द्वीपों की मसूर किस्में गर्म और शुष्क जलवायु के अनुसार अनुकूलित हैं, जो भविष्य की कृषि में महत्वपूर्ण हो सकती हैं। प्रतीकात्मक छवि, फोटो साभार: फोटो साभार: आईस्टॉक
कृषि

अफ्रीकी विरासत से जुड़ी 2,000 साल पुरानी फसल की हुई खोज

कनारी द्वीपों में उगने वाली मसूर की प्राचीन किस्में लगभग 2,000 साल पुराने उत्तर अफ्रीकी कृषि इतिहास और जलवायु अनुकूलन से जुड़ी हैं।

Dayanidhi

  • कनारी द्वीपों की मसूर दाल की खेती लगभग 2,000 साल पुरानी उत्तर अफ्रीकी किस्मों से जुड़ी है।

  • प्राचीन ज्वालामुखीय सिलो में सुरक्षित बीजों ने डीएनए संरक्षित रखा, जो शोध के लिए अनमोल साबित हुआ।

  • जेनेटिक अध्ययन से पता चला कि मसूर दाल मूल निवासियों द्वारा लाई गई थी और यूरोपियों के बाद भी उगाई गई।

  • द्वीपों की मसूर किस्में गर्म और शुष्क जलवायु के अनुसार अनुकूलित हैं, जो भविष्य की कृषि में महत्वपूर्ण हो सकती हैं।

  • “लांजारोते मसूर” स्पेन में लोकप्रिय है और इसके जीन स्पेनिश मसूर में संकरण द्वारा शामिल हुए हैं।

कनारी द्वीपों में आज उगाई जाने वाली मसूर दाल की कहानी केवल खेती या भोजन तक सीमित नहीं है। यह कहानी हजारों साल पुराने इतिहास, मानव प्रवास, कृषि ज्ञान और जलवायु के अनुकूलन से जुड़ी हुई है। हाल ही में स्वीडन के लिंकोपिंग विश्वविद्यालय और स्पेन के यूनिवर्सिटी ऑफ लास पालमास दे ग्रान कैनारिया के वैज्ञानिकों ने पहली बार पुरातात्विक मसूर दाल के बीजों का आनुवंशिक (जेनेटिक) अध्ययन किया।

इस अध्ययन से पता चला कि द्वीपों में उगने वाली मसूर की जड़ें लगभग 2,000 साल पुरानी उत्तर अफ्रीकी किस्मों से जुड़ी हुई हैं।

ज्वालामुखीय सिलों में सुरक्षित रहे बीज

ग्रान कैनारिया द्वीप के प्राचीन निवासी अपनी फसलें लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए ज्वालामुखीय चट्टानों में गहरे, कठिन स्थानों पर भंडार (सिलो) बनाते थे। ये सिलो जमीन के अंदर होते थे, जहां तापमान और नमी सालों तक स्थिर बने रहते थे। इसी स्थिर वातावरण की वजह से कुछ बीज नष्ट नहीं हुए और उनका डीएनए संरक्षित रहा। आज ये बीज वैज्ञानिकों के लिए एक अनमोल खजाने की तरह हैं, क्योंकि इनमें उस समय की खेती और पौधों की विविधता का साफ रिकॉर्ड मिलता है।

वैज्ञानिकों ने इन्हीं प्राचीन सिलो से मिली मसूर दाल का विश्लेषण किया और उसकी तुलना आज की कनारी मसूर, स्पेन और मोरक्को में उगाई जाने वाली मसूर से की। यह दुनिया में पहली बार है जब इतनी पुरानी दाल के बीजों पर इस तरह का आनुवंशिक अध्ययन किया गया।

इतिहास की कमी को जेनेटिक विज्ञान ने पूरा किया

यूरोपीय अन्वेषक 1300 के दशक में जब पहली बार कनारी द्वीपों पर पहुंचे, तब द्वीपों पर उत्तर अफ्रीका से आए लोग बस चुके थे। ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि वहां कृषि होती थी, लेकिन उनमें मसूर दाल का उल्लेख नहीं मिलता। इस कारण वैज्ञानिकों के मन में सवाल था कि मसूर द्वीपों तक कब और कैसे पहुंची।

