कृषि

सूखे में रोजगार और सिंचाई योजनाएं बनी किसानों की ढाल, पलायन को रोकने में हुई सफल

आईआईटी मद्रास के एक हालिया अध्ययन में सामने आया कि सिंचाई और कृषि के अलावा आय के अन्य विकल्प मिलने से ग्रामीणों ने सूखे के समय में भी शहरों की ओर पलायन नहीं किया

Lalit Maurya

जब खेत सूखने लगे और आसमान से पानी की एक बूंद भी धरा पर नहीं गिरी, तब भी कुछ किसान अपने गांव में टिके रहे। न उन्होंने शहरों की ओर रुख किया, न उम्मीद छोड़ी। इसकी सबसे बड़ी वजह रही कृषि के साथ अन्य वैकल्पिक रोजगार और खेतों में सिंचाई की उपलब्धता।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) मद्रास के एक हालिया अध्ययन में यह सामने आया है कि जिन ग्रामीण परिवारों को सिंचाई और कृषि के अलावा आय के अन्य विकल्प मिले, उन्होंने सूखे के समय मुश्किल हालातों में भी शहरों की ओर पलायन नहीं किया। अध्ययन में पुष्टि हुई है कि किसानों के सूखे के कारण होने वाले पलायन को रोकने में सिंचाई और वैकल्पिक रोजगार बेहद कारगर साबित हुए हैं।

यह अध्ययन डॉक्टर सबुज कुमार मंडल और डॉक्टर गौरी श्रीकुमार के नेतृत्व में किया गया है, जिसके नतीजे प्रतिष्ठित जर्नल इंडियन इकोनॉमिक रिव्यु में प्रकाशित हुए हैं।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने भारत के ग्रामीण कृषि-आधारित परिवारों पर सूखे के प्रभाव और उसकी वजह से होने वाले पलायन की स्थिति का गहराई से विश्लेषण किया है। इसके लिए उन्होंने ‘डिफरेंस-इन-डिफरेंसेस’ नामक सांख्यिकीय तकनीक का उपयोग किया, जो यह समझने में मदद करती है कि जिन लोगों को किसी विशेष परिस्थिति (जैसे सूखे) का सामना करना पड़ा, तो उनके और बाकी लोगों के बीच क्या अंतर आया।

इस विश्लेषण के लिए भारत मानव विकास सर्वेक्षण के दो चरणों 2004-05 और 2011-12 के आंकड़ों को आधार बनाया गया है।

शोधकर्ताओं के अनुसार बारिश और तापमान में असामान्य बदलावों का पलायन पर असर पहले से ज्ञात है, लेकिन भारत में जलवायु परिवर्तन की वजह से पड़ने वाले सूखे का ग्रामीण किसान परिवारों के पलायन पर क्या असर पड़ता है, इस पर अब भी बेहद कम जानकारी उपलब्ध है।

भारत में सूखे और कृषि में होते नुकसान के कारण बढ़ता ग्रामीण पलायन बेहद चिंता का विषय बन चुका है। नई पीढ़ियां अब कृषि से दूर भाग रही हैं। अध्ययन में पाया गया कि सिंचाई की सुविधा और गैर-कृषि कार्यों तक पहुंच, सूखे के कारण होने वाले ग्रामीण पलायन को कम करने में अहम भूमिका निभाती है।

जिन परिवारों के पास सिंचाई की सुविधा थी या जो लोग खेती के अलावा जीविका के लिए अन्य कार्यों में भी लगे थे, उनके बीच सूखे के चलते पलायन के कोई विशेष प्रमाण नहीं मिले। इससे साफ होता है कि ये दोनों उपाय सूखा प्रभावित इलाकों में किसानों के लिए सहायक साबित होते हैं।

क्या कहते हैं शोधकर्ता?

समस्या पर प्रकाश डालते हुए अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर सबुज मंडल ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, "पलायन किसी की पहली पसंद नहीं होती। किसान सूखे जैसी आपदाओं से पहले खुद को ढालने की पूरी कोशिश करते हैं। लेकिन जब हालात बेकाबू हो जाते हैं, तब मजबूरी में पलायन करना पड़ता है।"

उनके मुताबिक इस पलायन के अपने नुकसान होते हैं। हालांकि कुछ आंकड़े दिखाते हैं कि पलायन से परिवारों और अर्थव्यवस्था को कुछ हद तक लाभ होता है, लेकिन बढ़ता हुआ पलायन शहरों में बढ़ती आबादी, गरीबी, अपराध, और सामाजिक असंतुलन जैसी समस्याएं भी पैदा करता है। साथ ही, इसकी वजह से गांवों की आबादी में गिरावट, खेती में कमी, खाद्य सुरक्षा पर असर और सतत विकास में बाधा जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

वहीं डॉक्टर गौरी श्रीकुमार का कहना है, "कृषि से अलग वैकल्पिक आय न केवल परिवारों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करती है, बल्कि कृषि में बीज, खाद, तकनीक और पशुपालन जैसे निवेश करने में भी मदद करती है।"

उनके मुताबिक इस आय से किसान परिवारों पर सकारात्मक असर पड़ता है। साथ ही यह अतिरिक्त आय उन्हें आपदाओं के लिए तैयार रहने और आय को होने वाले नुकसान की भरपाई में मदद करती है।

क्या कर सकती है सरकार?

शोधकर्ताओं का सुझाव है कि सरकार को ग्रामीण भारत में गैर-कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए ‘आजीविका ग्रामीण एक्सप्रेस योजना’ और ‘मनरेगा’ जैसी योजनाओं को और मजबूती से लागू करना चाहिए। साथ ही, ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना’ जैसी योजनाओं से सिंचाई तकनीकों को बढ़ावा दिया जा सकता है।

इसके अलावा, सरकार किसान समूहों और कृषि संबंधी सेवा विस्तार केंद्रों की संख्या बढ़ाकर भी पलायन को नियंत्रित कर सकती है।

अध्ययन में यह भी पाया गया कि सहकारी समितियों, स्वयं सहायता समूहों, एनजीओ और बचत समूहों जैसे संगठनों से जुड़ाव भी पलायन को रोकने में मदद करता है। ऐसे सामाजिक संगठन न केवल आर्थिक सहायता देते हैं, बल्कि लोगों का मनोबल भी बढ़ाते हैं।

वहीं सिंचाई से न केवल पैदावार में स्थिरता आती है, बल्कि यह किसानों को आत्महत्या जैसे कदम उठाने से भी दूर रखती है। यह फसलों के लिए अतिरिक्त पानी उपलब्ध कराती है, जिससे खाद्य सुरक्षा बनी रहती है।

इसके साथ ही बेहतर सिंचाई तकनीकों से पानी की बचत होती है और कृषि ज्यादा बेहतर, सतत और पर्यावरण अनुकूल बनती है, नतीजन सूखे के बावजूद किसान गांवों से पलायन नहीं करते। यही वजह है कि सिंचाई को आज एक प्रभावी समाधान माना जा रहा है, जो पलायन की दर कम करने में मददगार साबित हो सकता है।