सही तरीके से किए गए इस वर्गीकरण से न केवल गैंडे के विकास के बारे में समझ बढ़ेगी , बल्कि संरक्षण योजना के लिए एक स्पष्ट रूपरेखा भी तैयार होगी।  फोटो साभार: आईस्टॉक
वन्य जीव एवं जैव विविधता

गैंडे की नई प्रजाति 'यूरिनोसेरोस सोंडाइकस' की पहचान!

नए अध्ययन में भारतीय और सुंडाइक गैंडे के बीच महत्वपूर्ण अंतर की पहचान की गई है

Dayanidhi

एक नए अध्ययन में दो एक सींग वाले एशियाई गैंडे की प्रजातियों के स्वरूप और व्यवहार में भारी अंतर देखा गया है। जिससे लंबे समय से चले आ रहे वर्गीकरण को चुनौती मिल रही थी, अब उनकी स्थिति के पुनर्मूल्यांकन की बात कही जा रही है।

जीवाश्म विज्ञानियों द्वारा किए गए इस शोध में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि किस तरह लाखों सालों के विकासवादी दबावों ने भारतीय (राइनोसेरोस यूनिकॉर्निस) और सुंडाइक (राइनोसेरोस सोंडाइकस) गैंडों के अनोखे तरीके से ढलने को आकार दिया।

गंभीर रूप से लुप्तप्राय सुंडाइक गैंडे की खोपड़ी पतली होती है, सिर का पिछला हिस्सा चौड़ा और निचला हिस्सा होता है, तथा पत्तियों को खाने के लिए उपयुक्त नाक और दांत छोटे होते हैं। इसके उलट भारतीय गैंडे की खोपड़ी अधिक मजबूत होती है और घास चरने के लिए उसके दांत लंबे होते हैं।

जूकीज पत्रिका में प्रकाशित शोधपत्र में कहा गया है कि अलग-अलग वातावरणों के लिए बड़े स्थलीय स्तनधारियों का अनुकूलन उनके द्वारा खाए जाने वाले खाद्य पदार्थों की विविधता से जुड़ा होता है, जो उनके दांतों और कपाल की आकृति विज्ञान की विविधता में दिखता है। गैंडे में ढलने की पहचान उनके दांतों की संरचना और सिर के आकार से की जाती है।

सुंडाइक गैंडा, जो अब जावा के उजंग कुलोन प्रायद्वीप तक ही सीमित है, एक चरने वाली प्रजाति है जिसकी त्वचा विशिष्ट रूप से बहुकोणीय पैटर्न वाली है और किसी भी अन्य जीवित गैंडे के विपरीत मादाओं में सींग नहीं होते हैं। इसके उलट भारतीय गैंडा उत्तर भारत और नेपाल में नदी के किनारों के घास के मैदानों में चरने वाला जानवर है।

गहरी त्वचा की तहों और भारी शरीर के कारण भारतीय गैंडा अपने सुंडाइक रिश्तेदार से काफी बड़ा होता है। आकार में यह केवल हाथी और सफेद गैंडे से ही आगे है, जिसमें नर का वजन 2,000 किलोग्राम से अधिक और मादा का वजन 1,600 किलोग्राम तक होता है।

शोध के मुताबिक, जीवाश्म से इस बात की पुष्टि होती है कि ये अंतर लंबे समय तक स्वतंत्र रूप से विकसित हुए हैं। शोध पत्र में शोधकर्ताओं का कहना है कि इनमें मौलिक शारीरिक और पारिस्थितिक अंतर पाए जाते हैं और गहरे विकासवादी अनुकूलन को सामने लाते हैं।

दोनों प्रजातियों का व्यवहार भी काफी हद तक अलग-अलग है, सुंडाइक गैंडे अकेले घुमक्कड़ होते हैं जबकि भारतीय गैंडे कभी-कभी भटकते हैं। शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि दोनों प्रजातियों में जीवित रहने के लिए ढलने की अनोखी क्षमता होती हैं, जो प्रभावी संरक्षण के लिए उनके व्यवस्थित तंत्र को समझने के लिए जरूरी है।

शोध के इन निष्कर्षों के आधार पर, वैज्ञानिकों ने सुंडाइक गैंडे के लिए एक अधिक सटीक वैज्ञानिक नाम प्रस्तावित किया है जो 'यूरिनोसेरोस सोंडाइकस' है। यूरिनोसेरोस सोंडाइकस को एक अलग प्रजाति के रूप में मान्यता देना इसके विकासवादी इतिहास और पारिस्थितिक विशेषज्ञता का अधिक सटीक जानकारी प्रदान करता है।

सही तरीके से किए गए इस वर्गीकरण से न केवल गैंडे के विकास के बारे में समझ को बढ़ाता है, बल्कि संरक्षण योजना के लिए एक स्पष्ट रूपरेखा भी प्रदान करता है, जिससे इन गंभीर रूप से लुप्तप्राय जानवरों की सुरक्षा के लिए रणनीति तैयार करने में मदद मिलती है।