नई जेनेटिक रिपोर्ट, जो जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजिकल साइंस में प्रकाशित हुई, बताती है कि मसूर की खेती द्वीपों पर पहले से ही 200 ईस्वी के आसपास शुरू हो चुकी थी। इसका मतलब है कि मसूर दाल कनारी द्वीपों तक वहां के मूल निवासियों द्वारा लाई गई, जो उत्तर अफ्रीका से यहां आए थे।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि लगभग 2,000 सालों से कनारी द्वीपों में एक ही प्रकार की मसूर उगाई जा रही है। यह बेहद दिलचस्प है, खासकर इसलिए कि यूरोपियों के आगमन के बाद भी नई आबादी ने पुरानी कृषि परंपराओं को अपनाया और इन मसूर किस्मों को उगाना जारी रखा।

जलवायु के अनुसार अनुकूलन और सांस्कृतिक ज्ञान

ये मसूर दाल इतनी लंबी अवधि तक जीवित और प्रचलित कैसे रही? शोधकर्ताओं का मानना है कि इसकी दो मुख्य वजहें हैं:

कठोर और शुष्क जलवायु के अनुसार इन दालों का अनुकूलन- कनारी द्वीपों की गर्म, शुष्क और पथरीली जमीन में उगने की क्षमता ने इन मसूर को बेहद मजबूत बना दिया।

महिलाओं द्वारा कृषि ज्ञान का संरक्षण

प्राचीन समाजों में महिलाएं खेती और भोजन से जुड़ी परंपराओं को आगे बढ़ाती थीं। ऐसा माना जाता है कि स्थानीय महिलाओं ने मसूर दाल किस्मों के बीज संरक्षित रखे और पीढ़ियों तक उनकी खेती के तरीके आगे बढ़ाए। शोधकर्ताओं के अनुसार आज भी कनारी द्वीपों में महिलाओं के पास खाद्य पौधों के बारे में अधिक पारंपरिक ज्ञान है।

इन मसूर दालों की निरंतरता केवल ऐतिहासिक तथ्य नहीं है। आज जब लोग अपनी परंपराओं और सांस्कृतिक भोजन की ओर लौट रहे हैं, तब ये मसूर दालें उनकी पहचान का हिस्सा बन गई हैं।

विभिन्न द्वीपों पर अलग-अलग किस्में

अध्ययन में यह भी पाया गया कि कनारी द्वीपों के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग मसूर किस्में उगाई जाती हैं। पहले माना जाता था कि सभी द्वीपों पर मसूर की खेती नहीं होती थी, लेकिन जेनेटिक अध्ययन ने यह धारणा गलत साबित की।

वैज्ञानिकों का कहना है कि हर द्वीप की मसूर विभिन्न तरीकों से अनुकूलित हुई है, और उनके बीच का यह जेनेटिक अंतर भविष्य की फसल सुधार परियोजनाओं में बहुत उपयोगी साबित हो सकता है।

लांजारोते मसूर और आधुनिक संकरण

अध्ययन में एक और दिलचस्प बात सामने आई। स्पेन में दुकानों पर मिलने वाली एक लोकप्रिय किस्म “लेंतेजा टाइपो लांजारोते” के नाम से जानी जाती है। हालांकि ये दाल आज लांजारोते द्वीप पर नहीं उगाई जाती, लेकिन इसकी गुणवत्ता के कारण इसका नाम काफी प्रसिद्ध है। जेनेटिक विश्लेषण से पता चला कि वर्तमान स्पेनिश मसूर में लांजारोते मसूर के जीन मिले हुए हैं, यानी इनका संकरण हुआ है।

शोधकर्ताओं के अनुसार, कनारी मसूर की गर्म और शुष्क जलवायु में अनुकूलित विशेषताओं के कारण यह भविष्य में जलवायु परिवर्तन के दौर में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, विशेष रूप से नई, अधिक सहनशील कृषि किस्में विकसित करने में।