एयरोसॉल और बिजली: वायु में सूक्ष्म कण बादलों के निर्माण को प्रभावित करते हैं, जिससे बिजली की गतिविधि बढ़ सकती या घट सकती है।
बूस्ट और क्रैश चरण: मध्यम प्रदूषण बादल और बिजली बढ़ाता है, जबकि अत्यधिक प्रदूषण तूफानी गतिविधि को कमजोर कर देता है।
क्षेत्रीय अंतर: पश्चिम-मध्य और उत्तर-पूर्वी भारत में एयरोसॉल और मौसम की अंतःक्रियाएं बिजली के पैटर्न को अलग ढंग से प्रभावित करती हैं।
मौसम पूर्वानुमान चुनौती: वर्तमान मॉडल एयरोसॉल- बादल प्रभाव को पूरी तरह नहीं पकड़ पाते, जिससे तूफानों और बिजली की भविष्यवाणी मुश्किल हो जाती है।
सुरक्षा और चेतावनी: मजबूत बिजली चेतावनी प्रणाली और बेहतर अनुसंधान से भारत में बिजली से होने वाली मृत्यु और नुकसान कम किया जा सकता है।
भारत में वायु प्रदूषण न केवल स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरा बन रहा है, बल्कि यह मौसम और प्राकृतिक घटनाओं पर भी प्रभाव डाल रहा है। हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन ने यह पाया है कि वायु में मौजूद सूक्ष्म कण (एयरोसॉल) बादलों और बिजली की गतिविधियों को बदल सकते हैं। यह अध्ययन खासकर भारत के पश्चिम-मध्य और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में चरम मौसम की घटनाओं पर केंद्रित है।
बिजली पर वायु प्रदूषण का असर
अध्ययन के अनुसार वायु प्रदूषण बिजली की गतिविधि को दोनों तरह से प्रभावित कर सकता है - इसे बढ़ा सकता है और घटा भी सकता है। यह निर्भर करता है कि प्रदूषण का स्तर कितना है और स्थानीय मौसम की परिस्थितियां कैसी हैं।
शोध में दो मुख्य चरण पहचाने गए हैं
बढ़ाना या बूस्ट चरण: जब प्रदूषण स्तर मध्यम होता है, तब यह बादलों के निर्माण में मदद करता है। छोटे-छोटे एयरोसॉल कण बादलों के बीज का काम करते हैं, जिससे बादल तेजी से विकसित होते हैं और बिजली की गतिविधि बढ़ती है।
टकरा जाना, क्रैश चरण: जब प्रदूषण बहुत अधिक हो जाता है (लगभग 7,500 कण प्रति घन सेंटीमीटर से अधिक), तो हवा में मौजूद कणों की अधिकता तूफानी गतिविधियों को कमजोर कर देती है। इसके कारण बादल ऊंचे बनते हैं, लेकिन बिजली बनने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है।
भारी प्रदूषण का मतलब हमेशा अधिक बिजली नहीं
उत्तर भारत में सर्दियों के दौरान वायु प्रदूषण बहुत अधिक होता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यहां अधिक बिजली गिरती है। इसके पीछे स्थानीय मौसम की स्थितियां हैं। सर्दियों में सतह का तापमान कम होता है, वायुमंडलीय परतें स्थिर होती हैं और वायुमंडलीय अस्थिरता कम होती है। ये सभी परिस्थितियां गहरे संवहन को रोकती हैं, जो बिजली बनने के लिए आवश्यक है।
क्षेत्रीय अंतर और मौसम का महत्व
पश्चिम-मध्य और उत्तर-पूर्वी भारत में एयरोसॉल और बादलों की अंतःक्रियाएं मौसम की चरम घटनाओं पर अधिक प्रभाव डालती हैं। गर्मियों में सतह का तापमान बढ़ने और वायुमंडलीय अस्थिरता बढ़ने से संवहनीय तूफान और बिजली गिरने की आशंका बढ़ जाती है। हाल के अध्ययन भविष्य में भारतीय उपमहाद्वीप में बिजली की चमक दर बढ़ने की भविष्यवाणी करते हैं।
पूर्वानुमान और चेतावनी प्रणाली की आवश्यकता
बिजली एक अत्यंत स्थानीय और छोटे पैमाने की घटना है, जिसकी भविष्यवाणी करना कठिन है। वर्तमान मौसम पूर्वानुमान मॉडल अक्सर एयरोसॉल और बादलों की जटिल अंतःक्रियाओं को पूरी तरह नहीं पकड़ पाते, जिससे गंभीर तूफानों का सटीक पूर्वानुमान करना मुश्किल हो जाता है।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि बिजली से होने वाली मृत्यु और नुकसान को कम करने के लिए मौसम पूर्वानुमान के साथ वैज्ञानिक शोध के नवीनतम निष्कर्षों को जोड़कर चेतावनी प्रणाली को मजबूत करना प्राथमिकता होनी चाहिए।
हमारे लिए इसका क्या मतलब है
स्वास्थ्य और सुरक्षा: वायु प्रदूषण और बदलते मौसम पैटर्न बिजली के खतरों को बदल सकते हैं। कुछ क्षेत्रों में बिजली गिरने की आशंका बढ़ सकती है, जबकि अन्य क्षेत्रों में कम हो सकती है।
आपदा प्रबंधन: नीति निर्माता और मौसम विभाग एयरोसॉल प्रभाव को ध्यान में रखते हुए तूफानों और बिजली की भविष्यवाणी में सुधार कर सकते हैं।
अनुसंधान की आवश्यकता: स्थानीय मौसम परिस्थितियों और प्रदूषण स्तरों के थ्रेसहोल्ड को समझना जरूरी है ताकि बिजली के सटीक पूर्वानुमान किए जा सकें।
भारत में वायु प्रदूषण सिर्फ स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरा नहीं है, बल्कि यह प्राकृतिक आपदाओं जैसे बिजली के खतरे को भी प्रभावित कर रहा है। यह जटिल और कभी-कभी विरोधाभासी प्रभाव दिखाता है। इसलिए भविष्य में बिजली की चेतावनी प्रणाली को मजबूत करना और मौसम मॉडल में एयरोसॉल के प्रभावों को शामिल करना जरूरी है।
जियोफिजिकल रिसर्च जर्नल में प्रकाशित अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि वायु प्रदूषण और मौसम के बीच संबंध जटिल है, और इसे समझकर ही भारत में जीवन और संपत्ति की सुरक्षा को बेहतर बनाया जा सकता है।