दो मई, 2024 को, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 24 मई को मध्य और दक्षिण एशिया के पर्वतीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले प्रतिष्ठित और पारिस्थितिक रूप से अहम जंगली बकरी (कैप्रा फाल्कनरी) के बाद 24 मई को 'अंतरराष्ट्रीय मारखोर दिवस' घोषित किया।
"मारखोर" एक फारसी शब्द है जिसका अर्थ है "सांप खाने वाला" या "सांप मारने वाला" होता है। यह शब्द मार से बना है जिसका अर्थ है "सांप" और खोर जिसका अर्थ है "खाना"। यह नाम मारखोर के सर्पिल सींगों या इस मान्यता को संदर्भित करता है कि यह अपने खुरों से सांपों को मारता है।
मारखोर मध्य और दक्षिण एशिया के पहाड़ी क्षेत्रों में पाए जाता हैं, जिसमें अफगानिस्तान, भारत, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उजबेकिस्तान शामिल हैं। मारखोर के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा निवास स्थान के नुकसान, अवैध शिकार और जलवायु परिवर्तन है।
मारखोरों को समूह में रहना पसंद है। खतरे से बचने के लिए माताएं और बच्चे एक साथ रहते हैं।
मारखोर और इसके प्राकृतिक आवास को संरक्षित करना पारिस्थितिक तंत्र के लिए जरूरी है। साथ ही क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने, संरक्षण के प्रयासों को बढ़ावा देने और टिकाऊ पर्यटन और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए अहम है। मारखोर के संरक्षण प्रयासों से पारिस्थितिक तंत्र को फायदा पहुंचेगा।
मारखोर को 2014 में प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) के द्वारा "संकटग्रस्त" के रूप में वर्गीकृत किया गया था। जो कि खतरे की प्रजातियों की लाल सूची में शामिल है। इसे 1992 से जंगली जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन में शामिल किया गया है।
इसके अलावा इसे भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972) और जम्मू और कश्मीर वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1978 दोनों की अनुसूची में शामिल किया गया है।
दुनिया भर में मारखोर की संख्या लगभग 5,700 है। मारखोर के लंबे (63 इंच तक) कॉर्कस्क्रू के आकार के सींग होते हैं। यह 600 से 3,600 मीटर की ऊंचाई वाले पहाड़ी इलाकों, खुले जंगलों, झाड़ियों में रहते हैं।
कश्मीर मारखोर रिकवरी प्रोजेक्ट के तहत, वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया मारखोर की आबादी में सुधार के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। वर्तमान में, वे मारखोर के अहम आवासों की रक्षा करने, मानवजनित गतिविधियों के प्रभाव का मूल्यांकन करने और इन क्षेत्रों में पशुओं के चरने को कम करने के लिए काम कर रहे हैं। उनके प्रयासों के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं।
मारखोर को समर्पित एक राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना की गई है, साथ ही हिरपोरा वन्यजीव अभयारण्य का विस्तार और इस प्रजाति के लिए तत्ताकुटी अभयारण्य का निर्माण किया गया है।