसपीएस370) से उच्च स्तर (एसएसपीएस585) पर बना रहा तो मध्य एशिया में खेतों पर लू का प्रभाव 852 से 1,143 फीसदी तक बढ़ सकता है। वहीं यदि बढ़ते तापमान को दो डिग्री सेल्सियस पर सीमित भी कर दिया जाए तो भी लू की घटनाएं करीब 200 फीसदी तक बढ़ सकती है।

जलवायु परिवर्तन है खतरे की जड़

गौरतलब है कि लू के बढ़ते प्रभावों की यह गणना 1995 से 2014 के ऐतिहासिक आंकड़ों के आधार पर की गई है। देखा जाए तो यह नाटकीय वृद्धि स्पष्ट रूप से दर्शाती है जलवायु परिवर्तन इस क्षेत्र में कृषि के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है।

अध्ययन में यह भी सामने आया है कि इन बदलावों की वजह से उत्तरी कजाकिस्तान सबसे अधिक प्रभावित होगा। वहीं इसके साथ ही मध्य एशिया के दक्षिण-पूर्वी हिस्सों में भी लू का गंभीर खतरा मंडरा रहा है। अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि लू के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में आने वाले वर्षों के दौरान भीषण गर्मी और लू का प्रकोप तेजी से बढ़ेगा, जो पहले से कहीं ज्यादा गंभीर होगा।

अध्ययन में इसके कारणों को भी उजागर किया गया है। अहम बात यह है कि जलवायु परिवर्तन और भूमि उपयोग में आते बदलाव का संयुक्त प्रभाव इस खतरे को सबसे ज्यादा बढ़ा रहे हैं। अनुमान है कि यह दोनों गर्मी और लू के पड़ने वाले प्रभाव के आधे से अधिक के लिए जिम्मेवार हैं।

यह अध्ययन नीति-निर्माताओं के लिए एक चेतावनी है कि अगर समय रहते जलवायु परिवर्तन से निपटने और खेती को सुरक्षित रखने के लिए रणनीतियां न बनाई गईं, तो मध्य एशिया में कृषि का भविष्य संकट में पड़ सकता है।

इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम्स एनालिसिस (आईआईएएसए) द्वारा किए एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन दुनिया में किसानों को खेती छोड़ पलायन करने के लिए मजबूर कर रहा है।

इस अध्ययन से पता चला है कि जब सूखा और शुष्क परिस्थितियां गहराती हैं तो लोग देश के भीतर ही अपने घरों को छोड़ दूसरे क्षेत्रों की ओर ज्यादा पलायन करते हैं। खासकर जो क्षेत्र बेहद शुष्क होते हैं, वहां इस तरह का पलायन बेहद आम होता है।