अपनी तैयार फसल को काटती भारतीय किसान, फोटो: आईस्टॉक 
कृषि

भारत में ओजोन प्रदूषण से घट सकती है गेहूं की 20 फीसदी पैदावार, धान-मक्के पर भी खतरा

आईआईटी खड़गपुर के अध्ययन के मुताबिक यदि ओजोन प्रदूषण से निपटने के लिए पर्याप्त प्रयास न किए गए तो गेहूं की पैदावार में 20 फीसदी, जबकि धान और मक्का की पैदावार में सात फीसदी की गिरावट आ सकती है।

Lalit Maurya

भारतीय फसलों पर एक नया खतरा दबे पांव मंडरा रहा है। यह खतरा है सतह के पास बढ़ता ओजोन। इस बारे में आईआईटी खड़गपुर से जुड़े शोधकर्ताओं ने अपने नए अध्ययन में खुलासा किया है कि ओजोन प्रदूषण की वजह से भारत में गेहूं, मक्का और धान की पैदावार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।

बता दें कि सतह पर मौजूद ओजोन एक ताकतवर ऑक्सीडेंट है, जो पौधों की पत्तियों और ऊतकों को नुकसान पहुंचाता है। इससे फसलों की पत्तियां झुलस जाती हैं। नतीजन पौधों की वृद्धि रुक जाती है और उपज में गिरावट आ जाती है।

गौरतलब है कि ग्राउंड लेवल ओजोन का निर्माण तब होता है, जब इंसानी गतिविधियों की वजह से होने वाले प्रदूषक सूर्य की रोशनी से प्रतिक्रिया करते हैं। इसकी वजह से पेड़-पौधों के लिए कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करना मुश्किल हो जाता है।

अपने अध्ययन में आईआईटी खड़गपुर के शोधकर्ताओं ने जलवायु मॉडल (सीएमआइपी6) के आंकड़ों का उपयोग किया है। साथ ही उन्होंने ऐतिहासिक प्रवत्ति और भविष्य के पूर्वानुमानों की मदद से यह जानने का प्रयास किया है कि यदि ओजोन का स्तर बढ़ता है तो उसका भारत में प्रमुख खाद्यान फसलों पर कितना असर पड़ेगा। 

इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक उच्च उत्सर्जन परिदृश्य में यदि इससे निपटने के लिए पर्याप्त प्रयास न किए गए तो भारत में गेहूं की पैदावार में 20 फीसदी की अतिरिक्त गिरावट आ सकती है। वहीं धान और मक्का भी इसके असर से नहीं बच पाएंगे। वैज्ञानिकों का अंदेशा है कि उनकी पैदावार में भी सात फीसदी की गिरावट आ सकती है।  

अध्ययन शोधकर्ताओं ने यह भी दावा किया है कि सतही ओजोन का सबसे ज्यादा असर खासतौर पर गंगा के मैदानी इलाकों और मध्य भारत में खाद्यान्न फसलों पर पड़ सकता है। आशंका है कि इन इलाकों में ओजोन का स्तर सुरक्षित सीमा से छह गुना तक अधिक हो सकता है। ऐसे में यही ने केवल भारत, बल्कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए भी बड़ा खतरा है क्योंकि भारत कई एशियाई और अफ्रीकी देशों को खाद्यान्न निर्यात करता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में भी ओजोन प्रदूषण पर ध्यान देने की है जरूरत

ऐसे में अध्ययन के मुताबिक यह समस्या संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास से जुड़े दो बड़े लक्ष्यों, एसडीजी 1 यानी गरीबी मुक्त दुनिया और दूसरा एसडीजी 2 (सबके लिए भरपेट भोजन) को हासिल करने में भी बड़ी रुकावट बन सकती है।

देखा जाए तो अगर ओजोन प्रदूषण से फसलों की पैदावार घटेगी तो उसकी वजह से जहां किसानों की आमदनी घटेगी, वहीं दूसरी तरफ खाद्यान में भी गिरावट आएगी, जो भोजन की कमी को बढ़ा सकती है।

गौरतलब है कि यह अध्ययन इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के सेंटर फॉर ओशियन, रिवर, एटमॉस्फेयर एंड लैंड साइंसेज में प्रोफेसर जयनारायणन कुट्टिपुरथ के नेतृत्व में किया गया है। अध्ययन के नतीजे जर्नल एनवायर्नमेंटल रिसर्च में प्रकाशित हुए हैं।

इसके साथ ही अध्ययन में यह भी कहा गया है कि भारत का नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम फिलहाल सिर्फ शहरों में बढ़ते प्रदूषण पर ही ध्यान दे रहा है। लेकिन ग्रामीण, कृषि प्रधान क्षेत्रों में ओजोन प्रदूषण की निगरानी और उससे निपटने के लिए अलग रणनीति की जरूरत होगी। ऐसे में अध्ययन बढ़ते वायु और ओजोन प्रदूषण को रोकने के लिए लक्षित नीतियों की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है।

अध्ययन के मुताबिक यदि कृषि क्षेत्रों में प्रदूषण को रोकने के लिए ठोस नीतियां बनाई जाएं और कारगर कदम उठाए जाएं तो कृषि पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। साथ ही इसकी मदद से भविष्य में खाद्य सुरक्षा को भी मजबूत किया जा सकता है।

जर्नल नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में भी इस बात की पुष्टि की गई है कि जमीन के पास ओजोन की मौजूदगी से पेड़-पौधों के बढ़ने की रफ्तार धीमी पड़ जाती है।

बता दें कि हाल ही में दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने भी अपनी नई रिपोर्ट “एयर क्वालिटी ट्रैकर: एन इनविजिबल थ्रेट” में खुलासा किया है कि भारतीय शहरों में ओजोन प्रदूषण का स्तर चिंताजनक रूप से बढ़ा है। रिपोर्ट के मुताबिक 2024 में गर्मियों के दौरान भारत के दस प्रमुख शहरी क्षेत्रों में जमीनी स्तर पर ओजोन का स्तर काफी बढ़ गया था, जिससे इन क्षेत्रों में हवा कहीं ज्यादा जहरीली हो गई। इससे दिल्ली सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है।