बढ़ते प्रदूषण के साथ हवा में घुला जहर लोगों को बहुत ज्यादा बीमार बना रहा है, बच्चे और बुजुर्ग इसका सबसे ज्यादा शिकार बन रहे हैं; फोटो: आईस्टॉक 
वायु

जहरबुझी हवा: अस्थमा के एक तिहाई मामलों के लिए कसूरवार हैं प्रदूषण के महीन कण

अध्ययन से पता चला है कि दुनिया में अस्थमा के करीब 30 फीसदी मामले पीएम 2.5 से जुड़े हैं

Lalit Maurya

वैश्विक अध्ययन से पता चला है कि अस्थमा के करीब एक तिहाई मामले लम्बे समय तक प्रदूषण के महीन कणों के सम्पर्क में रहने से जुड़े हैं। अध्ययन ने इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि पीएम 2.5 में हर 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि के साथ बच्चों में अस्थमा का जोखिम 21.4 फीसदी बढ़ जाता है। वहीं इसकी वजह से वयस्कों में अस्थमा के जोखिम में 7.1 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई।

यह जानकारी मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर केमिस्ट्री के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं द्वारा किए एक नए अध्ययन में सामने आई है। अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने करीब ढाई करोड़ लोगों से जुड़े आंकड़ों का अध्ययन किया है।

विश्लेषण के मुताबिक लम्बे समय तक प्रदूषण के बेहद महीन कणों ‘पीएम2.5’ के संपर्क में रहने से न केवल बच्चों बल्कि वयस्कों में भी अस्थमा का खतरा बढ़ जाता है।

रिसर्च में यह भी सामने आया है कि दुनिया भर में अस्थमा के करीब 30 फीसदी नए मामले पीएम 2.5 से जुड़े हैं, जो आम लोगों के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के मंडराते गंभीर खतरे को उजागर करता है। हैरानी की बात है कि इनमें से 60 फीसदी मामले बच्चों से जुड़े थे।

यह बीमारी दुनिया के सामने कितनी बड़ी समस्या है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्तमान में दुनिया की करीब चार फीसदी आबादी अस्थमा से पीड़ित है। इतना ही नहीं सालाना इस बीमारी के तीन करोड़ से अधिक नए मामले सामने आ रहे हैं।

देखा जाए तो मौजूदा समय में अस्थमा एक लाइलाज बीमारी है, जो जीवन की गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित करती है। इसकी वजह से मरीज में खांसी, घरघराहट और सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण बार-बार सामने आते हैं।

साक्ष्य बताते हैं कि वायु प्रदूषण के चलते लंबे समय तक पीएम 2.5 के संपर्क में रहने से अस्थमा का जोखिम बढ़ जाता है। हालांकि पिछले शोधों में इसको लेकर मिले जुले नतीजे सामने आए थे। इनमें से कुछ अध्ययनों में प्रदूषण की वजह से अस्थमा के मामलों में वृद्धि देखी गई, जबकि कुछ में इनके बीच संबंध नहीं पाया गया।

ऐसे में क्या प्रदूषण के यह महीन कण अस्थमा के मामलों में वृद्धि से जुड़े हैं इसे स्पष्ट करने के लिए मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर केमिस्ट्री से जुड़े शोधकर्ताओं ने चीन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं के साथ एक व्यापक अध्ययन किया है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल वन अर्थ में प्रकाशित हुए हैं।

यह अध्ययन मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर केमिस्ट्री (जर्मनी), इंस्टीट्यूट ऑफ एटमॉस्फेरिक फिजिक्स, चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज (चीन), यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन (अमेरिका) और मोनाश यूनिवर्सिटी (ऑस्ट्रेलिया) के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है।

स्वास्थ्य पर गहरा असर डालता है हवा में घुला जहर

अपने अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उत्तरी अमेरिका, पश्चिमी यूरोप, पूर्वी एशिया, दक्षिण एशिया और अफ्रीका सहित 22 देशों में 2019 से किए गए 68 अध्ययनों का विश्लेषण किया है। इस विश्लेषण के निष्कर्ष दर्शाते हैं कि पीएम 2.5 के लंबे समय तक संपर्क में रहने से अस्थमा होता है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक 2019 में, वैश्विक स्तर पर सामने आए अस्थमा के करीब एक तिहाई मामले लंबे समय तक पीएम 2.5 के संपर्क में रहने से जुड़े थे। इनमें 6.35 करोड़ मौजूदा मामले और 1.14 करोड़ नए मामले शामिल थे। रिसर्च में इस बात की भी पुष्टि की गई है कि बच्चे, वयस्कों की तुलना में पीएम 2.5 से जुड़े अस्थमा के प्रति कहीं ज्यादा संवेदनशील होते हैं।

देखा जाए तो बचपन में फेफड़े और प्रतिरक्षा प्रणाली पूरी तरह विकसित नहीं होती, जिसकी वजह से बच्चे प्रदूषण के प्रति कहीं ज्यादा संवेदनशील होते हैं। इसकी वजह से श्वसन मार्ग में ऑक्सीडेटिव तनाव और सूजन हो सकते हैं। इतना ही नहीं प्रदूषण प्रतिरक्षा प्रणाली को भी प्रभावित कर सकता है। इसकी वजह से एलर्जी के प्रति संवेदनशीलता भी बढ़ सकती है। यह सभी कारक अस्थमा के विकास में भूमिका निभाते हैं।

रिसर्च में यह भी सामने आया है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में लोग वायु प्रदूषण के संपर्क में अधिक आते हैं, साथ ही इन्हें पीएम 2.5 का कहीं अधिक बोझ ढोना पड़ता है। हालांकि, स्वास्थ्य पर इनके प्रभावों को लेकर अधिकांश अध्ययन उत्तरी अमेरिका और पश्चिमी यूरोप पर केंद्रित रहे हैं। वहीं विडम्बना देखिए की जो देश इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, वहां इनको लेकर बहुत कम अध्ययन किए गए हैं।

ऐसे में शोधकर्ताओं के मुताबिक वैश्विक स्वास्थ्य पर पीएम 2.5 के प्रभावों का आकलन करने के लिए शोधकर्ता अक्सर उच्च आय वाले देशों से प्राप्त आंकड़ों को निम्न और मध्यम आय वाले देशों पर लागू करते हैं। हालांकि इससे अनिश्चितता पैदा हो सकती है क्योंकि निम्न और मध्यम आय वाले देशों प्रदूषण के स्रोत, स्वास्थ्य सेवा प्रणालियोंऔर जनसांख्यिकीय विशेषताओं में अंतर होता है। 

ऐसे में निम्न और मध्यम आय वाले देशों से प्राप्त वायु प्रदूषण से जुड़े आंकड़े स्वास्थ्य पर पड़ते प्रभावों का सही आकलन करने में मददगार हो सकते हैं। इससे यह भी पता चलता है कि वायु गुणवत्ता में सुधार किस कदर लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बना सकता है। ऐसे में खासतौर पर यदि सरकारें बढ़ते प्रदूषण की रोकथाम के लिए बेहतर नियम और नीतियां बनाती है तो वो लोगों को स्वस्थ रखने में मददगार साबित हो सकता है।

भारत में वायु प्रदूषण के बारे में ताजा जानकारी आप डाउन टू अर्थ के एयर क्वालिटी ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं।